



प्रियंका कुमारी (संवाददाता)
हिंदू धर्म में सिंदूर को सुहाग की निशानी माना जाता है। हिंदू धर्म में विवाह के बाद सुहागिन महिलाओं द्वारा सिंदूर आवश्यक रूप से लगाया जाता है। साथ ही इसे बहुत ही पवित्र माना गया है। सिंदूर एक तरह से सुहागिन महिलाओं का पर्याय बन चुका है। सिंदूर न केवल धार्मिक दृष्टि से महिलाओं के लिए जरूरी माना गया है बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी इसका विशेष महत्व है।
सिंदूर का महत्व महत्व
भारतीय संस्कृति में सिंदूर लगाने की परम्परा बहुत ही पुरानी है। रामायण से लेकर महाभारत काल तक में सिंदूर का जिक्र मिलता है। विवाह के समय दूल्हे द्वारा दुल्हन की मांग भरी जाती है। यह भी माना जाता है कि महिला जितना लंबा सिंदूर अपनी मांग में भरती है उसके पति की उम्र भी उतनी ही लंबी होती है। इसलिए सुहागिन महिलाओं द्वारा रोज मांग में सिंदूर सजाया जाता है।
सिंदूर से संबंधित पौराणिक कथा
एक पौराणिक कथा के अनुसार जब एक बार माता सीता अपनी मांग में सिंदूर भर रही थी तो हनुमान जी ने वहां आकर पूछा की माता आप अपनी मांग में ये लाल रंग क्यों भर रही हैं। इस पर सीता जी ने उत्तर दिया की श्री राम मेरी मांग में ये सिंदूर देखकर बहुत प्रसन्न होते हैं इसलिए मैं इसे अपनी मांग में सजाती हूं।
तब हनुमान जी ने सोचा की अगर सीता माता की मांग में जरा-सा सिंदूर देखकर भगवान राम इतना प्रसन्न हो जाते हैं तो मेरे पूरे शरीर पर सिंदूर देखकर कितना प्रसन्न होंगे। तब वह अपने पूरे शरीर पर सिंदूर लगाकर भरी सभा में चले जाते हैं। यह दृश्य देखकर सभी हंसते हैं लेकिन प्रभु श्री राम बहुत-ही प्रसन्न होते हैं। माना जाता है कि तभी से हनुमान जी पर सिंदूर चढ़ाने की प्रथा चली आ रही है।
पढ़िए वैज्ञानिक फायदे
सनातन संस्कृति के अधिकतर रीति-रिवाजों से वैज्ञानिक कारण भी जुड़ा होता है। सिंदूर मुख्यतः महिलाओं द्वारा बीच की मांग निकालकर सीधी रेखा में लगाया जाता है। सिंदूर में पारा धातु पाया जाता है, जो ब्रह्मरंध्र ग्रंथि (सिर के सबसे ऊपरी बिंदु पर एक छेद या मार्ग) के लिए बहुत ही अच्छा माना जाता है। इससे महिलाओं का मानसिक तनाव कम होता है। साथ ही इससे रक्तचाप भी नियंत्रित रहता है।