



विनीत माहेश्वरी (संवाददाता )
कुछ दिन पहले की बात है। मेरी सहेली ने फोन करके अपनी बर्थडे पार्टी पर हमें बुलाया था। मम्मी
ने मुझे और मेरी छोटी बहन को जाने के लिए तैयार किया और एक प्यारा-सा गिफ्ट पैक करके
सहेली को भेंट देने के लिए दे दिया। जब हम दोनों बहनें घर से निकलने लगीं तो मम्मी ने मोबाइल
देकर कहा कि जब पार्टी खत्म हो जाए तो फोन कर देना, पापा आकर ले जाएंगे। उन्होंने कहा कि
सीधे सहेली के ही घर जाना।
हम दोनों बहनें मम्मी को बाय बोलकर निकल पड़ीं। सहेली के घर का रास्ता एक संकरी गली से
होकर गुजरता था। जब गली के पास पहुंची तो देखा, एक खूंखार-सा कुत्ता बीच गली में बैठा है। हम
डर रहे थे। कोई दिख भी नहीं रहा था। कई बार धत्-धत् किया तो भागने की बजाय वह हम पर ही
गुर्राने लगा। डर से हम दोनों का बुरा हाल हो गया।
काफी देर तक हम एक-दूसरे से चिपकी खड़ी रहीं, फिर एक सहेली को फोन लगाया, तो उसका फोन
स्विच्ड ऑफ था। तभी मेरी छोटी बहन ने कहा-दीदी, अपने मोबाइल में कुत्ते की आवाज फीड है, उसे
ऑन करो। हमने वह आवाज फुल वॉल्यूम में खोल दी। जोर-जोर से गली में भौं-भौं की आवाज गूंजने
लगी। आवाज सुनते ही कुत्ता दूसरे कुत्ते को खोजने के लिए दूसरी तरफ दौड़ गया। तब हमने रास्ता
पार किया। यह हिम्मत काम आई। जब हमने मम्मी को पूरी बात बताई, तो उन्होंने शाबाशी दी। इस
तरह मोबाइल ने हमें बड़ी मुसीबत से बचाया।