खुफिया, निगरानी और टोही विमान बनेंगे देश की पहचान, अमेरिका ने उत्पादन को भारत सरकार के साथ बढ़ाई सक्रियता

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टोही विमान (प्रतीकात्मक फोटो)- India TV Hindi

प्रियंका कुमारी (संवाददाता)

भारत और अमेरिका की दोस्ती लगातार नए मुकाम को छू रही है। अब वह दिन दूर नहीं, जब भारत खुफिया, निगरानी और टोही विमानों के निर्माण का हब बनने वाला है। रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने के साथ ही भारत अब डिफेंस उपकरणों का बड़ा सप्लायर भी बनकर उभरा है। रक्षामंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार कभी उपकरणों के लिए विदेशों पर निर्भर रहने वाला भारत अब 75 देशों को रक्षा और युद्ध सामग्री की सप्लाई कर रहा है। भविष्य में इसमें और अधिक तेजी आने की उम्मीद है। भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करने के लिए अब अमेरिका के सहयोग से भारत में नए विमानों, उनके इंजन समेत अन्य महत्वपूर्ण रक्षा उपकरणों का जल्द उत्पादन शुरू हो सकता है।

अमेरिका के रक्षा विभाग के मुख्यालय पेंटागन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि उनका देश आईएसआर (खुफिया, निगरानी एवं टोही) और जमीन आधारित पारंपरिक युद्ध सामग्री से संबंधित क्षेत्रों में सैन्य प्रणालियों का उत्पादन करने के लिए भारत सरकार के साथ सक्रियता से बातचीत कर रहा है। रक्षा मंत्री के कार्यालय में दक्षिण एशिया नीति के निदेशक सिद्धार्थ अय्यर ने प्रतिष्ठित हडसन इंस्टीट्यूट द्वारा वाशिंगटन में मंगलवार को आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि भारत के साथ एक पारस्परिक रक्षा खरीद समझौता करने के प्रयास भी किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘‘हम आईएसआर और जमीन आधारित पारंपरिक युद्ध सामग्री से जुड़े क्षेत्रों में सैन्य प्रणालियां खरीदने के लिए भारत सरकार के साथ सक्रियता से बातचीत कर रहे हैं।’’

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत अमेरिका की बढ़ रही साझेदारी

अब हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भी भारत और अमेरिकी की रणनीतिक साझेदारी बढ़ रही है। भारतीय-अमेरिकी अय्यर ने कहा कि आपूर्ति व्यवस्था की सुरक्षा को अंतिम रूप देने के लिए भारत और अमेरिका के बीच बातचीत में अच्छी प्रगति हो रही है। उन्होंने कहा, ‘‘हम पारस्परिक रक्षा खरीद समझौता करने के लिए आक्रामक तरीके से आगे बढ़ रहे हैं, जो अमेरिकी और भारतीय रक्षा उद्योग के लिए बाजार तक पहुंच बढ़ाएगा।’’ अय्यर के मुताबिक, यह संबंध पेंटागन की शीर्ष प्राथमिकताओं में से एक है। उन्होंने कहा, ‘‘हमारा मानना है कि अमेरिका-भारत संबंधों का सही दिशा में आगे बढ़ना महज आवश्यक ही नहीं, बल्कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में हमारी रणनीति को अंजाम देने के लिए अनिवार्य भी है।’

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