वीडियो ऐडिटर के तौर पर बनाएं करियर

विनीत माहेश्वरी (संवाददाता )

ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स से लेकर यू-ट्यूब तथा अलग-अलग वेबसाइट्स पर मूवी क्लिप्स की बढ़ती संख्या ने वीडियो
एडिटिंग के क्षेत्र में नए अवसर क्रिएट किए हैं। ऐसे में विजुअल्स की समझ रखने वाले क्रिएटिव युवा वीडियो
एडिटिंग के क्षेत्र में अपनी खास पहचान बना सकते हैं…
नेटफ्लिक्स तथा एमेजन प्राइम जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉम्र्स पर वेब सीरीज की लोकप्रियता के बाद वीडियो एडिटर्स
के लिए संभावनाएं और बढ़ गई हैं। वैसे, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, एंटरटेनमेंट एवं एनिमेशन इंडस्ट्री की ग्रोथ को भी
देखते हुए वीडियो एडिटिंग एक बढ़िया करियर विकल्प हो सकता है। फिल्मों के अलावा लगातार बढ़ते टीवी चैनल्स
एवं उनके कार्यक्रमों के लोकप्रिय होने से भी वीडियो एडिटर की मांग तेजी से बढ़ रही है। इसमें न सिर्फ अच्छा
पैकेज, बल्कि काम करने के अनेक मौके हैं।
क्या है वीडियो एडिटिंग?

एडिट वक्र्स स्कूल ऑफ मास कम्युनिकेशन के निदेशक सचिन सिंह बताते हैं कि किसी भी रफ वीडियो यानी
विजुअल को कलात्मक दृष्टि से प्रेजेंटेबल बनाना वीडियो एडिटिंग कहलाता है। अच्छी कहानी एवं निर्देशन के अलावा
वीडियो एडिटिंग की बदौलत कोई भी टीवी शो, विज्ञापन या डॉक्यूमेंट्री फिल्म दर्शकों को बांधने की क्षमता रखती है।
वीडियो एडिटर का कार्य रिकॉर्डेड वीडियो को एडिट कर एक सिंगल रिफाइंड वीडियो तैयार करना होता है। इसके
अंतर्गत साउंडट्रैक से लेकर विजुल्स की एडिटिंग शामिल है। वैसे, यह वीडियो एडिटर की क्षमता पर निर्भर है कि
वह कैसे शूटिंग, रिकॉर्डिंग आदि के दौरान बने रॉ वीडियो से मतलब की चीज निकालकर, उसे अर्थपूर्ण बना सकता
है। यही वजह है क वीडियो एडिटर्स का नई तकनीक के साथ तालमेल होना बहुत जरूरी है।
वीडियो एडिटिंग के प्रकार:
वीडियो एडिटिंग दो तरह की होती है। लीनियर एडिटिंग में एक टेप से दूसरे टेप पर जरूरी हिस्सों को कॉपी किया
जाता है। वहीं, नॉन-लीनियर या डिजिटल एडिटिंग में कंप्यूटर टेक्नोलॉजी की मदद से ऑन-स्क्रीन एडिटिंग होती है।
यह अधिक आसान व लचीली है, क्योंकि नॉन-लीनियर एडिटिंग में विजुल्स की एडिटिंग सॉफ्टवेयर के माध्यम से
की जाती है। इसमें समय के साथ-साथ पैसे की बचत होती है। आज इसका ही प्रयोग अधिक होता है। यही वजह है
कि एडोब प्रीमियर, फाइनल कट प्रो जैसे प्रोफेशनल एडिटिंग सॉफ्टवेयर्स काफी लोकप्रिय हो गए हैं।
कोर्स एवं योग्यता: वीडियो एडिटिंग का कोर्स 12वीं के बाद किया जा सकता है। वैसे तो फील्ड में करियर के लिए
किसी विशेष शैक्षिक योग्यता की जरूरत नहीं है, बस आपको अपने काम में कुशल होना जरूरी है। लेकिन डिजिटल
वीडियो-फिल्म एडिटिंग में प्रशिक्षण लेना अच्छा रहेगा। इस फील्ड में डिग्री, डिप्लोमा तथा शॉर्ट-टर्म सर्टिफिकेट कोर्स
उपलब्ध हैं। अगर आप किसी टीवी चैनल में जॉब चाहते हैं, तो ग्रेजुएट भी होना होगा। अब ऑनलाइन कोर्सेज की
सुविधा मिलने लगी है। बेसिक स्किल्स वीडियो एडिटर बनने के लिए सबसे जरूरी है विजुल्स की समझ रखना।
आपको कल्पनाशील व टेक्नोलॉजी से अवगत रहना होगा। नवीनतम टेक्नोलॉजी से जितना अवगत रहेंगे, उतना
अच्छा।
बढ़ती संभावनाएं: इंफॉर्मेशन, कम्युनिकेशन एवं एंटरटेनमेंट क्षेत्र में हो रहे नए प्रयोगों के मद्देनजर वीडियो एवं
फिल्म एडिटिंग में क्रिएटिव लोगों की अच्छी डिमांड है। आप इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल मीडिया, प्रोडक्शन हाउसेज,
फिल्म स्टूडियोज, वेब फिल्मों का निर्माण करने वाली कंपनियों में काम कर सकते हैं। आज न्यूज पोर्टल्स के
अलावा ट्रैवल एवं अन्य कंपनीज के अपने वेबसाइट्स होते हैं, जहां इनकी काफी मांग है।

साहित्य
एक थी गौरा (कहानी)
-अमरकांत-

लंबे कद और डबलंग चेहरे वाले चाचा रामशरण के लाख विरोध के बावजूद आशू का विवाह वहीं हुआ। उन्होंने तो
बहुत पहले ही ऐलान कर दिया था कि 'लड़की बड़ी बेहया है।'
आशू एक व्यवहार-कुशल आदर्शवादी नौजवान है, जिस पर मार्क्स और गाँधी दोनों का गहरा प्रभाव है। वह स्वभाव
से शर्मीला या संकोची भी है। वह संकुचित विशेष रूप से इसलिए भी था कि सुहागरात का वह कक्ष फिल्मों में
दिखाए जाने वाले दृश्य के विपरीत एक छोटी अँधेरी कोठरी में था, जिसमें एक मामूली जंगला था और मच्छरों की
भन-भन के बीच मोटे-मोटे चूहे दौड़ लगा रहे थे।
लेकिन आशू की समस्या इस तरह दूर हुई कि उसके अंदर पहुँचते ही गौरा नाम की दुल्हन ने घूँघट उठा कर कहा,
लीजिए मैं आ गई। आप जहाँ रहते, मैं वहीं पहुँच जाती। अगर आप कॉलेज में पढ़ते होते और मैं भी उसी कॉलेज
में पढ़ती होती तो मैं जरूर आपके प्रेम बंधन में बँध गई होती। आप अगर इंग्लैंड में पैदा होते तो मैं भी वहाँ जरूर
किसी-न-किसी तरह पहुँच जाती। मेरा जन्म तो आपके लिए ही हुआ है।
कोई चूहा कहीं से कूदा, खड़-खड़ की अवाज हुई और उसके कथन में भी व्यवधान पड़ा। वह फिर बोलने लगी, 'मेरे
बाबूजी बड़े सीधे-सादे हैं। इतने सीधे हैं कि भूख लगने पर भी किसी से खाना न माँगें। इसलिए जब वह खाने के
पीढ़े पर बैठते हैं तो अम्मा कहीं भी हों, दौड़ कर चली आती हैं। वह जिद करके उन्हें ठूँस-ठूँस कर खिलाती हैं,
उनकी कमर की धोती ढीली कर देती हैं ताकि वह पूरी खुराक ले सकें। हमारे बाबूजी ने बहुत सहा है। लेकिन हमारी
अम्मा भी बड़ी हिम्मती हैं।' वह चुप हो गई। उसे संदेह हुआ था कि आशू उसकी बात ध्यान से नहीं सुन रहा है।
पर ऐसी बात नहीं थी। वस्तुतः आशू को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे। फिर उसकी बातें भी
दिलचस्प थीं।
उसका कथन जारी था, बाबूजी असिस्टेंट स्टेशन मास्टर थे। बड़े बाबू दिन में ड्यूटी करते थे और हमारे बाबूजी रात
में। एक बार बाबूजी को नींद आ गई। प्लेटफार्म पर गाड़ी आकर खड़ी हो गई। गाड़ी की लगातार सीटी से बाबूजी
की नींद खुली। गार्ड अंग्रेज था, बाबूजी ने बहुत माफी माँगी, पर वह नहीं माना। यह डिसमिस कर दिए गए। नौकरी
छूट गई, गाँव में आ गए। खेती-बारी बहुत कम होने से दिक्कत होने लगी। बाबूजी ने अपने छोटे भाई के पास
लिखा मदद के लिए तो उन्होंने कुछ फटे कपड़े बच्चों के लिए भेज दिए। यह व्यवहार देखकर बाबूजी रोने लगे।
इतना कहकर वह अँधेरे में देखने लगी। आशू भी उसे आँखें फाड़कर देख रहा था। यह क्या कह रही है? और क्यों?
क्या यह दुख-कष्ट बयान करने का मौका है! न शर्म और संकोच, लगातार बोले जा रही है!
उसने आगे कहना शुरू किया, 'लेकिन मैंने बताया था न, मेरी माँ बड़ी हिम्मती थी। एक दिन वह भैया लोगों को
लेकर सबसे बड़े अफसर के यहाँ पहुँच गई। भैया लोग छोटे थे। वह उस समय गई जब अफसर की अंग्रेज औरत
बाहर बरामदे में बैठी थी। अम्मा का विश्वास था कि औरत ही औरत का दर्द समझ सकती है। अफसर की औरत
मना करती रही, कुत्ते भी दौड़ाए पर अम्मा नहीं मानी और दुखड़ा सुनाया। अंग्रेज अफसर की पत्नी ने ध्यान से सब
कुछ सुना। फिर बोली, 'जाओ हो जाएगा।' अम्मा गाँव चली आई। कुछ दिन बाद बाबूजी को नौकरी पर बहाल होने
का तार भी मिल गय। तार मिलते ही बाबूजी नौकरी जॉइन करने के लिए चल पड़े। पानी पीट रहा था पर वह नहीं
माने, बारिश में भीगते ही स्टेशन के लिए चल पड़े।

उनकी रुहेलखंड रेलवे में नियुक्ति हो गई। बनबसा, बरेली, हलद्वानी, काठगोदाम, लालकुआँ। हम लोग कई बार
पहाड़ों पर पैदल ही चढ़कर गए हैं। भीमताल की चढ़ाई, राजा झींद की कोठी। उधर के स्टेशन क्वार्टरों की ऊँची-ऊँची
दीवारें। शेर-बाघ, जंगली जानवरों का हमेशा खतरा रहता है। एक बार हम लोग जाड़े में आग ताप रहे थे तो एक
बाघ ने हमला किया, लेकिन आग की वजह से हम लोग बाल-बाल बच गए। वह इस पार से उस पार कूद कर भाग
गया।'
वह रुक कर आशू को देखने लगी। फिर बोली, 'मैं तभी से बोले जा रही हूँ… आप भी कुछ कहिए…।'
आशू सकपका गया फिर धीमे से संकोचपूर्वक बोला, 'मैं… मेरे पास कहने को कुछ खास नहीं है। हाँ, मैं लेखक
बनना चाहता हूँ… मैं लोगों के दुख-दर्द की कहानी लिखना चाहता हूँ, लेकिन मेरे अंदर आत्मविश्वास की कमी है।
पता नहीं, मैं लिख पाऊँगा कि नहीं…।'
क्यों नहीं लिख पाएँगे? जरूर लिखेंगे। मेरी वजह से आपके काम में कोई रुकावट न होगी। मुझसे जो भी मदद
होगी, हो सकेगी, मैं जरूर दूँगी… आप निश्चिंत रहिए। मेरे भैया ने कहा है कि 'तुम्हें अपने पति की हर मदद
करनी होगी… जिससे वह अपने रास्ते पर आगे बढ़ सकें…।' मुझे अपने लिए कुछ नहीं चाहिए… आप जो खिलाएँगे
और जो पहनाएँगे, वह मेरे लिए स्वादिष्ट और मूल्यवान होगा। आप बेफिक्र होकर लिखिए, पढ़िए… आपको निरंतर
मेरा सहयोग प्राप्त होगा…।'
उसकी आँखें भारी हो रही थीं और अचानक वह नींद के आगोश में चली गई।
आशू कुछ देर तक उसके मुखमंडल को देखता रहा। वह सोचने लगा कि गौरा नाम की इस लड़की के साथ उसका
जीवन कैसे बीतेगा… लेकिन लाख कोशिश करने पर भी वह सोच नहीं पाया। वह अँधेरे में देखने लगा।

एक दिन (कविता)
-अखिलेश्वर पांडेय-
मैं तुम्हारे शब्दों की उँगली पकड़ कर
चला जा रहा था बच्चे की तरह
इधर-उधर देखता
हँसता, खिलखिलाता
अचानक एक दिन
पता चला
तुम्हारे शब्द
तुम्हारे थे ही नहीं

अब मेरे लिए निश्चिंत होना असंभव था
और बड़ों की तरह
व्यवहार करना जरूरी।।

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