CG Election 2023: छत्‍तीसगढ़ का बस्तर भी परिवारवाद से अछूता नहीं, उत्तर से दक्षिण तक कायम है रिश्ते की राजनीति

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CG Chunav 2023: पहले का वादा पूरा नहीं तो नया घोषणा पत्र क्यों? BJP ने  कांग्रेस से पूछा सवाल - Chhattisgarh chunav 2023 If the earlier promise is  not fulfilled then why

भूमि शर्मा (सवांददाता)

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1972 का दौर और इसी साल से पनपी परिवारवाद की कहानी। कांकेर क्षेत्र से शुरू होते-होते 1990 तक पूरे दक्षिण तक इसका प्रभाव दिखा। अरविंद नेताम कश्यप परिवार मानकूराम सोढ़ी और कर्मा परिवार का नाम परिवारवाद की लिस्ट में सबसे पहले आता है। भाजपा हो या कांग्रेस दोनों ही इससे अछूते नहीं हैं। विधानसभा चुनाव को देखते हुए राजनीतिक दलों ने अपनी रणनीतियों पर काम करना शुरू कर दिया है।

बात अगर बस्तर जिले की हो रही तो परिवारवाद का मुद्दा अपने आप एक चर्चा का विषय बन जाता है। बस्तर में उत्तर से दक्षिण तक परिवारवाद की राजनीति चलती आ रही है। चाहे भाजपा हो या कांग्रेस दोनों ही इससे अछूते नहीं हैं। अब राज्य में विधानसभा चुनाव का आगमन होने वाला है और राजनीतिक दलों ने अपनी रणनीतियों पर काम करना शुरू कर दिया है, जिससे चुनाव में जीत हासिल कर सके।

कांकेर क्षेत्र से शुरू होते-होते 1990 तक पूरे दक्षिण तक इसका प्रभाव देखने को मिला। अरविंद नेताम, कश्यप परिवार, मानकूराम सोढ़ी और कर्मा परिवार का नाम परिवारवाद की लिस्ट में सबसे पहले आता है। उत्तर बस्तर में पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम, मध्य बस्तर में पूर्व मंत्री मानकूराम सोढ़ी, भाजपा में कश्यप परिवार, दक्षिण में कर्मा परिवार पूरे क्षेत्र में छाए हुए है। इनके अलावा पूर्व मंत्री स्वर्गीय महेन्द्र कर्मा और पूर्व मंत्री एवं सांसद स्वर्गीय बलीराम कश्यप का परिवार भी परिवारवाद की लिस्ट में टॉप पर है।

विधानसभा और लोकसभा चुनाव

छत्तीसगढ़ में इसी साल विधानसभा चुनाव और एक साल के भीतर लोकसभा चुनाव हो जाएंगे। ये दोनों ही चुनाव राजनिति में सक्रिय इन परिवारों के लिए बेहद महत्वपूर्ण माने जा रहे है। कर्मा परिवार की कमान विधायक देवती कर्मा के पास है। वहीं, कश्यप परिवार की राजनीति पूर्व मंत्री व भाजपा के प्रदेश महामंत्री केदार कश्यप को सौंपी गई है। विधानसभा चुनाव को देखते हुए कर्मा, सोढ़ी, कश्यप और नेताम परिवार ने अपनी दो-दो सदस्यों की उम्मीदवारी पेश कर दी है।

भाजपा के बलीराम कश्यप

बस्तर में की राजनीति पारी काफी लंबी रही। छत्तीसगढ़ के राज्य गठन के बाद वह सांसद चुने गए थे और भानपुरी सीट से विधायक रहे। 1990 में वह विधायक तो उनके उनके बेटे दिनेश कश्यप जगदलपुर से विधायक बने। वहीं, उनके अन्य बेटे केदार कश्यप 2003 में विधायक चुने गए और मंत्री पद की जिम्मेदारी सौंपी गई। वह भाजपा सरकार के 15 साल तक मंत्री बने रहे। पिता के निधन के बाद हुए उपचुनाव में दिनेश कश्यप को चुना गया था। इस समय दिनेश कश्यप की पत्नी वेदवती कश्यप जिला पंचायत बस्तर की अध्यक्ष है। इस बार केदार कश्यप और दिनेश कश्यप विधानसभा और लोकसभा चुनाव में टिकट के लिए दावेदारी कर रहे हैं।

कर्मा परिवार से मां-बेटे की दावेदारी

आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए स्वर्गीय महेन्द्र कर्मा की पत्नी विधायक देवती कर्मा और उनके बेटे छविन्द्र कर्मा ने अपनी दावेदारी की है। 2018 के विधानसभा चुनाव में भी मां-बेटे ने अपनी दावेदारी दी थी। हालांकि, देवती को चुनाव लड़ाया गया। वह भाजपा के भीमा मंडावी से चुनाव हार गई थी। नक्सलियों द्वारा भीमा की हत्या के बाद जब उपचुनाव हुए तो देवती कर्मा को विधायक की जिम्मेदारी सौंपी गई। वर्तमान में देवती कर्मा विधायक, उनकी बेटी तुलिका कर्मा जिला पंचायत अध्यक्ष हैं। इस परिवार के आधे दर्जन सदस्य पंचायत और नगरीय निकाय से लेकर अन्य संस्थानों में पदों में हैं और कांग्रेस संगठन में भी सक्रिय हैं।

कांग्रेस के अब तक के सबसे बड़े योद्धा

एक समय था जब बस्तर से लेकर दिल्ली तक कांग्रेस के सबसे बड़े योद्धा रहे स्वर्गीय मानकूराम सोढ़ी का नाम था। 1962 में मानकूराम सोढ़ी पहली बार विधायक बने और चार दशक तक राजनीति में एक्टिव रहे। इस दौरान उन्होंने सांसद और मंत्री का पद भी संभाला। उनके बेटे शंकर सोढ़ी 1993 में विधायक बने। दो बार विधायक रहने के बाद 2003 में वह चुनाव हार गए। लोकसभा चुनाव में भी उनकी किस्मत ने साथ नहीं दिया। आगामी विधानसभा चुनाव के लिए शंकर सोढ़ी ने कोंडागांव और छोटे भाई धरम सोढ़ी ने जगदलपुर से टिकट की मांग की है। चुनाव जीतने का यह उनका आखिरी अवसर होगा।

नेताम परिवार का दबदबा खत्म

बस्तर जिले से  माने जाते थे। 1972 में स्वर्गीय विश्राम ठाकुर कांकेर से विधायक बने थे। इसी सीट पर अब उनके बेटे अरविंद सांसद चुने गए है। 1995 में अरविंद नेताम ने केंद्र सरकार में कृषि राज्य मंत्री का पद संभाला। वहीं, उनके छोटे बेटे शिव नेताम मध्यप्रदेश सरकार में मंत्री थे। अरविंद नेताम की पत्नी छबीला नेताम भी सांसद रह चुकी हैं। परिवार की बेटी डा प्रीति नेताम ने भी विधानसभा का चुनाव लड़ा, पर जीत नहीं पाई। बार-बार पार्टी बदलने के कारण अरविंद का राजनीति में प्रभाव कम होता चला गया। कांग्रेस का दामन छोड़ चुके अरविंद अब अपने भाई शिव नेताम को कांकेर सीट से चुनाव लड़ा रहे है।

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