विपक्षी एकता का फॉर्म्युला

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BJP only benefits from Nitish Kuma efforts opposition unity is weakening again in the battle of Main and Third Front - India Hindi News - नीतीश कुमार के प्रयासों से भाजपा को

विनीत माहेश्वरी (संवाददाता)

बिहार में महागठबंधन सरकार बनने के बाद तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार बीजेपी से मुकाबला
करने के लिए फॉर्म्युला खोजने में व्यस्त दिखे और साल का अंत आते-आते नीतीश कुमार ने संकेत
दे दिए कि वह 2024 से पहले तेजस्वी यादव को बिहार की कमान सौंप कर दिल्ली आ सकते हैं।
उसी तरह उत्तर प्रदेश में हार के बाद अखिलेश यादव ने संगठन और सामाजिक समीकरण का
विस्तार करने की शुरुआत की। हालांकि ऐसी पहल हमेशा होती रही है लेकिन इस बार विपक्षी दलों ने
इसमें एक रणनीति दिखाई। पार्टी बीजेपी के सामने हिंदुत्व या राष्ट्रवाद जैसे मसलों पर डिफेंसिव हो
जाती थी। लेकिन अब तमाम दल इस साल अपनी विचारधारा पर स्टैंड लेते हुए दिखे। वे इन
भावनात्मक मुद्दों से खुद को अलग कर बुनियादी मुद्दों पर सियासी संघर्ष करते नजर आए जिसका
आंशिक लाभ उन्हें जरूर मिला। लेकिन इसकी असल परीक्षा 2024 के आम चुनाव में होगी।
जानकारों के अनुसार विपक्ष के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही थी और अब तक वह इसे कमजोरी
मानने से भी परहेज करती थी। लेकिन अब पहली बार इस साल इन दलों ने अलग-अलग प्लैटफॉर्म
पर स्वीकार किया कि मुद्दों को नहीं पहचान पाना उनकी बड़ी सियासी कमजोरी रही। हालांकि
आक्रामक बीजेपी के सामने विपक्षी पार्टियां इन मुद्दों को किस तरह रखेंगी और हिंदुत्व तथा राष्ट्रवाद
के सामने खुद को विकल्प के रूप में किस तरह पेश करेंगी, अब भी इस बारे में स्पष्टता नहीं है। वह
भी खासकर आम चुनावों में जहां उनका मुकाबला नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली बीजेपी से होगा। क्या
इन सीखों से सबक लेते हुए अगले साल खुद को तैयार करने में विपक्ष सफल होगा? 2024 का आम
चुनाव का दंगल बहुत कुछ इसी बात पर निर्भर रहेगा।
हालांकि विपक्षी एकता की कोशिशों के लिहाज से 2022 नकारात्मक ही रहा। इस दिशा में कोशिशें
टेक ऑफ नहीं कर पाईं। हालांकि विपक्षी दलों के नेताओं का तर्क रहा कि 2022 में अधिकतर दलों
का मूल ध्येय अपना संगठन मजबूत करना और उसका विस्तार करना था। अगले साल के अंत तक
विपक्षी एकता की कोई गंभीर संभावना और सूरत नजर आ सकती है।

2023 की नई तैयारी
यह साल इसलिए भी यादगार कहा जाएगा कि बीजेपी ने अपना जाना-पहचान रास्ता छोड़कर
मुस्लिम, सिख और ईसाई समुदायों तक पहुंच बढ़ाने की बड़ी शुरुआत की। संघ की ओर से भी पहल
की गई। 2023 इस लिहाज से दिलचस्प साल होगा। यह देखने के लिए कि इसका कैसा नतीजा
आया। बीजेपी ने मुस्लिम विरोधी बयान देने के लिए अपनी पार्टी प्रवक्ता नूपुर शर्मा को पार्टी से
निष्कासित तक किया। पार्टी को अहसास हुआ कि अब ध्रुवीकरण की राजनीति का नेगेटिव नतीजा
सामने आ रहा है। शायद यही कारण है कि उसने नौकरी और दूसरे बुनियादी मुद्दों पर वापसी करने
के संकेत भी दिए। पीएम नरेंद्र मोदी ने 2023 के अंत तक लगभग आठ लाख सरकारी नौकरियां देने
का वादा किया। इसके अलावा 2022 आते-आते बीजेपी की नरेंद्र मोदी पर अति निर्भरता के साइड
इफेक्ट दिखने लगे। 2024 से पहले पार्टी के लिए इस मोर्चे पर काम करने की चुनौती भी रहेगी।
हालांकि बीजेपी को लगता है कि 2023 उसके लिए बेहतर होगा और जी-20 आयोजन के साथ राम
मंदिर निर्माण का पूरा होना उसे 2024 से पहले विपक्षी दलों के सामने निर्णायक बढ़त दे देगा।
लेकिन पार्टी को पता है कि विपक्ष भी इन मुद्दों को काउंटर करने के लिए अभी से रणनीति बनाने
में व्यस्त है। भारत जोड़ो पदयात्रा और दूसरे ऐसे सियासी इवेंट विपक्ष ने प्लान कर रखे हैं। वहीं
बीजेपी के सामने एक बड़ी चुनौती अगले साल सामाजिक समीकरण में संतुलन बनाने की भी होगी
जहां विपक्षी दल ओबीसी कार्ड आक्रामक रूप से खेल रही है। कमंडल के सामने मंडल की राजनीति
के पनपने का दांव भी बीजेपी के सामने नई चुनौती ला रहा है। वह किस तरह से इसका सामना
करती है उससे भी आगे की सियासी दिशा तय होगी।

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