



विनीत माहेश्वरी (संवाददाता)
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का स्वर्णिम इतिहास देश के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास के साथ जुड़ा हुआ
है। कांग्रेस का जन्म 22 दिसंबर सन 1885 में हुआ। कांग्रेस के संस्थापक एलन ऑक्टेवियन ह्यूम
थे। एलेन ओक्टेवियन ह्यूम का जन्म सन 1829 को इंग्लैंड में हुआ था। वह अंग्रजी शासन की
सबसे प्रतिष्ठित बंगाल सिविल सेवा में पास होकर सन 1849 में ब्रिटिश सरकार के एक अधिकारी
बने। सन 1857 की गदर के समय वह इटावा के कलक्टर थे। लेकिन ए ओ ह्यूम ने खुद ब्रटिश
सरकार के खिलाफ आवाज़ उठाई और सन 1882 में पद से अवकाश ले लिया और कांग्रेस यूनियन
का गठन किया। उन्हीं की अगुआई में मुंबई में पार्टी की पहली बैठक हुई थी। शुरुआती वर्षों में
कांग्रेस पार्टी ने ब्रिटिश सरकार के साथ मिल कर भारत की समस्याओं को दूर करने की कोशिश की
और इसने प्रांतीय विधायिकाओं में हिस्सा भी लिया। लेकिन सन 1905 में बंगाल के विभाजन के
बाद पार्टी का रुख़ कड़ा हुआ और अंग्रेज़ी हुकूमत के ख़िलाफ़ आंदोलन शुरु हए। इसी बीच महात्मा
गाँधी भारत लौटे और उन्होंने ख़िलाफ़त आंदोलन शुरु किया। शुरु में बापू ही कांग्रेस के मुख्य
विचारक रहे। इसको लेकर कांग्रेस में अंदरुनी मतभेद गहराए। चित्तरंजन दास एनी बेसेंट मोतीलाल
नेहरू जैसे नेताओं ने अलग स्वराज पार्टी बना ली। साल 1929 में ऐतिहासिक लाहौर सम्मेलन में
जवाहर लाल नेहरू ने पूर्ण स्वराज का नारा दिया। पहले विश्व युद्ध के बाद पार्टी में महात्मा गाँधी
की भूमिका बढ़ी हालाँकि वो आधिकारिक तौर पर इसके अध्यक्ष नहीं बने लेकिन कहा जाता है कि
सुभाष चंद्र बोस को कांग्रेस से निष्कासित करने में उनकी मुख्य भूमिका थी। स्वतंत्र भारत के
इतिहास में कांग्रेस सबसे मज़बूत राजनीतिक ताकत के रूप में उभरी। महात्मा गाँधी की हत्या और
सरदार पटेल के निधन के बाद जवाहरलाल नेहरु के करिश्माई नेतृत्व में पार्टी ने पहले संसदीय
चुनावों में शानदार सफलता पाई और ये सिलसिला सन 1967 तक लगातार चलता रहा। पहले
प्रधानमंत्री के तौर पर जवाहर लाल नेहरू ने धर्मनिरपेक्षता आर्थिक समाजवाद और गुटनिरपेक्ष विदेश
नीति को सरकार का मुख्य आधार बनाया जो कांग्रेस पार्टी की पहचान बनी। नेहरू की अगुआई में
सन 1952 सन 1957 और सन 1962 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने अकेले दम पर बहुमत
हासिल करने में सफलता पाई। सन 1964 में जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद लाल बहादुर शास्त्री
के हाथों में कमान सौंप गई लेकिन उनकी भी सन 1966 में ताशकंद में रहस्यमय हालात में मौत हो
गई। इसके बाद पार्टी की मुख्य कतार के नेताओं में इस बात को लेकर ज़ोरदार बहस हुई कि अध्यक्ष
पद किसे सौंपा जाए। आख़िरकार पंडित नेहरु की बेटी इंदिरा गांधी के नाम पर सहमति बनी। देश की
आजादी के संघर्ष से जुड़े सबसे मशहूर और जाने-माने लोग इसी कांग्रेस का हिस्सा थे। गांधी-नेहरू से
लेकर सरदार पटेल और राजेंद्र प्रसाद तक आजादी की लड़ाई में आम हिंदुस्तानियों की नुमाइंदगी
करने वाली पार्टी ने देश को एकता के सूत्र में बांधने की कोशिश की थी। एलेन ओक्टेवियन ह्यूम
सन 1857 के गदर के वक्त इटावा के कलेक्टर थे। ह्यूम ने खुद ब्रटिश सरकार के खिलाफ आवाज
उठाई और 1882 में पद से अवकाश लेकर कांग्रेस यूनियन का गठन किया। उन्हीं की अगुआई में
बॉम्बे में पार्टी की पहली बैठक हुई थी. व्योमेश चंद्र बनर्जी इसके पहले अध्यक्ष बने। शुरुआती वर्षों में
कांग्रेस पार्टी ने ब्रिटिश सरकार के साथ मिलकर भारत की समस्याओं को दूर करने की कोशिश की
और इसने प्रांतीय विधायिकाओं में हिस्सा भी लिया लेकिन 1905 में बंगाल के विभाजन के बाद पार्टी
का रुख कड़ा हुआ और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आंदोलन शुरू हुए। दादाभाई नौरोजी और
बदरुद्दीन तैयबजी जैसे नेता कांग्रेस के साथ आ गए थे। आजादी के बाद सन 1952 में देश के पहले
चुनाव में कांग्रेस सत्ता में आई। सन 1977 तक देश पर केवल कांग्रेस का शासन था। लेकिन सन
1977 में हुए चुनाव में जनता पार्टी ने कांग्रेस से सत्ता की कुर्सी छीन ली थी। हालांकि तीन साल के
अंदर ही सन 1980 में कांग्रेस वापस गद्दी पर काबिज हो गई। सन 1989 में कांग्रेस को फिर हार
का सामना करना पड़ा। दादा भाई नौरोजी 1886 और 1893 में कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। सन 1887 में
बदरुद्दीन तैयबजी तो सन 1888 में जॉर्ज यूल कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे। सन 1889 से सन 1899
के बीच विलियम वेडरबर्न फिरोज़शाह मेहता आनंदचार्लू अल्फ्रेड वेब राष्ट्रगुरु सुरेंद्रनाथ बनर्जी आगा
खान के अनुयायी रहमतुल्लाह सयानी स्वराज का विचार देने वाले वकील सी शंकरन नायर बैरिस्टर
आनंदमोहन बोस और सिविल अधिकारी रोमेशचंद्र दत्त कांग्रेस अध्यक्ष रहे। इसके बाद हिंदू समाज
सुधारक सर एनजी चंदावरकर कांग्रेस के संस्थापकों में शुमार दिनशॉ एडुलजी वाचा बैरिस्टर
लालमोहन घोष सिविल अधिकारी एचजेएस कॉटन गरम दल व नरम दल में पार्टी के टूटने के वक्त
गोपाल कृष्ण गोखले वकील रासबिहारी घोष शिक्षाविद मदनमोहन मालवीय बीएन दार सुधारक राव
बहादुर रघुनाथ नरसिम्हा मुधोलकर नवाब सैयद मोहम्मद बहादुर भूपेंद्र नाथ बोस ब्रिटेन के हाउस
ऑफ लॉर्ड्स में पहले भारतीय सदस्य बने एसपी सिन्हा एसी मजूमदार पहली महिला कांग्रेस अध्यक्ष
एनी बेसेंट सैयद हसन इमाम और नेहरू परिवार के मोतीलाल नेहरू सन 1900 से सन 1919 के
बीच कांग्रेस अध्यक्ष रहे। सन 1915 में अफ्रीका से लौटकर भारत आए मोहनदास करमचंद गांधी का
प्रभाव कांग्रेस की विचारधारा व आंदोलन तय करने में सन 1920 के आसपास से साफ दिखना शुरू
हो गया था। जो गांधी के जीवन के बाद तक भी बना हुआ है। सन 1920 से भारत की आज़ादी
अर्थात सन 1947 के बीच के युग में कांग्रेस अध्यक्ष पंजाब केसरी लाला लाजपत राय थे जिन्होंने
सन 1920 के कलकत्ता अधिवेशन की अध्यक्षता की। स्वराज संविधान बनाने में अग्रणी रहे सी
विजयराघवचारियार जामिया मिल्लिया के संस्थापक हकीम अजमल खान देशबंधु चितरंजन दास
मोहम्मद अली जौहर शिक्षाविद मौलाना अबुल कलाम आज़ाद कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। सन 1924 में
बेलगाम अधिवेशन की अध्यक्षता महात्मा गांधी ने की थी और यहां से कांग्रेस के ऐतिहासिक स्वदेशी
सविनय अवज्ञा और असहयोग आंदोलनों की नींव पड़ी थी। सरोजिनी नायडू मद्रास के एडवोकेट
जनरल रहे एस श्रीनिवास अयंगर मुख्तार अहमद अंसारी कांग्रेस अध्यक्ष रहे। गांधी के अनुयायी
जवाहरलाल नेहरू सन 1929 में पहली बार कांग्रेस अध्यक्ष बने थे सरदार वल्लभभाई पटेल नेली
सेनगुप्ता राजेंद्र प्रसाद नेताजी सुभाषचंद्र बोस और गांधी के अनुयायी जेबी कृपलानी भारत को
आज़ादी मिलने तक कांग्रेस अध्यक्ष रहे। सन 1948 और सन 1949 में पट्टाभि सीतारमैया कांग्रेस
के अध्यक्ष रहे और यही वह साल था जब गांधी की हत्या हो चुकी थी. महात्मा गांधी का प्रभाव आज
तक भी भारतीय राजनीति पर है लेकिन उनकी हत्या के बाद कांग्रेस का नेहरू युग शुरू हुआ। पहले
प्रधानमंत्री बन चुके पंडित जवाहर लाल नेहरू के समय में जिस साल संविधान लागू हुआ। सन 1950
में कांग्रेस के अध्यक्ष साहित्यकार पुरुषोत्तमदास टंडन थे। सन 1951 से सन 1954 तक खुद नेहरू
अध्यक्ष रहे। पंडित नेहरू युग में 1955 से सन 19 59 तक यूएन धेबार कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। सन
1959 में पहली बार कांग्रेस अध्यक्ष इंदिरा गांधी बनी थी। सन 1960 से सन 1963 तक नीलम
संजीव रेड्डी नेहरू के निधन के सन 1964 से सन 19 67 तक कामराज कांग्रेस अध्यक्ष रहे। हालांकि
नेहरू का निधन 1964 में हो चुका था लेकिन कांग्रेस का अगला इंदिरा गांधी युग लाल बहादुर शास्त्री
की मौत के बाद शुरू होता है। सन 1966 में पहली बार देश की पहली और इकलौती महिला
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी बनीं। कामराज के साथ उनका सत्ता संघर्ष काफी चर्चित रहा। इसके बाद ही
इंदिरा की लीडरशिप और उनके आयरन लेडी होने के ख्याति मिलने लगी। इंदिरा गांधी के प्रभाव के
समय में सन 1968से सन 1969 तक निजालिंगप्पा 1970से सन 1971 तक बाबू जगजीवन राम
1972से सन 1874 तक शंकर दयाल शर्मा और सन 1975 से सन 1977 तक देवकांत बरुआ कांग्रेस
अध्यक्ष रहे।
सन 1977 से सन 1978 के बीच केबी रेड्डी ने कांग्रेस को संभाला लेकिन इमरजेंसी के बाद कांग्रेस
टूटी तो सन 1978 में इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस की अध्यक्ष वे स्वयं बनीं। कुछ समय को
छोड़कर 1984 में अपनी हत्या के पहले तक इंदिरा ही अध्यक्ष रहीं। कांग्रेस ने करीब 15 साल का
इंदिरा गांधी युग देखा और इसके बाद राजीव गांधी युग शुरू हुआ कांग्रेस अध्यक्ष इंदिरा गांधी की
हत्या के बाद राजीव गांधी प्रधानमंत्री भी बने और सन 1985 में कांग्रेस के अध्यक्ष भी बन गए थे।
जब प्रधानमंत्री व कांग्रेस अध्यक्ष राजीव गांधी की हत्या हुई तब फिर कांग्रेस के सामने अध्यक्ष को
लेकर संकट खड़ा हो गया थाक्योंकि शुरुआत में सोनिया गांधी ने सक्रिय राजनीति में आने में रुचि
नहीं दिखाई थी। इसी कारण सन 1992 से सन 1996 तक पीवी नरसिम्हाराव ने कांग्रेस का नेतृत्व
किया। सन 1996 से सन 19 98 तक गांधी परिवार के वफादार सीताराम केसरी अध्यक्ष रहे।
सोनिया गांधी का सक्रिय राजनीति में पदार्पण हुआ और सन 1998 से सन 2017 तक करीब 20
वर्षो तक सोनिया ही कांग्रेस की अध्यक्ष रहीं। राहुल गांधी को सन 2017 में पार्टी की कमान सौंपी
गई लेकिन सन 2019 के आम चुनावों में बड़ी हार के बाद राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद छोड़ने की
पेशकश की और कहा था कि कांग्रेस अध्यक्ष गांधी परिवार के बाहर के नेता को होना चाहिए। लेकिन
इसपर सहमति नही हुई। तबसे कार्यवाहक अध्यक्ष के रूप में सोनिया गांधी ही ने कांग्रेस का नेतृत्व
कर रही है। सन 1991सन 2004 सन 2009 में कांग्रेस ने दूसरी पार्टियों के साथ मिलकर केंद्र की
सत्ता हासिल की। आजादी के बाद कांग्रेस कई बार विभाजित हुई। लगभग 50 नई पार्टियां इस
संगठन से निकल कर बनीं। इनमें से कई निष्क्रिय हो गए तो कईयों का भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और
जनता पार्टी में विलय हो गया। कांग्रेस का सबसे बड़ा विभाजन सन 1967 में हुआ। जब इंदिरा गांधी
ने अपनी अलग पार्टी बनाई जिसका नाम कांग्रेस (आर) रखा। सन 1971 के चुनाव के बाद चुनाव
आयोग ने इसका नाम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस कर दिया। राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी का काम देखना
एआईसीसी की जिम्मेदारी होती है. राष्ट्रीय अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के अलावा पार्टी के महासचिव
खजांची पार्टी की अनुशासन समिती के सदस्य और राज्यों के प्रभारी इसके सदस्य होते हैं.हर राज्य
में कांग्रेस की ईकाई है जिसका काम स्थानीय और राज्य स्तर पर पार्टी के कामकाज को देखना होता
है। कांग्रेस की कमान इस समय मल्लिकार्जुन खड़गे संभाल रहे है। पिछले कुछ वर्षों से कांग्रेस अपना
वजूद बचाने के लिए संघर्ष कर रही है। कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा इस प्रयास का एक हिस्सा है
जिसका नेतृत्व राहुल गांधी कर रहे है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)