



विनीत माहेश्वरी (संवाददाता )
संयुक्त राष्ट्र, 23 दिसंबर संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी प्रतिनिधि रुचिरा कंबोज ने
कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के गैर-स्थायी सदस्य के रूप में 2021-22 के कार्यकाल के
दौरान कई मौकों पर भारत को ‘‘अकेला खड़ा होना पड़ा’’, लेकिन उसने कभी अपने सिद्धांतों के साथ
कोई समझौता नहीं किया।
भारत ने 2021-22 में परिषद के निर्वाचित सदस्य के रूप में अपने दो साल के कार्यकाल में दूसरी
बार एक दिसंबर से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) की अध्यक्षता संभाली। इससे पहले
अगस्त 2021 में उसने सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता की थी।
दिसंबर महीने के लिए 15 देशों की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अध्यक्ष कंबोज ने बृहस्पतिवार को
कहा, ‘‘ पिछले दो साल में हमने शांति, सुरक्षा और समृद्धि के लिए बात की। आतंकवाद जैसे
मानवता के दुश्मनों के खिलाफ आवाज उठाने में कभी कोई संकोच नहीं किया।’’
दिसंबर के महीने के लिए सुरक्षा परिषद के गैर-सदस्य देशों की अंतिम बैठक में कंबोज ने पिछले
सप्ताह विदेश मंत्री एस. जयशंकर की अध्यक्षता में बहुपक्षीय सुधारों और आतंकवाद-रोधी नीति पर
हुई महत्वपूर्ण बैठकों के साथ-साथ भारत की अध्यक्षता में इस महीने के लिए परिषद के एजेंडे को
रेखांकित किया।
परिषद में अगले सप्ताह अवकाश रहेगा, उससे पहले इस महीने इसे गैर-सदस्य देशों की आखिरी
बैठक माना जा रहा है।
कंबोज ने कहा कि भारत के यूएनएससी कार्यकाल के दौरान, ‘‘ऐसे कई मौके आए जब हमें अकेले
खड़े होना पड़ा, जबकि उस समय हमारे पास एक विकल्प था कि हम उन सिद्धांतों को छोड़ दें
जिनमें हम वास्तव में विश्वास करते हैं।’’
उन्होंने कहा कि कुछ मामलों में परिषद के कुछ सदस्यों के साथ, ‘‘हमारे वास्तविक मतभेद थे’’, जैसे
कि जलवायु परिवर्तन से निपटने में सुरक्षा परिषद की भूमिका के मुद्दे पर, वहां भारत का ‘‘विरोध
सिद्धांतों पर आधारित था।’’
कंबोज ने कहा कि भारत इस तथ्य से अच्छी तरह वाकिफ है कि सुरक्षा परिषद में सुधार आज समय
की मांग है।
उन्होंने कहा, ‘‘ हमारे कार्यकाल के बाद यह विश्वास बढ़ेगा ही। परिषद के इस कार्यकाल के बाद भी
हम इस बात पर कायम रहेंगे कि बदलाव का जितना अधिक विरोध किया जाएगा, इस निकाय के
फैसलों की प्रासंगिकता व विश्वसनीयता खोने का खतरा उतना अधिक होगा।’’
सुरक्षा परिषद में तत्काल सुधार की मांग करने वाले प्रयासों में भारत सबसे आगे रहा है, जो वर्तमान
चुनौतियों से निपटने में काफी बंटा हुआ नजर आया है।
परिषद में पिछले दो वर्षों में भारत के कार्यकाल पर कंबोज ने संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों से कहा कि
भारत इस बात से हमेशा वाकिफ था कि ‘‘सुरक्षा परिषद में कोई भी विचार रखते समय, हम 1.4
अरब भारतीयों या 1/6 मानवता का प्रतिनिधित्व करते हैं। हालांकि हम इस तथ्य से भी अवगत हैं
कि हम अपने कार्यकाल के दौरान ‘ग्लोबल साउथ’ की आवाज भी रहे, जिसने विकासशील देशों के
विशेष महत्व के मुद्दों को रेखांकित किया।’’
उन्होंने शांति मिशन में भारत के सबसे अधिक योगदान देने के तथ्य को भी रेखांकित किया, साथ
ही प्रस्ताव 2,589 पर भी ध्यान आकर्षित किया जो शांतिरक्षकों के खिलाफ अपराधों के मामलों में
जवाबदेही की मांग करता है।
उन्होंने भारत के एक जनवरी, 2021 को परिषद का सदस्य बनने से पहले सितंबर 2020 में
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के उस बयान का जिक्र किया जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत दुनिया के
सबसे बड़े लोकतंत्र होने की प्रतिष्ठा और अनुभव का इस्तेमाल पूरी दुनिया के हित के लिए करेगा।
उन्होंने कहा कि इस महीने परिषद ने अफगानिस्तान, आर्मेनिया, सीरिया, हैती, यूक्रेन, कांगो
लोकतांत्रिक गणराज्य सहित कई प्रमुख मुद्दों पर चर्चा की।
कंबोज ने कहा, ‘‘ हमारे परिषद से बाहर होने के बाद भी अफगानिस्तान हमारे दिलों में रहेगा।’’
परिषद के गैर-स्थायी सदस्य के तौर पर भारत का दो साल का कार्यकाल इस महीने समाप्त हो रहा
है।