आंकड़ों के स्वादिष्ट पकौड़े

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आंकड़ों के स्वादिष्ट पकौड़े (व्यंग्य) - aankadon ke svaadisht pakaude

विनीत माहेश्वरी (संवाददाता )

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विश्वगुरुओं के देश में कुछ भी सीखना मुश्किल नहीं। सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक और आर्थिक
हिसाब किताब करने में हम जगत प्रसिद्ध हैं। इन व्यवसायों से संबंधित आंकड़े बोने, उगाने, काटने,
पकाने और सजाने में हम माहिर हो चुके हैं। दुनिया को हमने ही गर्व से शून्य दिया, अब सबसे
चर्चित आंकड़े दे रहे हैं। मसाला उगाने और पीसने के साथ विभिन्न तरह का खाना बनाने का लम्बा
अनुभव बहुत काम आ रहा है। आंकड़ों को स्वादिष्ट आकार, दिलचस्प पहनावा और आकर्षक रूप रंग
कैसे देना है कोई हमसे सीखे। सीखने और सिखाने वाले जानते हैं कि हमारे यहां ऐसे ख़ास विकसित
प्रारूप हैं कि आंकड़ा विश्व में नंबर वन दिखे। आंकड़ों का रिकॉर्ड सबसे बेहतर और निहायत पारदर्शी
कैसे बनाए रखना है, यह बताने समझाने में हम गर्व महसूस करते हैं। उदहारणतया जंगल में जिन
दो-तीन तरह के वृक्ष ज़्यादा हों, हर वर्ष केवल उन्हें ही बार-बार गिन लेना चाहिए ताकि ठोस आंकड़े
उगे रहें। आंकड़ा मनचाहा होना बहुत ज्यादा ज़रूरी है, उसके रंग मानवीय आंखों को सौम्य लगने ही
चाहिए, उनमें से निकलने वाली शांत ध्वनियां कानों को मधुर होनी ही चाहिए।
अच्छी तरह से पकाए आंकड़ों को सुंदर प्लेट में स्वादिष्ट डिश की तरह पेश किया जाए तो देखने
वाले का नजरिया अविलम्ब सकारात्मक हो उठता है। जिस तरह चेतावनी देने की चीज़ है लेने की
नहीं, आंकड़े मानने की नहीं, दिखाने और बताने की चीज़ है। आंकड़े हमेशा परिवर्तनशील रहने
चाहिए, जो आंकड़े सहन न हो रहे हों, कुछ समय बाद बुरे लगने लगें उन्हें हटा देना चाहिए और नए
आकर्षक खुशबूदार आंकड़े पेश कर देने चाहिएं। कुछ सच्चे आंकड़े सालों टिके रहते हैं जैसे वीआईपी
की गाडिय़ों से ही लाल बत्ती उतरी, उनके दिमाग से नहीं। इतने दशक से निरंतर पहाड़ बनती
वीआईपी संस्कृति का आंकड़ा यूं बदल नहीं सकता। वीआईपी अपने महत्त्व का आंकड़ा कम क्यों
करना चाहेंगे। फिर कोई सच्चा आंकड़ा अपना ऊंचा स्थान क्यों छोड़ेगा। गरीबी बहुत प्रसिद्ध आंकड़ा
है, जब राजनीतिजी इसकी मदद करती है तो यह आंकड़ा महत्वपूर्ण ढंग से निखरकर नया आकर्षक
चोला पहन लेता है।
चैनल अपना सहयोग देते हुए नए आंकड़े गढ़ते, बिगाड़ते, मरम्मत करते हुए इतिहास रचते हैं। अगर
हम बीमारी के बारे में संजीदा शैली में कह देते हैं कि यह गंभीर प्रवृत्ति की नहीं है तो चाहे आंकड़ा
ज़्यादा भी हो उसका असर विश्वस्तर पर कम हो जाता है। इस आंकड़े को वहां पड़े पीले आंकड़े से
भाग देकर जो अंक आए उसे ऊपर रखे तिकोने लाल आंकड़े से गुणा कर, तीन फुट नीचे दबा, तेलीय
आंकड़ों में पंद्रह मिनट तक, सौ प्रतिशत डुबोकर रखें। अब उन्हें विचार और संकल्प की कढ़ाही में
अच्छे से पका दें और योजनाओं का स्वादिष्ट सूखा मसाला लगा दें। भविष्यवक्ता से सही मुहूर्त
निकलवाकर यह सुनिश्चित कर लें कि कितने प्रतिशत आंकड़े दिखने और सुनने में बेहतर लगेंगे और
अधिकांश लोगों को पसंद भी आएंगे। आकर्षक आंकड़े स्वादिष्ट पकौड़ों से कम नहीं होते। इन्हें बारह
महीने पसंद किया जाता है और हमेशा उपलब्ध राजनीति की तीखी मीठी चटनी के साथ खाया जाता
है।

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