Rani Durgavati: अकबर के हाथों न मरना था रानी दुर्गावती को कबूल, वीरांगना ने खुद के सीने में उतार ली थी तलवार

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तीन बार खदेड़ा था अकबर की सेना को रानी दुर्गावती ने,अनूठी है इनकी जीवन गाथा Rani  Durgavati Biography - YouTube

प्रिया कश्यप(सवांददाता )

Balidan Diwas: ‘चंदेलो की बेटी थी, गोंडवाने की रानी थी, चंडी थी, रणचंडी थी,वो तो दुर्गावती भवानी थी।’ अकबर के जुल्म के आगे झुकने से इनकार करते हुए रानी दुर्गावती ने 24 जून, 1564 को मुगलों के खिलाफ लड़ते हुए खुद ही अपनी तलवार सीने में घुसा ली और शहीद हो गई। 24 जून यानी उनके शहादत के दिन को ‘बलिदान दिवस’ के तौर पर मनाया जाता है।

आत्मसम्मान की रक्षा हेतु अपने प्राणों का दिया बलिदान

देश की महानतम वीरांगनाओं में रानी दुर्गावती का नाम सबसे पहले याद किया जाता है। इन्होंने मातृभूमि और अपने आत्मसम्मान की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया। कालिंजर के राजा कीरत सिंह की पुत्री और गोंड राजा दलपत शाह की पत्नी रानी दुर्गावती का नाम इतिहास के पन्नों में महानतम वीरांगनाओं की अग्रिम पंक्ति में दर्ज किया जाता है।

अकबर की थी इनके राज्य पर नजर

गोंडवाना की रानी दुर्गावती ने अपने आखिरी दम तक मुगल सेना से युद्ध लड़ा और अपने राज्य पर कब्जा करने के मुगल शासक अकबर के इरादे को कभी भी पूरा नहीं करने दिया। रानी दुर्गावती का जन्म दुर्गा अष्टमी के दिन 24 जून को 1524 को बांदा जिले में हुआ। वह कलिंजर के चंदेला राजपूत राजा कीर्तिसिंह चंदेल की इकलौती संतान थी।

बचपन से युद्ध कलाओं का था हुनर

रानी दुर्गावती को बचपन से ही घुड़सवारी, तलवारबाजी, तीरंदाजी जैसी युद्ध कलाओं का हुनर था। उन्होंने सबसे ज्यादा तीर और बंदूक चलाने जैसे युद्ध कलाओं की शिक्षा हासिल की थी।

दुर्गावती का विवाह गोंड राजा दलपत शाह से हुआ था। उनके पास गोंड वंशजों के 4 राज्यों, गढ़मंडला, देवगढ़, चंदा और खेरला, में से गढ़मंडला पर अधिकार था। विवाह के महज 7 साल बाद ही राजा दलपत का निधन हो गया। पति के निधन के समय दुर्गावती का पुत्र केवल 5 साल का था। इस दौरान रानी को अपना सम्राज्य और बेटे दोनों को संभालना था। रानी ने गोंडवाना का शासन अपने हाथों में लिया। उनके राज्य का केंद्र वर्तमान जबलपुर था, जिसपर रानी ने लगभग 16 साल तक शासन किया।

जब मालवा के सुल्तान बाज बहादुर ने हमला बोला

1556 में मालवा के सुल्तान बाज बहादुर ने गोंडवाना पर हमला बोला। इस दौरान रानी दुर्गावती ने अपनी बहादुरी दिखाई और उनके साहस के सामने वह बुरी तरह पराजित हो गया। 1562 में अकबर ने मालवा को मुगल साम्राज्य में मिला लिया। वहीं, रीवा पर आसफ खान का कब्जा हो गया।

रीवा और मालवा दोनों गोंडवाना की सीमाएं को छूती थी, जिसके कारण मुगलों के निशाने पर गोंडवाना भी आया। मुगलों ने गोंडवाना को भी अपने साम्राज्य में मिलाने की कोशिश की। आसफ खान ने गोंडवाना पर हमला किया, लेकिन रानी दुर्गावती की बहादुरी के आगे खान की पराजय हो गई। 1564 में आसफ खान ने फिर हमला किया। युद्ध में रानी अपने हाथी पर सवार होकर पहुंची और इस दौरान उनका बेटा भी साथ ही था।

शरीर पर लगे कई तीर, लेकिन नहीं मानी हार

रानी दुर्गावती के शरीर पर कई तीर लगे थे और वह गंभीर रूप से घायल हो गई थी। उन्हें ये संदेह हो गया था कि वह अब जिंदा नहीं बच पाएगी। इसी दौरान उन्होंने अपने एक सैनिक को उन्हें मार देने का आदेश दिया, लेकिन सैनिक ने उनकी यह बात स्वीकार नहीं की। रानी ने दुश्मनों के हाथों मरने से पहले खुद को ही मारना बेहतर समझा। उन्होंने बहादुरी से अपनी तलवार खुद ही सीने में मार ली और शहीद हो गई।

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