साइबर क्राइम के 1.96 लाख मुकदमे सजा ‎सिर्फ 2615 को

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दिल्ली में साइबर क्राइम : भनक ही नहीं लगी, सैकड़ों लोगों के नाम पर लाखों  रुपए के लोन निकाल लिए गए

विनीत माहेश्वरी (संवाददाता )

कहावत है लड़का सीखे नाई का सिर कटे गंवार का। यही हालत डिजिटल और ऑनलाइन सेवाओं के
माध्यम से आम आदमी की हो रही है। डिजिटल तकनीकी के माध्यम से ऑनलाइन लेनदेन बैंकिंग
सिस्टम सभी सरकारी सेवायें टेक्स इत्या‎दि अ‎निवार्य रुप से ऑनलाईन शुरु ‎किये गए हैं। डिजिटल
सिक्योरिटी को लेकर सरकार और सेवा देने वाली कंप‎नियां अपनी जिम्मेदारी को पूरा नहीं कर पा रही
हैं। उल्टे ऐसे कानून बनाए जा रहे हैं जिससे लोगों की निजता खत्म हो रही है। आम आदमी की
जीवन भर की जमा पूंजी एक ही झटके में गायब हो जाती है। कई दशकों की मेहनत एवं कारोबार
को साइबर क्राइम करने वाले ठग एक ही झटके में लूट कर गायब हो जाते हैं। आम आदमी इस लूट
से लगातार परेशान है। सरकार के कानों में जूं भी नहीं रेंग रही है।
पिछले वर्षों में सरकार ने कानून बनाकर हर आदमी के लिए ऑनलाइन लेनदेन एवं सेवायें लेना
अनिवार्य कर दिया है। पिछले वर्षों में डिजिटल लेनदेन और डिजिटल कारोबार बढ़ने से अपराध के
नए-नए तरीके ठग ईजाद कर रहे हैं। पुलिस और साइबर क्राइम इस ठगी को नहीं रोक पा रहे हैं।
साइबर सिक्योरिटी को लेकर सरकार लापरवाह है। इस तरह की ठगी के मामले में ठगे गये व्यक्तियों
को पुलिस और सरकार से कोई मदद नहीं मिल पाती है।
संसद में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा ने जो जानकारी दी है। उसने सारी हकीकत को बयां कर
दिया है। 2017 से लेकर 2021 के बीच 5 वर्षों में 196788 मामले साइबर क्राइम में दर्ज हुए। अभी
तक अदालतों से 2615 मामलों में ही सजा हो पाई है। 2021 में साइबर क्राइम के जो अपराध
पंजीकृत हुए हैं। उनकी संख्या 52974 पर पहुंच हो गई है। साइबर क्राइम लगातार बढ़ते जा रहे हैं।
पुलिस और साइबर क्राइम के पास इन अपराधों से निपटने की तकनीकी भी नहीं है। सरकार ने
अपराध रोकने के लिए कोई बड़े ट्रेनिंग प्रोग्राम नहीं चलाए। जब अपराध हो जाते हैं उसके बाद बड़े
अपराधों पर पुलिस और क्राइम विभाग शोध शुरू करता है। कुछ मामलों को पकड़ पाता है और कुछ
मामले तो आज तक पकड़ में ही नहीं आए। केंद्र एवं राज्य सरकारों ने साइबर क्राइम से निपटने के
लिए ना तो अपने पुलिस स्टाफ को उसकी ट्रेनिंग दी। ना उस योग्य अधिकारी और कर्मचारी भर्ती
किए गए। ना ही न्यायालयों में जजों को साइबर क्राइम से संबंधित अपराधों के संबंध में जानकारी दी
गई। सब कुछ भारत में भगवान भरोसे है।

पिछले 5 सालों में देशभर मतें 1.96 लाख प्रकरण साइबर क्राइम ने दर्ज किए। न्यायालयों में कुल
40883 मामले में चार्ज सीट दाखिल की गई। पिछले 5 वर्षों में केवल 2615 मामलों में न्यायालय
द्वारा सजा सुनाई गई। सबसे ज्यादा 42593 प्रकरण उत्तर प्रदेश में दायर हुए। उसके बाद 20432
प्रकरण तेलंगाना और 9023 प्रकरण कर्नाटक में दायर किए गए। राज्यों में साइबर क्राइम के प्रकरण
पुलिस दर्ज ही नहीं करती हैं। आवेदन लेकर प्रकरण दायर नहीं किए जाते हैं। यदि यह संख्या भी
शामिल की जाए तो हर राज्य में हर माह हजारों साइबर क्राइम के अपराध हो रहे हैं। आम आदमी
अपनी ‎किस्मत और भाग्य पर रोने मजबूर है।
साइबर क्राइम से निपटने के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकारें हर बार अपनी चिंता व्यक्त करती
हैं। लेकिन सायबर क्रामइ को रोकने के संबंध में अभी तक कोई व्यापक रूपरेखा राष्ट्रीय स्तर पर
तैयार नहीं की गई है। पुलिस विभाग और तकनीकि के जानकार लोगों की नियुक्तियां सरकारों ने
नहीं की हैं। साइबर क्राइम से निपटने के लिए अपराधों की संख्या के आधार पर 10 फ़ीसदी अमला
पुलिस भी और साइबर क्राइम विभाग के पास नहीं है। जिसके कारण साइबर क्राइम के मामले
दिनोंदिन बढ़ते ही जा रहे हैं। इसमें आम आदमी का जीवन बुरी तरह से बर्बाद हो रहा है। आम
आदमी को लगातार सरकारी ऑनलाइन सेवा आधार कार्ड इत्यादि के माध्यम से डिजिटल सेवाओं से
जोड़ने कानून बनाये जा रहे हैं। इसी अ‎निवार्यता के कारण साइबर के अपराध हो रहे हैं। जनता अपने
हितों की रक्षा नहीं कर पा रही है। न्यायपालिका से भी जो आशा थी वह भी पूरी नहीं हो रही है।
निजता कानून के तहत आधार कार्ड को लागू नहीं करने का सुप्रीम कोर्ट का निर्देश था। इसके बाद
भी केन्द्र एवं राज्य सरकारों तथा बैंकों में हर सेवाओं में आधार कार्ड अ‎निवार्य ‎किया गया है। सरकार
के कारण लोगों की निजता और उनके मूलभूत अधिकारों का हनन हो रहा है। अदालतें चुप हैं।
नाग‎रिक भाग्य भरोसे है।

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