



विनीत माहेश्वरी (संवाददाता)
शिमला में हॉली लॉज से रिज, माल और शिमला का एक बड़ा हिस्सा दिखता है। यहीं पर प्रदेश के
पूर्व मुख्यमंत्री और हिमाचल में कांग्रेस के सबसे बड़े और लोकप्रिय नेता स्व. वीरभद्र सिंह रहते थे।
यह उनका निजी निवास है। अब तक शांत दिखने वाला हॉली लॉज अब धीरे-धीरे व्यस्त रहने लगा
है। 12 नवंबर को हिमाचल में 68 विधानसभा सीटों के लिए मतदान हुआ था। आठ दिसंबर को
इसके नतीजे निकलेंगे। मैं हिमाचल के अधिकतर भागों का दौरा करके लौटा हूं। इस बीच मैंने समाज
के काफी लोगों और बुद्धिजीवियों से बात की। मतदान से पहले लोग बात करने से परहेज करते हैं,
लेकिन मतदान के कई दिन बाद लोग किसकी सरकार बनेगी, इस पर खुल कर बात करना चाहते हैं।
शिमला में लोगों का मत है कि भारतीय जनता पार्टी ने जहां तक हो सका अपने वादों को पूरा करने
की कोशिश की, लेकिन कर्मचारी वर्ग को अपने कार्यकाल में खुश नहीं रख पाए। हिमाचल प्रदेश में
सरकारी कर्मचारियों का एक बड़ा वर्ग चुनाव के नतीजों की दिशा बदल सकता है। यही शिकायत
सरकार से सेवानिवृत्त लोगों की भी है कि सरकार ने 2016 से 2022 तक पेंशनधारियों की बकाया
धनराशि पूरी तरह नहीं चुकाई। युवा वर्ग की शिकायत है कि उन्हें रोजग़ार के अवसर मिले ही नहीं।
हालांकि बहुत से रोजग़ार मेलों और परिचर्चाओं का आयोजन किया गया लेकिन सब रोजग़ार में
परिवर्तित नहीं हुए। चुनाव के नतीजे कोई भी रुख अपना सकते हैं।
कांग्रेस के प्रति हिमाचलियों का रवैया नर्म ही रहा है। प्रदेश में 26 बागी पूर्व विधायक और राजनेता
चुनाव लड़ रहे हैं। हवा का रुख बदलने में उनकी अहम भूमिका होगी। जो भी चुनाव जीत कर आएंगे,
वे हो सकता है ज्यादा सीटें जीतने वाली पार्टी का समर्थन करें। नतीजों में भारतीय जनता पार्टी और
कांग्रेस पार्टी ही दो मुख्य पार्टियां हैं जिनमें से एक पार्टी हिमाचल में सरकार बनाएगी, जिसे बहुमत
प्राप्त होगा। आम आदमी पार्टी ने जितने उत्साह से अपना चुनाव अभियान शुरू किया था, उतनी ही
तेज़ी से उनका उत्साह भी समाप्त हो गया। देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भरपूर प्रयास किया
है जनता के साथ सीधे जुडऩे का, लेकिन कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी हिमाचल
की जनता से सीधा संवाद किया। हिमाचल में महिला मतदाताओं की संख्या लगभग पुरुष मतदातों के
बराबर ही है। वह महिला मतदाताओं की भावनाओं को छूने में सफल रहीं। हमें यह बात नहीं भूलनी
चाहिए कि स्व. श्रीमती इंदिरा गांधी को हिमाचल से विशेष लगाव था और लोगों को मूल से ज्यादा
ब्याज प्यारा होता है। प्रियंका गांधी वाड्रा एक अच्छी वक्ता हैं।
बहुत बार हर शब्द तोल कर बोलती हैं। लोगों का विचार है कि हिमाचल के मुख्यमंत्री ने हिमाचलियों
से सीधा संपर्क तो किया, लेकिन कोई ठोस कदम उनकी भलाई के लिए उन्होंने नहीं उठाए। भले ही
केंद्र सरकार, देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के राष्टीय अध्यक्ष जगत
प्रकाश नड्डा हिमाचल के साथ खड़े रहे। भले ही हिमाचल की अधिकतर पंचायतों और शहरों में
विभिन्न योजनाओं की उद्घाटन शिलाएं पिछले एक साल में लगी हैं, लेकिन यह पैसा अगर
पेंशनधारियों की बकाया राशि चुकाने के लिए खर्च किया होता तो शायद एक लहर बन जाती भारतीय
जनता पार्टी की तरफ। अंदौरा-अम्ब से दिल्ली के लिए चली वंदे भारत रेलगाड़ी का हिमाचल में
स्वागत हुआ है। ख़ास कर कांगड़ा, हमीरपुर, ऊना के लोगों के लिए यह एक बड़ा उपहार है, और यह
बात सबको पता है कि कांगड़ा, मंडी और शिमला के विधायक ही सरकार बनाने और बिगाडऩे में
अहम भूमिका निभाते हैं।
उधर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष प्रतिभा सिंह ने बहुत सोची समझी रणनीति से इस चुनाव में भाग लिया।
उन्हें स्व. वीरभद्र सिंह की कमी तो इस चुनाव में बहुत महसूस हुई, लेकिन लोगों ने उन्हें सहानुभूति
के खूब वोट दिए। भले ही दो तीन प्रेस वार्ताओं में उन्होंने विवादास्पद टिप्पणियां की हों, लेकिन
चुनाव का माहौल उन्होंने अपनी तरफ मोडऩे की जीतोड़ कोशिश की। पता नहीं राजीव शुक्ला और
अलका लाम्बा का कितना योगदान रहा इस चुनाव में, लेकिन रानी साहिबा, जैसे हिमाचल के एक
भाग के लोग उन्हें कहते हैं, अपने निर्धारित लक्ष्य की ओर बढ़ती दिखाई दीं। उनके बेटे विक्रमादित्य
का राजनातिक कद इतना बड़ा नहीं है कि वह हवा का रुख बदल पाते। प्रतिभा सिंह का कांग्रेस नेता
राहुल गांधी द्वारा शुरू की गई भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होना, उनके भीतर छिपे उत्साह और
आने वाले चुनाव नतीजों को लेकर आशावादिता की कहानी कहता है। हो सकता है बहुत लोगों का
यह कहना था कि भारतीय जनता पार्टी का यह नारा ही गलत था कि इस बार रिवाज बदलेंगे। रीति-
रिवाज, अनुष्ठान हज़ारों सालों से चले आ रहे हैं।
उन्हें बदलना इतना आसान कहां होता है। लेकिन राजनीति, मौसम और क्रिकेट में कुछ भी संभव है।
आठ दिसंबर को गुजरात और हिमाचल प्रदेश में चुनाव के नतीजे निकलेंगे। इंतज़ार लगभग ख़त्म ही
समझिए। हिमाचल क्या पुराने रीति-रिवाज़ों पर चलेगा या फिर बदलेंगे रिवाज, इस प्रश्न का उत्तर
अभी भी इवीएम में बंद है। इन दो राज्यों के चुनाव परिणाम यह तय कर देंगे कि राजनीति की इस
रिले प्रतिस्पर्धा में कांग्रेस पिछड़ जाएगी या फिर नई स्फूर्ति के साथ भारत जोड़ो मिशन पर आगे
बढ़ेगी। कुछ भी हो, इस बार के विधानसभा चुनावों के नतीजे चौंकाने वाले होंगे। सभी को नतीजों का
बेसब्री से इंतजार है।
(स्वतंत्र लेखक)