



विनीत माहेश्वरी (संवाददाता )
कोट्टायम (केरल), 04 दिसंबर । पी. श्रीनिवासन केरल के उन डेयरी किसानों में से एक हैं,
जिन्हें पांच साल पहले लगता था कि छोटे स्तर पर भी पशुपालन काफी लाभकारी है, लेकिन अब
उन्हें ऐसा नहीं लगता। वह चारे के दाम में अत्यधिक वृद्धि को इसकी वजह बताते हैं। राज्य में
सुनंदिनी जैसी उच्च नस्ल वाली गाय होने के बावजूद डेयरी किसानों को लगता है कि पशुपालन
लाभकारी नहीं रह गया है।
श्रीनिवासन और उनकी पत्नी का दिन गायों की विभिन्न नस्लों को दुहने के साथ शुरू होता हैं ताकि
वे न केवल अपने नियमित ग्राहकों बल्कि एक सहकारी समिति को भी दूध की आपूर्ति कर सकें, जो
केरल की सबसे बड़ी सहकारी डेयरी ‘मिल्मा’ के अंतर्गत आती है। वे आसपास के 20 से अधिक घरों
और दुकानों में दूध की आपूर्ति करते हैं।
श्रीनिवासन कहते हैं, ‘जब मैं छोटा था तब हमारे घर में गायें थीं। तब यह कृषि के अन्य रूपों में
सहायक थी। बाद में हमारे पास जैसे जर्सी, एचएफ एवं सुनंदिनी जैसी और गायें आयीं। लगभग पांच
साल पहले तक, यह बहुत लाभदायक थी।’
उन्होंने कहा, ‘मैंने अपने परिवार की जरूरतों का ध्यान रखा, अपने बच्चों का पालन-पोषण किया,
उनकी शिक्षा का ध्यान रखा, यह सब डेयरी फार्मिंग से होने वाली कमाई की वजह से हो पाया।
लेकिन अब मवेशियों के चारे की लागत वाकई बढ़ गई है। विदेशी एवं संकर गायें अपनी पूरी क्षमता
से दूध दे पाएं, इसके लिए चारे की आवश्यकता होती है। इसलिए यह पहले की तरह लाभदायक नहीं
है।”
यह पूछे जाने पर कि क्या राज्य सरकार द्वारा दूध की कीमतों में छह रुपये की बढ़ोतरी के फैसले से
कोई राहत मिलेगी, तो उन्होंने इससे असहमति जताई। उन्होंने कहा कि डेयरी किसानों को दूध में
वसा की मात्रा के अनुसार भुगतान किया जाता है; यह जितना अधिक मलाईदार होता है, प्रति लीटर
कीमत उतनी ही अधिक होती है।
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार द्वारा छह रुपये प्रति लीटर दूध की बढ़ोतरी उपभोक्ताओं को बेचे जाने
वाले पैकिंग वाले दूध में दिखाई देगी, लेकिन डेयरी किसानों की कमाई में नहीं।उन्होंने कहा कि
सुनंदिनी बहुत अधिक वसा युक्त दूध देती है।
केरल पशुधन विकास बोर्ड के पूर्व मुख्य कार्यकारी सी.टी चाको ने कहा कि यह एक कारण है कि
केरल में 90 प्रतिशत सुनंदिनी गाय मिलती हैं ।हालांकि, यह गाय संभवतः आईसीएआर के राष्ट्रीय
पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो (एनबीएजीआर)में पंजीकृत नहीं होने के कारण केरल के बाहर लोकप्रिय
नहीं है।
राज्य के पूर्व महामारी विशेषज्ञ और पशु चिकित्सक डॉ. सी के शाजू ने कहा, ‘यदि सुनंदिनी गायों को
अधिक पौष्टिक आहार दिया जाता है, तो दूध उत्पादन में कम से कम 15 प्रतिशत की वृद्धि होगी।’
चाको का दावा है कि इन उपलब्धियों के बावजूद, सुनंदिनी को एनबीएजीआर द्वारा मान्यता नहीं दी
गई है जिसकी वजह शायद केंद्र की भाजपा सरकार की ‘मेक इन इंडिया’ नीति हो सकती है।
एनबीएजीआर के निदेशक बी पी मिश्रा ने आरोप का खंडन किया और कहा कि एक नस्ल को
पंजीकृत करने के लिए, संबंधित नस्ल विकासकर्ता को इसके लिए आवेदन करना होगा। उन्होंने कहा
कि आवेदन के बाद प्रक्रिया शुरू होगी, जिसके बाद इसे पंजीकृत किया जा सकेगा।