चुनावी कुंडली बदलने की कोशिश

MP Nikay Chunav first phase Voting Latest Update Madhya Pradesh urban body  election indore bhopal jablpur gwalior 6 july 2022 sdmp | LIVE: नगरीय निकाय  चुनाव की वोटिंग खत्म, वोटरों में रहा

विनीत माहेश्वरी (संवाददाता)

कम से कम भाजपा के उम्मीदवारों की सूची उस मुगालते को तोड़ देती है कि परिवारवाद का ग्रहण
केवल कांग्रेस के नक्षत्रों में ही सलामत है। हिमाचल भाजपा के आशियाने में सियासी वंशावलियां
स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही हैं जहां महेंद्र सिंह के बेटे रजत ठाकुर, स्व. नरेंद्र बरागटा के बेटे चेतन
बरागटा और भोरंज से स्व. आईडी धीमान के बेटे अनिल धीमान अब नई पीढ़ी के प्रतिनिधि होंगे।
सियासत का अपना दस्तूर है और जहां हर जीत मायने रखती हो, वहां क्या नीति और क्या
सिद्धांत। भाजपा अपने महामंत्रियों के आकाश में टिकटों के सितारे भरती हुई राकेश जमवाल
(सुंदरनगर), त्रिलोक जमवाल (बिलासपुर) और पालमपुर से त्रिलोक कपूर को आजमा कर संगठन की
काबिलीयत को दर्शा रही है। बेशक भाजपा ने अपना शुद्धिकरण करने की हर संभव कोशिश की है
और कहीं पांव मोड़े, तो कहीं हाथ जोड़े हैं।
भाजपा की सूची में नए बदलाव हैं, तो दूसरी पार्टियों से लिए नेताओं को मैदान पर उतारने की
वचनबद्धता की तामील हुई है। जोगिंद्रनगर से स्वतंत्र रूप से जीते प्रकाश राणा अब भाजपा की
चमक का टीका लगा रहे हैं, तो कांग्रेस से आए पवन काजल और लखविंदर राणा को टिकट की
सौगात मिली है। यह दीगर है कि धर्मशाला के विधायक विशाल नेहरिया के स्थान पर ‘आप’ से आए
राकेश चौधरी को मिला टिकट बगावत पर उतर आया है, तो आक्रोश वन मंत्री राकेश पठानिया और
शहरी विकास मंत्री सुरेश भारद्वाज के विधानसभा क्षेत्रों को बदलने को लेकर भी पनपने लगा है, फिर
भी वादे के मुताबिक भाजपा ने इस चुनाव की कुंडली बदलने की कोशिश में कम से कम दो दर्जन
विधानसभा क्षेत्रों में नए चेहरे देने का भरसक प्रयास किया है।
कांग्रेस की पहली सूची में भी कई दरारें हैं और इसलिए कई दिग्गज नेताओं को राजनीति की चाबी
खोने का मलाल है। आरंभिक 46 नामों की सूची में आठ नए चेहरों को बदलते हुए भी कांग्रेस ने
यथास्थिति से ज्यादा छेड़छाड़ नहीं की है। यहां कांग्रेस के चिरपरिचित घराने फिर से आबाद होने के
सफर पर टिकट हासिल कर चुके हैं, लेकिन पार्टी की युवा ब्रिगेड व कुछ पुराने लोगों में गुस्से की
लाली देखी जा रही है। बहरहाल दोनों पार्टियों के बीच सीधे मुकाबले की संभावनाओं के कारण ‘आम
आदमी पार्टी’ का जोश ठंडा पड़ता दिखाई दे रहा है, फिर भी कांग्रेस और भाजपा के चूल्हों से अलग
हुए लोग ‘आप’ की रोटी खाने के लिए बेताब रहेंगे। यानी दल विरोधी गतिविधियों और दोनों पार्टियों
से ठुकराए गए नेता अगर भारी तादाद में ‘आप’ का दामन थामते हैं, तो तीन हज़ार या इससे कम
मतों से जीती-हारी विधानसभा सीटों के समीकरण तो बिगाड़ ही सकते हैं।
आरंभिक तौर पर कांग्रेस बनाम भाजपा का मुकाबला निचले स्तर तक आमना-सामना करता हुआ

प्रतीत हो रहा है। टिकटों के आबंटन में किस पार्टी का कौशल सफल होगा या कौन किसको गच्चा

देगी, इसका मूल्यांकन आगे चलकर चुनाव में रोचकता, नाटकीयता तथा वास्तविकता के रंगों के साथ
सामने आने वाला है। फिलहाल माथापच्ची की चक्की पर जो पीसा गया है, उसमें कई नेताओं की
महत्त्वाकांक्षा हारी है, तो जो सफल हुए उन्हें अब पसीना बहाए बिना कुछ भी रास नहीं आ सकता है।
अपनी-अपनी दीवारों पर खड़े दो पारंपरिक विरोधी दल अपनी उलझनों से बाहर आकर जनता के मूड
को अपने स्पर्श से कैसे मोहित करते हैं, यह देखना होगा। बेशक सत्ता पक्ष ने सरकार विरोधी लहरों
को मापते, पिछली गलतियों से सबक सीखते तथा अभी हाल ही में उप चुनावों की शिकस्त से अपने
मनोबल को उठाने का जोरदार प्रयास किया है। दोनों पार्टियों के प्रत्याशियों का चयन भले ही अलग-
अलग धरा पर खड़ा है, लेकिन चुनाव की परिस्थितियों को अंतिम पायदान तक पहुंचाने का मंतव्य
कमोबेश एक सरीखा है। देखना यह होगा कि बाहरी उम्मीदवारों को अपनाकर, मंत्रियों के स्थान बदल
कर और नए चेहरों को उतार कर भाजपा किस हद तक अपनी सत्ता को बचा पाती है, जबकि कांग्रेस
को हिमाचल जैसा अवसर किसी अन्य राज्य में शायद ही दोबारा मिलेगा।

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