



विनीत माहेश्वरी (संवाददाता)
कोच्ची, एजेंसी। लड़कों को यह सिखाया जाना चाहिए कि उन्हें किसी लड़की या महिला को उसकी सहमति के बिना नहीं छूना चाहिए। यह सबक उन्हें स्कूलों और परिवारों में दिया जाना चाहिए। ये बात केरल हाईकोर्ट ने कही है।
वहीं, समाज में यौन उत्पीड़न के बढ़ते मामलों को ध्यान में रखते हुए अदालत ने कहा है कि अच्छे व्यवहार व शिष्टाचार के पाठ को प्राथमिक कक्षा स्तर से ही पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए। साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि लड़कों को “नहीं” का मतलब “नहीं” समझना चाहिए। इसके अलावा समाज से अदालत ने यह आग्रह किया कि उन्हें स्वार्थी और हकदार होने के बजाय निस्वार्थ और जेंटल व्यक्ति होना सिखाएं।
जस्टिस देवन रामचंद्रन ने कहा कि पुरुषत्व की पुरातन अवधारणा बदल गई है लेकिन इसे और बदलने की जरूरत है। साथियों और अन्य सामाजिक प्रभावों द्वारा प्रबलित लड़के बहुत कम उम्र से ही अक्सर कुछ निश्चित सेक्सिस्ट रूढ़ियों के साथ बड़े होते हैं। लड़की/महिला का आदर और सम्मान दिखाना पुराने जमाने की बात नहीं है; इसके विपरीत, हर समय के लिए अच्छा गुण है। सेक्सिज्म स्वीकार्य या “कूल” नहीं है। शक्ति का प्रदर्शन तब होता है जब वह किसी लड़की/महिला का सम्मान करता है। सम्मान अनिवार्यता है, जिसे बहुत कम उम्र में ही विकसित करने की आवश्यकता है। महिला के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है, इससे उसके पालन-पोषण और व्यक्तित्व का पता चलता है।