हिजाब मुद्दे को प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाना उचित नहीं

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Karnataka Hijab Issue: Government Decided No Exam Duty For Women Teachers  In Hijab | Karnataka Hijab Issue: हिजाब पहनने वाली शिक्षिका की नहीं लगेगी  परीक्षा ड्यूटी, राज्य सरकार ने लिया फैसला

विनीत माहेश्वरी (संवाददाता )

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विगत कई वर्षों से मुसलमानों के विभिन्न धार्मिक, सामाजिक व उनके शरई मामलों में दख़लअंदाज़ी
करने की गोया एक अंतर्राष्ट्रीय मुहिम सी छिड़ी हुई है। कभी तीन तलाक़ को लेकर कभी दाढ़ी को
लेकर कभी पसमांदा और अशरफ़ी मुसलमानों को लेकर कभी ईरान-अरब के मुस्लिम जगत पर
कथित वर्चस्व आदि जैसे अनेक मुद्दों को लेकर दुनिया में कहीं न कहीं विरोध या अंतर्विरोध की
ख़बरें आती ही रहती हैं। दुनिया के मुसलमानों को बदनाम करने में जो बची खुची कमी है वो
अलक़ायदा, आई एस आई तालिबान जैसे अनेक अतिवादी व आतंकी संगठन समय समय पर अंजाम
दी जाने वाली अपनी क्रूर कारगुज़ारियों से पूरी करते रहते हैं। मुस्लिम महिलाओं से जुड़ा ऐसा ही एक

विवादित विषय है हिजाब या पर्दा। पिछले कुछ समय से हिजाब विवाद की गूँज भारत से लेकर ईरान
तक सुनाई दे रही है । भारतीय अदालतों में भी इस विवाद ने दस्तक दे डाली। भारत में कट्टरपंथी
दक्षिण पंथियों द्वारा फ़रवरी 2022 में कर्नाटक के उडुप्पी में एक कॉलेज छात्रा द्वारा हिजाब पहनने
का विरोध किया गया जोकि आग की तरह फैल गया। कॉलेज में हिजाब पहनी छात्राओं को कक्षाओं
में प्रवेश की अनुमति नहीं दी गयी थी । 5 फरवरी 2022 को कर्नाटक सरकार द्वारा राज्य के
विभिन्न कॉलेज में हिजाब पहनने पर प्रतिबंध लगाने का आदेश जारी किया गया। कर्नाटक के कई
कॉलेज में हिजाब पहनने पर रोक लगाने के बाद कर्नाटक के उच्च न्यायालय में भी दो याचिकाएं
दायर की गई हैं। बाद में यही हिजाब विवाद पर सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच गया।
अभी कर्नाटक के हिजाब का मामला ठंडा भी नहीं हुआ था कि अचानक यह आग ईरान में भी फैल
गयी। ईरान में गत 16 सितंबर को महसा अमीनी नामक एक क़ुर्द लड़की की पुलिस हिरासत में हुई
मौत हो गयी। ख़बरों के अनुसार अपनी तेहरान यात्रा के दौरान अपने सिर को हिजाब से न ढकने के
आरोप में कुछ सुरक्षा कर्मियों द्वारा महसा अमीनी को इतना मारा गया कि 22 साल की इस युवती
की पुलिस हिरासत में मौत हो गई ।इसके विरोध में चंद दिनों के भीतर ही लगभग पूरा ईरान हिजाब
विरोधी प्रदर्शनों का केंद्र बन गया। मामला चूंकि ईरान से जुड़ा था इसलिये पश्चिमी देश भी ईरान की
हिजाब नीति के विरुद्ध मुखर होते दिखाई दिये। महसा अमीनी की मौत के बाद ईरान में हुये हिजाब
विरोधी प्रदर्शनों में अब तक 300 से अधिक लोगों के मारे जाने की ख़बर है। यह मामला अब इतना
तूल पकड़ चुका है कि ईरान के दो बार राष्ट्रपति रहे अली अकबर हाशमी रफ़संजानी की बेटी फ़ैज़ेह
को हिजाब विरोधी दंगाइयों व प्रदर्शनकरियों को उकसाने के आरोप में उन्हें गिरफ़्तार किया जा चुका
है। ईरान के अनेकानेक प्रगतिशील व उदारवादी लोग खुल कर हिजाब का विरोध कर रहे हैं। पिछले
दिनों क़तर में आयोजित फ़ीफ़ा फ़ुटबाल मैच के दौरान ईरान की टीम ने तो हिजाब विरोधी
प्रदर्शनकारियों का पक्ष लेते हुये ईरानी राष्ट्रगान पढ़ने से इंकार कर दिया। इसके कितने गंभीर
परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं इसबात की भी ईरानी टीम ने परवाह नहीं की।
इन सवालों के बीच हिजाब या मुस्लिम महिलाओं के परदे को लेकर कुछ महत्वपूर्ण बातों की अनदेखी
करना भी इस विषय के साथ अन्याय करना होगा। सबसे पहला सवाल तो यह कि क्या महिलाओं को
पर्दा करने का हुक्म ख़ुदा की तरफ़ से जारी किया गया है? दूसरा सवाल यह कि हिजाब या परदे
अथवा नक़ाब का कौन सा तरीक़ा वास्तव में इस्लामी तरीक़ा स्वीकार किया जाना चाहिये? अरब,
ईरान, इराक़ भारत, पाकिस्तान मिस्र आदि अनेक देशों में मुस्लिम महिलायें अलग अलग क़िस्म के
परदे या हिजाब अपनाती हैं। कहीं सिर ढका है और चेहरा खुला है। कहीं चेहरा और सिर दोनों ढका
है। तो कहीं सिर से लेकर पैरों की एड़ियां तक सब कुछ परदे में हैं। और कहीं इन में से कुछ भी नहीं
है फिर भी महिलायें गर्व से स्वयं को मुस्लिम समाज का सदस्य बताती हैं। अतः कौन सा पर्दा या
हिजाब सही है यह कौन तय करेगा?
दूसरा मुख्य प्रश्न यह भी है कि किसी भी देश की मुस्लिम महिला को उस देश के प्रचलित दस्तूर के
मुताबिक़ हिजाब या पर्दा धारण करने के लिये मजबूर करना, यह पुरूषों की पितृ सत्ता का स्पष्ट
लक्षण है अथवा नहीं? यदि इस विषय पर हम आम तौर पर तालिबानी और हाल में हो रहे ईरानी

हालात पर नज़र डालें तो हिजाब या परदे को लेकर इस्लाम का अतिवादी नज़रिया होने का सीधा
संकेत जाता है। केवल इतना कहने मात्र से इन आरोपों से पीछा नहीं छुड़ाया जा सकता कि 'यह सब
इस्लाम विरोधी या पश्चिमी देशों की साज़िशों का नतीजा है'। न ही पश्चिमी देश न ही इस्लाम
विरोधी ताक़तें अफ़ग़ानिस्तान में बेपर्दिगी के नाम पर महिलाओं को सार्वजनिक रूप से बेरहमी से
ज़ुल्म करने के लिये प्रेरित करती हैं न ही उन्होंने महसा अमीनी की हत्या के लिये ईरानी
कट्टरपंथियों को उकसाया। बल्कि स्वयं इन जैसे देशों की धर्म के नाम पर की जाने वाली बर्बरता व
हठधर्मिता ने इस्लाम विरोधी ताक़तों व पश्चिमी देशों को इस्लाम पर ऊँगली उठाने का मौक़ा दिया।
ईरान हो या अफ़ग़ानिस्तान भारत या पाकिस्तान, मेरे विचार से कहीं भी परदे या हिजाब की
व्यवस्था को महिलाओं पर जबरन थोपने की ज़रुरत नहीं है। कोई भी महिला अपनी स्वेच्छा से जैसा
भी हिजाब पर्दा या बुर्क़ा धारण करे यह उसी महिला पर छोड़ देना चाहिये। इसमें किसी तरह का जब्र
या अनिवार्यता इस्लाम की उदारता को ही कटघरे में खड़ा करने का काम करेगी। जिस तरह दाढ़ी के
स्वरूप को लेकर इस्लाम के विभिन्न वर्गों में मतैक्य नहीं है उसी तरह हिजाब व पर्दा भी हर देश में
अलग अलग है। और जिस तरह लोगों का मानना है कि इस्लाम में दाढ़ी है, दाढ़ी में इस्लाम नहीं।
उसी नज़रिये से हिजाब या परदे को भी देखना चाहिये । जब इसका अंतरराष्ट्रीय स्वरूप ही तय नहीं
तो किसी भी देश द्वारा इसकी अनिवार्यता कैसे निर्धारित की जा सकती है? अतः दुनिया के किसी
भी देश को हिजाब मुद्दे को प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाना क़तई उचित नहीं है। इसे कैसे कब और कहाँ
धारण करना या नहीं करना है यह पूरी तरह मुस्लिम महिलाओं की इच्छा और उनके विवेक पर ही
छोड़ दिया जाना चाहिये।

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