हिंद प्रशांत क्षेत्र में भारत के शांति प्रयास

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Indo Pacific Region and China: हिंद प्रशांत क्षेत्र में 13 देश एक साथ मिलकर  चीन को देंगे मात, जानें क्‍या होगा इसका अंजाम, अमेरिका की व्‍यूह रचना तैयार  - 13 ...

विनीत माहेश्वरी (संवाददाता )

हिंद प्रशांत क्षेत्र में भारत द्वारा किए जा रहे शांति प्रयास महत्वपूर्ण हैं। विश्व स्तर पर इन प्रयासों
की सराहना हो रही है। इस मसले पर चीन अकेला पड़ता जा रहा है। अमेरिका ने इस क्षेत्र में भारत
के साथ साझा प्रयास करने का संकल्प व्यक्त किया। इसके बाद आसियान देशों का भी भारत को
समर्थन मिला है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी गणतंत्र दिवस पर आसियान देशों को आमंत्रित कर चुके हैं।
आसियान के दस राष्ट्राध्यक्ष गणतंत्र दिवस में मुख्य समारोह के गवाह बने थे। यह विदेश नीति का

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नायाब प्रयोग था। इसने आसियान के साथ भारत के आर्थिक, राजनीतिक, व्यापारिक, सामाजिक और
सांस्कृतिक रिश्तों का नया अध्याय शुरू किया था। महत्वपूर्ण यह था कि सभी देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने
भारत के निमंत्रण को स्वीकार किया। एक्ट ईस्ट की नीति कारगर ढंग से आगे बढ़ी। चीन विश्वास
के लायक नहीं है। इसलिए मोदी ने आसियान देशों के साथ रिश्ते सुधारने पर बल दिया। मोदी की
इस नीति से चीन के वर्चस्ववादी रुख को धक्का लगा। इनमें से अनेक देश चीन की विस्तारवादी
नीति को पसंद नहीं करते। यह बात आसियान में सामान्य सहमति का विषय है।
केवल इसके लिए किसी को पहल करने की आवश्यकता थी। मोदी ने साहस के साथ पहल की। भारत
और आसियान देशों के बीच अति प्राचीन सामाजिक व सांस्कृतिक रिश्ते रहे हैं। कई आसियान देशों
में बौद्ध बहुसंख्यक हैं। सिंगापुर में तो नब्बे प्रतिशत आबादी बौद्धों की है। इसके अलावा इन सभी
देशों में रामकथा व्यापक रूप से प्रचलित है। यहां के राजकीय प्रतीकों में रामायण से संबंधित चिह्न
मिलते हैं। इंडोनेशिया के मुसलमान भी रामायण संस्कृति पर विश्वास करते हैं। उन्होंने उपासना
पद्धति बदली है, लेकिन अपनी सांस्कृतिक विरासत को नहीं छोड़ा। रामलीला का मंचन वहां लोकप्रिय
है। ये सब भारत और आसियान देशों के बीच रिश्तों को मजबूत बनाने वाले हैं।
एक्ट ईस्ट नीति की एक अन्य कारण से भी आवश्यकता थी। वह यह कि आसियान का विस्तार
भारत के पूर्वोत्तर राज्यों की सीमा तक हो गया था। म्यांमार, कम्बोडिया,लाओस और वियतनाम
आसियान के सदस्य बने थे। इससे आसियान भारत के ज्यादा करीब हो गया। स्थापना के समय
भारत से इसकी सीमा दूर थी। तब इंडोनेशिया, मलेशिया,फिलीपींस, थाईलैंड, सिंगापुर इसके सदस्य
थे। ब्रुनेई, वियतनाम,म्यांमार बाद में सदस्य बने थे। इसीलिए मोदी ने आसियान को लेकर नीति में
बदलाव किया।
आसियान के केंद्र में शांतिपूर्ण हिंद-प्रशांत क्षेत्र दुनिया की सुरक्षा और समृद्धि के लिए पहले से कहीं
अधिक महत्वपूर्ण हो गया है। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने हाल ही में आसियान सम्मेलन को संबोधित
किया है। उन्होंने कहा कि हम ऐसे समय में मिल रहे हैं जब दुनिया विघटनकारी राजनीति से बढ़ते
संघर्ष को देख रही है। सबसे बड़ा खतरा अंतरराष्ट्रीय और सीमा पार आतंकवाद से है। उदासीनता अब
प्रतिक्रिया नहीं हो सकती, क्योंकि आतंकवाद ने विश्व स्तर पर पीड़ित पैदा किए हैं। इसलिए
अंतरराष्ट्रीय समुदाय को तत्काल और दृढ़ हस्तक्षेप करने की जरूरत है। आतंकवादी समूहों ने धन
हस्तांतरण और समर्थकों की भर्ती के लिए नए युग की तकनीकों का सहारा लिया है और समर्थित
महाद्वीपों में अंतर्संबंध बनाए हैं। साइबर अपराध भी नई तकनीकों के बढ़ते उपयोग की ओर इशारा
करते हैं।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आतंकवाद रोधी समिति की नई दिल्ली बैठक में इन घटनाक्रमों पर
गंभीरता से ध्यान दिया गया है। समिति ने आतंकवादी उद्देश्यों के लिए नई और उभरती
प्रौद्योगिकियों के उपयोग का मुकाबला करने के लिए 'दिल्ली घोषणा' को अपनाया। अंतरराष्ट्रीय
समुदाय के एक जिम्मेदार सदस्य के रूप में भारत ने बड़े पैमाने पर मानवीय सहायता और
खाद्यान्न देने में अपने सहयोगियों के साथ काम किया है। भारत ने सभी देशों की संप्रभुता और

क्षेत्रीय अखंडता के सम्मान के आधार पर हिंद प्रशांत क्षेत्र में एक स्वतंत्र, खुले और समावेशी व्यवस्था
का आह्वान किया है। भारत ने साफ किया है कि वह बातचीत के माध्यम से विवादों का शांतिपूर्ण
समाधान और अंतरराष्ट्रीय नियमों और कानूनों का पालन करने में विश्वास रखता है।
रक्षा मंत्री का कहना है कि भारत समुद्री विवादों के शांतिपूर्ण समाधान और अंतरराष्ट्रीय कानून का
पालन करने के लिए तैयार है। दक्षिण चीन सागर पर आचार संहिता के तहत चल रही बातचीत पूरी
तरह से अंतरराष्ट्रीय कानून, विशेष रूप से यूएनसीएलओएस के अनुरूप होगी। उन राष्ट्रों के वैध
अधिकारों और हितों पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालना चाहिए जो इन चर्चाओं में शामिल नहीं हैं। भारत
का मानना है कि व्यापक आम सहमति को दर्शाने के लिए क्षेत्रीय सुरक्षा पहलों को परामर्शी और
विकासोन्मुख होना चाहिए। भारत इस क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा बढ़ाने और वैश्विक आम लोगों की सुरक्षा
के लिए एडीएमएम प्लस देशों के बीच व्यावहारिक, दूरंदेशी और परिणामोन्मुख सहयोग को बढ़ावा
देने के लिए प्रतिबद्ध है।
नौसेना प्रमुख एडमिरल आर. हरि कुमार हिंद-प्रशांत क्षेत्रीय संवाद के चौथे संस्करण में कह चुके हैं
कि हिंद महासागर क्षेत्र के समग्र विकास और समृद्धि में भारत का सक्रिय योगदान रहा है।
समकालीन दुनिया की बढ़ती वास्तविकताएं भू-राजनीतिक और आर्थिक दृष्टि से भारतीय और प्रशांत
महासागरों के संगम की आवश्यकता को रेखांकित करती हैं। इंडो-पैसिफिक की चुनौतियों को मिलकर
दूर किया जा सकता है। साइबर डोमेन, तकनीक के साथ-साथ लक्ष्यों का उपयोग करते हुए बढ़ता
हथियारीकरण भी बड़ा खतरा है। ये चुनौतियां भारत के लिए या इस क्षेत्र के किसी अन्य देश के लिए
नई नहीं हैं। हम यह भी मानते हैं कि इन चुनौतियों को अकेले एक राष्ट्र दूर नहीं कर सकता है।
इसके लिए इंडो-पैसिफिक ओशन इनिशिएटिव हमारे सामूहिक प्रयासों को सिंक्रनाइज, तालमेल और
चैनलाइज करने का अवसर प्रदान करता है। समुद्री डकैती और सशस्त्र डकैती, अवैध मानव प्रवासन,
ड्रग्स और हथियारों की तस्करी, अवैध मछली शिकार, समुद्री आतंकवाद ने सुरक्षा मैट्रिक्स को और
जटिल बना दिया है। यह पूरी तरह स्पष्ट है कि समृद्ध हिंद-प्रशांत शांतिपूर्ण समुद्री क्षेत्र पर टिका
है।
यह सही है कि इंडो-पैसिफिक रीजनल डायलॉग कारगर हो सकता है। 'ब्लू इकोनॉमी' की संभावनाएं
भी परिवर्तनकारी क्षमता रखती हैं। इस क्षेत्र के अधिकांश देशों के पास अपने समुद्री संसाधनों का
दोहन करने की सीमित क्षमता है। जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाओं के प्रभावों से ये
चुनौतियां और अधिक बढ़ जाती हैं। इन पर्यावरणीय चुनौतियों के लिए विश्वसनीय, व्यावहारिक और
स्थायी समाधानों की आवश्यकता है। इंडो-मलय-फिलीपींस द्वीपसमूह दुनिया की समुद्री जैव विविधता
की अधिकतम मात्रा की मेजबानी करता है। कंबोडिया के सिएम रीप में मंगलवार को भारत-आसियान
रक्षा मंत्रियों की पहली बैठक हुई, जिसे 'आसियान-भारत मैत्री वर्ष' के रूप में भी नामित किया गया
है। बैठक की सह-अध्यक्षता रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और कंबोडिया के उप प्रधान मंत्री और रक्षा मंत्री
जनरल टी बान ने की। रक्षा मंत्री ने कहा कि भारत आसियान देशों के साथ रक्षा संबंधों को मजबूत
करने के लिए प्रतिबद्ध है। भारत-आसियान रक्षा मंत्रियों की बैठक में सिंह ने भारत-आसियान रक्षा
संबंधों के दायरे और गहराई को और बढ़ाने के लिए दो प्रमुख प्रस्ताव रखे। रक्षा मंत्री ने स्थायी शांति

सुनिश्चित करने के लिए शांति मिशनों में महिला अधिकारियों के महत्व को रेखांकित किया। दूसरे
प्रस्ताव में समुद्री प्लास्टिक प्रदूषण पर चिंता जताई गई है। उन्होंने समुद्री प्रदूषण से निपटने के लिए
चेन्नई में भारत-आसियान समुद्री प्रदूषण प्रतिक्रिया केंद्र की स्थापना का भी प्रस्ताव रखा है।

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