



विनीत माहेश्वरी (संवाददाता)
BJP और TMC ने एकदूसरे पर लगाया आरोप
टीएमसी सांसद बनर्जी ने भाजपा कार्यकर्ताओं पर मंदिर में प्रवेश करने से रोकने का आरोप लगाया। वहीं, भाजपा ने बनर्जी पर बिना अनुमति के प्रवेश पाने की कोशिश करने का आरोप लगाया। अभिषेक बनर्जी ने इस मामले में एक बयान जारी किया और शांतनु ठाकुर समेत भाजपा कार्यकर्ताओं पर मंदिर को ‘अपवित्र’ करने का आरोप लगाया। बता दें कि ठाकुरनगर शांतनु ठाकुर का लोकसभा क्षेत्र है।
इस राजनीतिक बवाल के बाद हम सभी के मन में यह सवाल उठ सकता है कि आखिर ये मतुआ समुदाय है कौन और क्यों बंगाल की राजनीति में ये महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। तो आइए जानते हैं आखिर कौन हैं ये मतुआ समुदाय के लोग, क्या है इनका इतिहास और कैसे बंगाल की राजनीति को बदलने का रखते हैं दम।
- पश्चिम बंगाल की अनुसूचित जाति की आबादी में मतुआ समुदाय के सदस्यों का एक बड़ा हिस्सा है, मुख्य रूप से धार्मिक उत्पीड़न के कारण 1950 के दशक से तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से पलायन कर राज्य में आते रहे थे। ठाकुरनगर उनका पारंपरिक आधार और गढ़ माना जाता है।
- पश्चिम बंगाल में लगभग 3 करोड़ मतुआ हैं और इस समुदाय का कम से कम पांच लोकसभा सीटों और नदिया, उत्तर और दक्षिण 24 परगना जिलों की लगभग 50 विधानसभा सीटों पर चुनावी प्रभाव है।
- भारत के विभाजन के बाद बड़ी संख्या में मतुआ समुदाय के लोग पूर्वी पाकिस्तान से बंगाल आए जो अब बांग्लादेश है। ऐसे मतुआ शरणार्थी उत्तर 24 परगना, दक्षिण 24 परगना, नदिया, जलपाईगुड़ी, सिलीगुड़ी, कूचबिहार और पूर्व और पश्चिम बर्धमान जिलों में फैले हुए हैं।
- माना जाता है कि देश के बंटवारे के बाद हरिचंद-गुरचंद ठाकुर के वंशज प्रमथ रंजन ठाकुर और उनकी पत्नी बिनापानी देवी ने मतुआ महासंघ की छत्रछाया में राज्य के मतुआ समुदाय को एकजुट किया और उन्हें भारतीय नागरिकता बनाने के लिए कई आंदोलन किए।
मानवतावाद में विश्वास करता है समुदाय
गुरुचंद ने जाति के विभाजन के बिना एक सामाजिक व्यवस्था की रूपरेखा तैयार करनी शुरू कर दी और उन्होंने कहा-मतुआ एक हैं। मतुआ और दूसरों के बीच कोई अंतर नहीं है। यह मानवतावाद में विश्वास करता था और लिंग भेद को भी स्वीकार नहीं करता था, महिलाओं को पुरुषों के समान मानता था। मतुआ ने पारम्परिक हिंदू धर्म को चिह्नित करने वाले मूर्तिपूजा और अनुष्ठानों को खारिज कर दिया।
यह समुदाय शुरू से कृषि से जुड़ा रहा है
निम्न जाति के किसानों का यह दर्शन उन लोगों से अलग था, जिन्होंने आदि शंकराचार्य और वैष्णवों के वेदांत दर्शन का अनुसरण किया था। मतुआ का मानना है कि ब्राह्मणवाद को दास वर्ग में शूद्रों को बनाए रखने के लिए बनाया गया था। हरिचंद कहते थे कि वेदांत दर्शन से ऐसी मानसिक स्थिति बनायी जाती है ताकि निचली जातियां कभी भी अपने स्तर से ऊपर ना उठ पाएं। गुरुचंद ठाकुर ने जोर देकर कहा, “वह कैसे भूखा रह सकता है, जो धर्म का पालन करता है?” उनके दर्शन के अनुसार, भक्ति के साथ कर्म करना ही सर्वोच्च मार्ग है।
इस समुदाय के अधिकांश सदस्यों का व्यवसाय कृषि थी। इसलिए, इस समुदाय की विश्वास प्रणाली में पारिवारिक जीवन महत्वपूर्ण है। “यह धर्म वह नहीं है, जो संन्यासी अनुसरण करते हैं।” इस समुदाय में परिवार और इसका प्रचार महत्वपूर्ण है। मतुआ ध्वज के दो रंग हैं- लाल और सफेद। लाल मासिक धर्म का प्रतीक है, जबकि सफेद शुद्धता का प्रतीक है, लेकिन हरिचंद ने कहा कि शादी के बाद ही परिवार बने। यहां संक्षेप में मतुआ के चरित्र और उनकी पृष्ठभूमि से परिचय कराया गया, जो पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में टीएमसी और बीजेपी दोनों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है।
CAA को जल्द लागू कराना चाहता है मतुआ समुदाय
मतुआ समुदाय की लंबे समय से नागरिकता को लेकर मांग की जा रही है। नागरिकता प्राप्त करना इस शरणार्थी समुदाय की लंबे समय से चली आ रही मांगों में से एक है। फिर से उनका समर्थन पाने के लिए बीजेपी ने पिछले साल पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों के अपने घोषणापत्र में राज्य में सत्ता में आने पर पहली कैबिनेट में सीएए को लागू करने का वादा किया था।
दरअसल, ठाकुरनगर के लोग चाहते हैं कि नागरिकता कानून (सीएए) बहुत जल्दी लागू हो जाए। इस कानून के लागू होने से बांग्लादेश से सालों पहले आकर बसे हिंदू शरणार्थी को बड़ा लाभ मिलने की उम्मीद है। जिनके पास जमीन की कोई स्थायी पट्टा भी नहीं है, उन्हें भारत की नागरिकता मिल जाएगी।