क्या है Platform Tickets का इतिहास और क्या है इसके पीछे की वजह, विस्तार से जानें

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क्या है Platform Tickets का इतिहास और क्या है इसके पीछे की वजह, विस्तार से  जानें - What is the history of Platform Tickets and what is the reason  behind it know

विनीत माहेश्वरी (संवादाता)

नई दिल्ली, जेएनएन। भारत में लंबी दूरियां तय करने के लिए ज्यादातर लोग भारतीय रेलवे का सहारा लेता है। छुक-छुक चलती रेल गाड़ी लोगों को सकुशल उनके गंतव्य तक पहुंचाती है। रेलवे स्टेशन से लेकर रेलवे प्लेटफार्म और रेलगाड़ी तक बहुत सारी ऐसी चीजें हैं, जिनके बारे में शायद आप नहीं जानते होंगे। जब भी आपको ट्रेन से सफर करना होता है, आप जरूर तमाम चीजों का ध्यान रखते होंगे- जैसे टिकट, रस्ते में कौन-कौन से बड़े स्टेशन पड़ेंगे और खाने-पीने की चीजे आदि।

इसके अलावा, एक महत्वपूर्ण चीज है भारतीय रेलवे में प्लेटफॉर्म टिकट का चलन। जब भी हम रेलवे स्टेशन पर अपने किसी परिचित को लेने या छोड़ने जाते हैं, तो हमें प्लेटफॉर्म टिकट लेना आवश्यक होता है। क्या आपको पता है कि प्लेटफॉर्म टिकट का क्या इतिहास है और इसके पीछे की वजह क्या है। आज हम आपको इस लेख के माध्यम से इस बारें में विस्तार से बताएंगे।

प्लेटफॉर्म टिकट साल 1893 में जर्मनी में शुरू हुआ था। इसके बाद से यह दुनिया भर के रेलवे द्वारा अपनाया गया। वहीं, कुछ समय बाद यह भारतीय रेलवे ने भी हमेशा के लिए अपनाया। आपको बता दें कि भारतीय रेलवे में पहले ट्रेन के डिब्बे आंतरिक रूप से नहीं जुड़े थे, यानि ट्रेन के एक डिब्बे से दूसरे डिब्बे में नहीं जाया जा सकता था।

इस कारण ट्रेन टिकट एग्जामिनर यात्रियों की टिकट चेक करने के लिए एक डिब्बे से उतरकर दूसरे डिब्बे में जाते थे। इसके लिए उन्हें रेलवे स्टेशन पर ट्रेन के रूकने का इंतजार करना पड़ता था। इस वजह से कई बार टीटीई सभी यात्रियों को टिकट चेक नहीं कर पाते थे, जिसके बाद रेलवे ने रेलवे स्टेशनों पर ही यात्रियों की टिकट जांचने की योजना बना ली।

जब रेलवे ने प्लेटफॉर्म पर ही टिकट चेक करना शुरू किया। उस दौरान उन लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा था। जो लोग अपने सगे- संबधियो को लेने या फिर छोड़ने के लिए पहुंचते थे, उन्हें काफी देर तक लाइन में खड़ा होना पड़ता था। टिकट न होने की वजह से उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ता था।

भारतीय रेलवे ने टिकट प्लेटफॉर्म की शुरुआत पुणे जंक्शन से की थी। ब्रिटिश काल के समय इसका दाम बहुत कम था, जो कि बाद में बढ़कर कई सालों तक पांच रुपये रहा। हालांकि, साल 2015 में इसके दामों में बढ़ोतरी की गई और यह 10 रुपये कर दिया गया।

आपको बता दें कि प्लेटफॉर्म टिकट केवल प्लेटफॉर्म से मिलता है। वहीं, यह टिकट सिर्फ दो घंटे तक वैध होता है। इसके होने से रेलवे में बेवजह आने वाली भीड़ को रोका जा सकता है। क्योंकि, कुछ रेलवे स्टेशनों पर बिना किसी मतलब के लोग वाई-फाई के लिए पहुंच जाते हैं। ऐसे में उन्हें प्लेटफॉर्म पर पहुंचने के लिए रेलवे को 10 रुपये का भुगतान करना होगा।

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