



विनीत माहेश्वरी (संवाददाता )
22 नवंबर 2018 का दिन था। UP के बाहुबली अतीक अहमद ने जमीन के झगड़े में अपने ही गुर्गे रहे जैद को पिटवाया। उसे शक था कि जैद, उमेश पाल के उकसावे के बाद उस जमीन को हड़प रहा था, जिस पर अतीक की नजर थी। इसी दौरान अतीक ने कहा था- ‘जिस दिन उमेश पाल को मरवाऊंगा, टीवी पर 15 दिन यही चलेगा।’24 फरवरी 2023 को 4 साल 4 महीने बाद, ये सच साबित हुआ। उमेश पाल का मर्डर हुआ और आरोप अतीक पर लगा। हालांकि, अतीक ने जो कहा था, वो पूरा सच नहीं था, मर्डर के वीडियो के साथ-साथ टीवी पर बुलडोजर भी चलता नजर आ रहा है। उमेश पाल मर्डर केस में 20 मार्च को भी अतीक के गुर्गे गुलाम मोहम्मद के घर और दुकान पर बुलडोजर चला। अतीक का पूरा गैंग और परिवार इस बुलडोजर की चपेट में है।अतीक के मोहल्ले में घुसते ही शुरू होता है टूटे घरों का सिलसिला
प्रयागराज में दो इलाके इन दिनों चर्चा में है। पहला धूमनगंज का चकिया और दूसरा सुलेमसराय का जयंतीपुर मोहल्ला। चकिया में घुसते ही टूटे मकान दिखने लगते हैं, जिनका मलबा बता देता है कि ये कभी आलीशान रहे होंगे।इन्हीं में एक घर करीब 10 हजार वर्गमीटर में बना था। यही अतीक का घर था। अब यहां सिर्फ मलबा पड़ा है, विदेशी नस्ल के तीन कुत्ते बचे हैं और उन्हें संभालने के लिए एक नौकर। आस-पास और भी टूटे घर हैं, उसके करीबियों के।सुलेमसराय इलाके में भी एक आलीशान घर है। ये अतीक का नहीं है, लेकिन अतीक का नाम इससे जुड़ा है। यहां उमेश पाल रहते थे, जिनकी 24 फरवरी को हत्या कर दी गई थी। आरोप अतीक के बेटे और उसकी गैंग पर है। उमेश के परिवार की सुरक्षा के लिए आसपास 50 पुलिसवाले मौजूद हैं। गली की दीवारों पर बम और गोलियों के निशान हैं, जिनसे उमेश पर हमला किया गया था।उमेश हत्याकांड के बाद मैं प्रयागराज पहुंचा तो यही दो मकान मेरी मंजिल थे। उमेश की हत्या से एक बार फिर प्रयागराज में अतीक के खौफ की बातें शुरू हो गई हैं। UP-बिहार के थानों में दर्ज 104 केस, इनमें 16 हत्या के, भाई पर 53 केस, पत्नी 25 हजार की इनामी, दो बेटे जेल में, एक फरार। ये UP में 5 बार विधायक, एक बार सांसद रहे माफिया अतीक अहमद और उसके परिवार की प्रोफाइल है।अतीक के रसूख की कई कहानियां है। इसकी शुरुआत उसके गांव से होती है। एक वक्त था, जब अतीक के सामने कोई खड़ा नहीं हो पाता था, अब उसकी प्रॉपर्टी पर बुलडोजर चलना आम है। योगी सरकार में उसकी 1300 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति तोड़ी या अटैच की जा चुकी है। हालांकि, जो लोग अतीक को जानते हैं, वे बताते हैं कि वह 2500 करोड़ से ज्यादा की बेनामी संपत्ति का मालिक है।तीन किमी का रास्ता, 6 से ज्यादा मकान टूटे प्रयागराज के सिविल लाइन से चकिया की दूरी लगभग 5 किमी है। इस इलाके में घुसते ही चौफटका ओवरब्रिज के सामने तीन मंजिला बिल्डिंग है। ये अतीक अहमद का ऑफिस था। करीब 9000 वर्ग फीट में बना। अवैध निर्माण की वजह से इस इमारत को सितंबर 2020 में तोड़ दिया गया। ढाई साल हो गए, लेकिन मलबा आज भी पड़ा है।मंगलवार, 21 मार्च को पुलिस ने इस टूटे ऑफिस पर छापा मारा। इसकी दीवारों से 74 लाख रुपए और 9 पिस्टल मिलीं। पुलिस को पता चला था कि अतीक के गुर्गे अब भी यहां से गैंग चला रहे हैं। मौके से 5 लोगों को अरेस्ट किया गया।मैंने आसपास के लोगों से टूटी बिल्डिंग के बारे में बात शुरू की, तो बोले- ये इकलौती नहीं है, यहां ऐसे कई मकान हैं। सब योगी सरकार में गिराए गए हैं। आगे बढ़े तो 2 किमी के रास्ते में तीन से चार मकान अतीक के ऑफिस की तरह टूटे मिले। एक जगह मैं फोटो लेने लगा, तो एक शख्स ने आकर फोटो लेने की वजह पूछी। फिर किसी को फोन मिलाया कि मीडिया वाले आए हैं।इसके बाद कहने लगा, ‘अच्छी-खासी आबादी के घरों को सरकार खंडहर बनाने पर तुली हुई है।’ इन टूटे मकानों में एक अतीक के भाई अशरफ का भी है। बाकी उसके करीबियों के हैं। मोहल्ले वाले बताते हैं कि जो मकान गिराए गए हैं, उन्हें बहुत कम कीमत पर खरीदा गया था, इनकी कीमत करोड़ों में है।दो किमी बाद मैं उस जगह पहुंचा, जहां अतीक का घर था। प्रशासन ने इसे ऐसे तोड़ा कि एक दीवार भी नहीं बची। सिर्फ मलबा और खाली मैदान है। आसपास के लोगों ने बताया कि मेन गेट से घर तक पहुंचने के लिए लगभग 300 मीटर चलना पड़ता था। अतीक ने अपने रसूख के दम पर इतना बड़ा घर बिना नक्शा पास कराए बनवाया था।सितंबर 2020 में यह घर भी योगी सरकार ने ध्वस्त कर दिया था। मलबे से पटी जमीन के एक हिस्से में अतीक के विदेशी नस्ल के कुत्ते रहते हैं। 5 में दो की मौत हो चुकी है। कुत्तों को खाना खिलाने की जिम्मेदारी हीरा की है। वह तीन साल से यहां काम कर रहा है। हीरा कुत्तों के बाड़े में घुसता है, कुत्तों को उठाता है तो वे भौंकने लगते हैंं। हीरा कहता है, “रोओ मत मेरे शेरों, हमारा भी वक्त आएगा। अभी वक्त खराब चल रहा है।’इसके बाद हीरा मेरी ओर मुड़ता है, कहता है, ‘अतीक भाई इन कुत्तों को बहुत प्यार करते हैं। ये एक टाइम बिरयानी और चिकन खाते हैं, एक टाइम ब्रेड और मक्खन।’हीरा कहता है- ‘मैं पहले उनकी गाय और भैंसे देखा करता था। जब से माहौल गर्म हुआ है, तब से इन कुत्तों की देखरेख भी करने लगा। कोई मैडम हैं, जिन्हें प्रशासन ने कुत्तों की देखभाल की जिम्मेदारी दी है। वे एक टाइम इन्हें देखने आती हैं।’चकिया में ध्वस्त इमारतें अतीक के रसूख की निशानियां हैं। यहां लगभग हर 200 मीटर की दूरी पर एक टूटा मकान दिखाई दे जाता है। 2022 में विधानसभा चुनाव से पहले लूकरगंज इलाके में एक बड़ी जमीन अतीक के कब्जे से छुड़ाई गई थी। यहां कुछ मकान बनाकर कब्जा किया गया था। तब CM योगी आदित्यनाथ ने कहा था यहां गरीबों के लिए मकान बनाए जाएंगे। भूमि पूजन भी किया, लेकिन अब तक कुछ बनना शुरू नहीं हो पाया है।गांव में घर का पता पूछा तो युवक बोला- तुम सलामत रहो, यही हमारी दुआ
अतीक के शहर वाले घर से लगभग डेढ़ किमी दूर कसारी मसारी गांव है। गांव के लोग कैमरे पर नहीं दिखना चाहते। वे बताते हैं, ‘अतीक का परिवार यहां से कई साल पहले चकिया में बस चुका है। यहां के घर भी रिश्तेदारों और उसके गुर्गों को दे दिए हैं।मैंने पूछा- अतीक का घर किधर है, ये सुनते ही सभी ने इनकार में सिर हिला दिया। घर का रास्ता कोई नहीं बताता। थोड़ा आगे बढ़ने पर एक युवक मिला, उससे घर का पता पूछा। उसने छूटते ही पूछा, ‘पुलिसवाले हो क्या।’मैंने कहा ‘नहीं, मीडिया से हूं। अतीक के पुराने मकान पर जाना है, कहां है?’ वह कहता है कि ‘बहुत अंदर है, ढूंढ नहीं पाओगे।’ मैंने कहा ‘साथ चलो, बता देना।’ उसने कहा कि ‘यह घर तो पुश्तैनी है। अतीक के पुरखे थोड़ी न क्रिमिनल थे। खेती-किसानी करके घर बनाया था।’एक संकरी गली में घुसते ही कुछ लोग खड़े मिले। मैं उनके पास रुक गया। बात शुरू की, फिर पूछा अतीक का घर कौन सा है? जवाब मिला, ‘यहां हर घर में अतीक है। ज्यादातर लोग अतीक के रिश्तेदार हैं। अब अतीक यहां नहीं आता, तो गांव का उससे मतलब भी नहीं है।’मैं कैमरे पर बात करने को कहता हूं, तो वे बिना कुछ कहे निकल जाते हैं। जाने से पहले नसीहत भी दे जाते हैं कि अतीक के घर नहीं जाना। ये अतीक का रसूख है या खौफ, कई गलियों में घूमने के बाद एक आदमी भी उसका घर बताने को तैयार नहीं हुआ।31 साल पहले अतीक का परिवार चकिया में बसाकसारी मसारी गांव से दो किमी दूर नगर निगम कार्यकारिणी के उपाध्यक्ष अखिलेश सिंह का घर है। वे इस बार वार्ड नं-71 से पार्षद का चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। अखिलेश सिंह को किसी मंत्री से मिलने जाना था। पर बात करने को तैयार हो गए।बाहर आए और बताने लगे, ‘अतीक के कसारी मसारी को केसरिया गांव बोलते हैं। यह अतीक का पुश्तैनी गांव है। अतीक का परिवार 1992 में गांव छोड़कर चकिया में बस गया था। अतीक गांव में रहते हुए दबंग हो चुका था। लोगों की जमीन पर कब्जा करना, मारपीट करना उसका शगल था।’‘उसके गांव, शहर और मोहल्ले में कोई भी उसके खिलाफ बात नहीं करेगा। वहां उसकी रॉबिनहुड वाली इमेज है। वह रुपए-पैसे से सबकी मदद करता है। कोई उसके खिलाफ नहीं जा सकता है। उसका रसूख आज भी है। यही वजह है कि लोग उसे मानते हैं। अतीक के गुर्गे जब किसी हिंदू को परेशान करते, तो हम लोग शिकायत करते थे। वे सुनते भी थे और इंसाफ भी करते थे।’मैंने कहा- घर है कहां, ये तो बता दो, तो बोला, ‘यह सही नहीं है। यहां कोई अतीक की बात भी नहीं करेगा। न कोई अतीक के नाम पर मदद करेगा। अब तुम सलामत रहो यही हमारी दुआ है।’ये धमकी या सलाह, जो भी थी, मैं लेकर आगे बढ़ गया। साइकिल से जा रहे एक शख्स से अतीक अहमद के पुश्तैनी घर का पता पूछा, तो उसने भी कहा, पुलिसवाले हो क्या? मैंने कहा, नहीं। वह रास्ता बताता हुआ निकल गया।उमेश के घर पर 50 से ज्यादा पुलिसवालों का पहरा
अतीक के घर के बाद मैं जयंतीपुर मोहल्ले पहुंचा। यहां उमेश पाल का घर है। घर से 100 मीटर दूर से ही पुलिस के जवान दिखने लगते हैं। उमेश को जहां गोली मारी गई थी, उस गली में लाइन से करीब 20 पुलिसवाले बैठे हैं। मैं अंदर जाने लगा, तो उन्होंने मेरा आइडेंटिटी कार्ड मांगा। कार्ड देखने के बाद अंदर जाने दिया गया। 10 से 15 कदम की गली की दीवारों पर अब भी बम के निशान हैं। आगे लोहे के एक दरवाजे पर ताला लगा मिला, पता चला कि यह उमेश का पुराना मकान है। हत्या के बाद से ही यह बंद है।आगे एक गेट पार करने के बाद दूसरा घर बना है। यह भी उमेश पाल का है। घर के सामने एक तरफ लॉन है। इसमें टेंट के अंदर उमेश पाल और उनके दोनों गनर संदीप और राघवेंद्र की फोटो लगी है। सामने फूल रखे हैं। यहां आ रहे लोग उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं।लॉन के बाद तीन मंजिला मकान है। मकान की ओर जाने वाली गैलरी में भी 20 पुलिसवाले बैठे हैं। मुझसे कहा कि इंतजार कीजिए अभी परिवार वाले बुलाएंगे, तभी बात हो पाएगी। करीब 15 मिनट बाद उमेश पाल की मां शांति पाल अंदर बुलाती हैं।उन्हें देखकर पता चल जाता है कि अभी-अभी रोई हैं। बात शुरू करते ही गुस्से से भर जाती हैं। कहती है, ‘मेरे बेटे को मारने के पीछे अतीक और अशरफ हैं। जब तक दोनों नहीं मारे जाते, तब तक न मेरे बेटे की आत्मा को, न मुझे शांति मिलेगी। जिन्होंने मारा है, वे तो भागे हुए हैं। हम लोग कुछ नहीं कर पाएंगे। सरकार उन्हें पकड़े और मारे। मैंने सुना है कि योगी जी ने कहा है कि माफिया को मिट्टी में मिला देंगे। मैं उनसे कहूंगी, ऐसा ही करें। जब तक अतीक नहीं मरेगा, उसके गुर्गे नहीं पकड़े जाएंगे।’अतीक अहमद का खौफ उमेश पाल की मां के चेहरे और बातों में भी दिखता है। वे कहती हैं कि अतीक के मरने तक हमारे बच्चे सुकून से नहीं जी पाएंगे, न ही नाते-रिश्तेदार घर आएंगे। डर तो लगा ही रहेगा।बात करते-करते उमेश की मां फिर रोने लगती हैं। कहती हैं, ‘उमेश के छोटे-छोटे बच्चे हैं। सबसे छोटा वाला तो जानता भी नहीं कि उसके पापा नहीं रहे। पत्नी सदमे में है। मेरा एक बेटा कोरोना से मर गया और दूसरे को बदमाशों ने मार दिया। अभी चाय पीने बैठे, तो उसकी याद आ रही थी। इसी कमरे में हम बैठे रहते थे। वह लोगों से यहीं मिलता था। जिस दिन हत्या हुई, वह सुबह मेरे पैर छूकर निकला था। जैसे ही गोली-बम चले, हम लोगों ने देखा कि वहां धुआं ही धुआं था। हम तो कुछ न कर पाए। अब सरकार से ही उम्मीद है।अतीक ने स्क्रैप और जमीन के वायदा कारोबार से बनाई बेनामी संपत्ति अतीक की कहानी 70 के दशक से शुरू होती है। तब इलाहाबाद में नई-नई इमारतें बन रही थीं। जमीनों के सौदे हो रहे थे। इसी दौरान यहां के लड़के इस धंधे के जरिए अमीर बनने लगे। दबंगों के साथ जाकर धमकाना, हत्या करना और अपहरण करना आम बात थी। इन्हीं लोगों में अतीक भी शामिल था।अतीक पर 17 साल की उम्र में मोहम्मद गुलाम की हत्या का आरोप लगा। इस केस में अतीक रिहा हो चुका है। जानने वाले बताते हैं कि उसके डर के आगे किसी ने उसके खिलाफ गवाही भी नहीं दी। इसके बाद अतीक का आतंक बढ़ता ही गया।अतीक के इलाके में चांद बाबा नाम का गैंगस्टर था। पुलिस भी उसके इलाके में जाने से डरती थी। चांद बाबा से निपटने के लिए नेताओं और पुलिसवालों ने अतीक को संरक्षण दिया। एक दिन चांद बाबा की हत्या कर दी गई। आरोप अतीक पर लगे, लेकिन अतीक के कदम नहीं रुके। 1989 के विधानसभा चुनाव से वह राजनीति में आ गया। यहां से इलाहाबाद में अतीक का दौर शुरू हो गया।वायदा कारोबार से बिना सामने आए करोड़ों कमाए
जेपी सिंह कहते हैं, जमीन के धंधे में एक तरीका होता है कि हमने जमीन खरीदी और उसके मालिक से सीधे रजिस्ट्री करा ली। दूसरा तरीका बिल्डर अपनाते हैं कि किसी की जमीन का सेल एग्रीमेंट करवा लेते हैं। अतीक ने वायदा कारोबार शुरू किया। जिसकी जमीन उसे पसंद आई, उस किसान से बात की। इलाहाबाद में कोई भी अतीक को जमीन देने से मना नहीं कर सकता।अपने हिसाब से या उसके हिसाब से कीमत तय की और जब जमीन बिकी तो अतीक के गुर्गे उस किसान से रजिस्ट्री कराकर जमीन बेचते रहे। उसके हिस्से का पैसा देते रहे। ऐसे में अतीक पर्दे के पीछे ही रहा।अतीक का वायदा कारोबार इलाहाबाद से लेकर UP के कई शहरों में चलता रहा। इसी तरह स्क्रैप के धंधे में उसका नाम चला। वह बहुत कम कीमत में स्क्रैप खरीदता और महंगी कीमत पर बेचता। अतीक रेलवे में जहां टेंडर डालता, वहां कोई और टेंडर नहीं डालता था। यही वजह रही वह रात-दिन पैसा कमाता रहा। इन्हीं रुपयों से क्राइम की दुनिया चलाता रहा और बड़ा गैंग तैयार कर लिया।उमेश पाल हत्याकांड के 26 दिन बाद पुलिस ने अतीक अहमद के ऑफिस पर छापा मारा। इस ऑफिस की दीवारों और फर्श में पैसे और हथियार दबाकर रखे गए थे। पुलिस ने दीवार और फर्श तोड़कर 500 और 200 के नोट की गडि्डयां बरामद कीं। कार्रवाई के दौरान प्रयागराज के पुलिस कमिश्नर रमित शर्मा भी मौजूद रहे। पुलिस ने दफ्तर में काम करने वाले 5 लोगों को गिरफ्तार किया है।