न्यायालय का हथौड़ा:बंद लिफ़ाफ़े वाली संस्कृति पर सुप्रीम कोर्ट का करारा प्रहार

Advertisement

Judicial system in india | यह आचरण न्यायिक संस्कृति के विरुद्ध | Patrika  News

उमा शर्मा (संवाददाता )

Advertisement

बंद लिफ़ाफ़े की संस्कृति। दरअसल, बंद लिफ़ाफ़ा कहते ही देश में हर कोई समझ जाता है कि इसका मतलब क्या है! छोटे बाबू से लेकर बड़े से बड़े अफ़सर तक, इस संस्कृति से हर कोई वाक़िफ़ है। कहा जाता है कि बिना लिफ़ाफ़े के कोई फाइल आगे नहीं बढ़ती। हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ने जिस बंद लिफ़ाफ़े पर प्रहार किया वह कोई और ही था।इस बंद लिफ़ाफ़े में एक रिपोर्ट थी जो सरकार की तरफ़ से कोर्ट में पेश की गई थी। इसके पहले भी कई रिपोर्ट बंद लिफ़ाफ़े में पेश की जा चुकी हैं। कोर्ट इसके पहले भी कह चुका है कि ये बंद लिफ़ाफ़े वाली संस्कृति बंद कीजिए। सोमवार को दरअसल, वन रैंक, वन पेंशन देने की सरकार की रिपोर्ट बंद लिफ़ाफ़े में पेश की गई थी। कोर्ट का कहना था कि पेंशन की रिपोर्ट में ऐसा क्या है जिसे बंद लिफ़ाफ़े में दिया जा रहा है?आख़िर सरकार को अपने रिटायर्ड लोगों को बकाया भुगतान करना है, इसमें गोपनीयता का सवाल कहाँ से आ गया? कोई बहुत ही सेंसिटिव केस हो और उसकी रिपोर्ट के खुलने से बहुत बड़ा अनर्थ होने का अंदेशा हो तो बात समझ में आती है। पेंशन की रिपोर्ट से ऐसे कौन से दंगे भड़कने वाले हैं, जो बंद लिफ़ाफ़े में दी जा रही है? कोर्ट ने यहाँ तक कहा कि बंद लिफ़ाफ़े वाला यह तरीक़ा निष्पक्ष न्याय की दिशा के एकदम विपरीत है और इसीलिए हम इस संस्कृति को हमेशा के लिए बंद करना चाहते हैं। मुख्य न्यायाधीश के इस सख़्त रवैए को देखकर अटार्नी जनरल के कान खड़े हुए और उन्होंने लिफ़ाफ़ा खोलकर कोर्ट में उस रिपोर्ट को पढ़ा, तब जाकर निर्णय सुनाया गया।जैसे कब तक बकाया पेंशन का भुगतान किया जाए और बचे हुए लोगों को कितना रुपया, कब दिया जाए आदि। दरअसल, सरकारी सिस्टम में भेड़चाल प्रचलित है। कोई एक रिपोर्ट गोपनीयता की वजह से बंद लिफ़ाफ़े में माँगी गई होगी, बस चल पड़ी बंद लिफ़ाफ़े की संस्कृति। किसी ने नहीं सोचा कि आख़िर बंद लिफ़ाफ़े में कौन सी रिपोर्ट देनी चाहिए और कौन सी नहीं।वैसे, राज्यों में और उनके छोटे- छोटे सरकारी दफ़्तरों में जो बंद लिफ़ाफ़े की संस्कृति अब तक पाली- पोसी जा रही है, सही मायनों में उसे बंद करने की ज़रूरत है। वह बंद हो गई तो ग़रीबों, मजलूमों के काम की फ़ाइलें सरकारी दफ़्तरों में महीनों- वर्षों धूल नहीं खाएँगी बल्कि तुरत – फुरत काम होने लगेंगे। सही मायने में स्वराज तभी आएगा!

Leave a Comment

Advertisement
What does "money" mean to you?
  • Add your answer