कोविड महामारी ने किशोरों के दिमाग को समय से पहले बूढ़ा कर दिया : अध्ययन

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COVID-19 Pandemic Stress Caused Teen Brains To Age By Several Years Claims  Study - कोरोना वायरस ने किशोरों के दिमाग को समय से पहले बूढ़ा कर दिया :  स्टडी | India In Hindi

विनीत माहेश्वरी (संवाददाता) 

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वाशिंगटन, 02 दिसंबर महामारी से जुड़े तनावों ने किशोरों के दिमाग की उम्र को बढ़ा
दिया और भविष्य में इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। एक नए अध्ययन में कहा गया है कि इन
तनावों के चलते किशोर उम्र के बच्चों से उनकी चंचलता और चपलता छिन गई तथा उन्होंने वयस्क
लोगों की तरह ज्यादा सोचना शुरू कर दिया।
अध्ययन में नए निष्कर्षों के हवाले से बताया गया है कि किशोरों पर महामारी के न्यूरोलॉजिकल और
मानसिक स्वास्थ्य प्रभाव और भी बदतर हो सकते हैं। इन्हें बायोलॉजिकल साइकेट्री: ग्लोबल ओपन
साइंस जर्नल में प्रकाशित किया गया है।

स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी, अमेरिका के अध्ययन के अनुसार, अकेले 2020 में वयस्कों में चिंता और
अवसाद की रिपोर्ट में पिछले वर्षों की तुलना में 25 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है।
इस संबंध में शोध पत्र के प्रथम लेखक, इयान गोटलिब ने कहा, ‘‘हम पहले से ही वैश्विक शोध से
जानते हैं कि महामारी ने युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है, लेकिन हमें नहीं
पता था कि क्या असर डाला है या महामारी ने उनके दिमाग को भौतिक रूप से कितना प्रभावित
किया।’’
गोटलिब ने कहा कि जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती है, मस्तिष्क की संरचना में परिवर्तन स्वाभाविक रूप
से होते हैं। यौवन और शुरुआती किशोरावस्था के दौरान, बच्चों के शरीर, हिप्पोकैम्पस और एमिग्डाला
(मस्तिष्क के क्षेत्र जो क्रमशः कुछ यादों तक पहुंच को नियंत्रित करते हैं और भावनाओं को
व्यवस्थित करने में मदद करते हैं) दोनों में वृद्धि का अनुभव करते हैं। उसी समय, कोर्टेक्स में टिश्यू
पतले हो जाते हैं।
महामारी से पहले और उसके दौरान लिए गए 163 बच्चों के एक समूह के एमआरआई स्कैन की
तुलना करके, गोटलिब के अध्ययन से पता चला कि लॉकडाउन के अनुभव के कारण किशोरों में
विकास की यह प्रक्रिया तेज हो गई।
उन्होंने कहा, ‘‘अब तक मस्तिष्क की आयु में इस प्रकार के त्वरित परिवर्तन केवल उन बच्चों में
प्रकट हुए हैं जिन्होंने लंबे समय तक विपरीत हालात का सामना किया चाहे वह हिंसा, उपेक्षा,
पारिवारिक शिथिलता या ऐसे ही कोई अन्य कारक हों।’’
गोटलिब ने कहा कि इन अनुभवों को जीवन में बाद में खराब मानसिक स्वास्थ्य परिणामों से जोड़ा
जाता है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि स्टैनफोर्ड टीम ने जो मस्तिष्क संरचना में बदलाव देखे हैं, वे
मानसिक स्वास्थ्य में बदलाव से जुड़े हैं।
उन्होंने कहा , ‘‘यह भी स्पष्ट नहीं है कि परिवर्तन स्थायी हैं।’’ गोटलिब स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में
स्टैनफोर्ड न्यूरोडेवलपमेंट, अफेक्ट और साइकोपैथोलॉजी (एसएनएपी) प्रयोगशाला के निदेशक भी हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘क्या उनकी कालानुक्रमिक आयु अंततः उनके 'मस्तिष्क की आयु' तक पहुंच जाएगी?
यदि उनका मस्तिष्क स्थायी रूप से उनकी कालानुक्रमिक आयु से अधिक पुराना है, तो यह स्पष्ट
नहीं है कि भविष्य में परिणाम क्या होंगे। 70 या 80 वर्षीय एक व्यक्ति के लिए, आप मस्तिष्क में
परिवर्तन के आधार पर कुछ संज्ञानात्मक और स्मृति समस्याओं की अपेक्षा करेंगे, लेकिन 16 वर्षीय
व्यक्ति के लिए इसका क्या अर्थ है यदि उनका दिमाग समय से पहले बूढ़ा हो रहा है?’’
गोटलिब ने समझाया कि मूल रूप से उनका अध्ययन मस्तिष्क संरचना पर कोविड-19 के प्रभाव को
देखने के लिए डिज़ाइन नहीं किया गया था।

महामारी से पहले, उनकी प्रयोगशाला ने यौवन के दौरान अवसाद पर एक दीर्घकालिक अध्ययन में
भाग लेने के लिए सैन फ्रांसिस्को खाड़ी क्षेत्र के आसपास के बच्चों और किशोरों के एक समूह को
भर्ती किया था – लेकिन जब महामारी आई, तो वह नियमित रूप से निर्धारित एमआरआई स्कैन नहीं
कर सके।
गोटलिब ने कहा, ‘‘यह तकनीक तभी काम करती है जब आप मानते हैं कि 16 साल के बच्चों का
दिमाग कॉर्टिकल मोटाई और हिप्पोकैम्पस और एमिग्डाला वॉल्यूम के संबंध में महामारी से पहले 16
साल के बच्चों के दिमाग के समान है।’’
उन्होंने बताया, ‘‘हमारे डेटा को देखने के बाद, हमने महसूस किया कि ऐसा नहीं हैं। महामारी से
पहले मूल्यांकन किए गए किशोरों की तुलना में, महामारी खत्म होने के बाद मूल्यांकन किए गए
किशोरों में न केवल अधिक गंभीर आंतरिक मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं थीं, बल्कि कॉर्टिकल मोटाई,
बड़ा हिप्पोकैम्पस और एमिग्डाला भी कम हो गया था और दिमाग की उम्र भी बढ़ गई थी।’’
अमेरिका के कनेक्टिकट विश्वविद्यालय के सह-लेखक जोनास मिलर ने कहा, इन निष्कर्षों के बाद के
जीवन में किशोरों की एक पूरी पीढ़ी के लिए गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
मिलर ने कहा, ‘‘किशोरावस्था पहले से ही मस्तिष्क में तेजी से बदलाव की अवधि है, और यह पहले
से ही मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं, अवसाद और जोखिम व्यवहार की बढ़ी हुई दरों से जुड़ी हुयी
है।’’
अध्ययन में कहा गया है कि जिन बच्चों ने महामारी का अनुभव किया है, अगर उनके दिमाग में
तेजी से विकास होता है, तो वैज्ञानिकों को इस पीढ़ी से जुड़े भविष्य के किसी भी शोध में विकास की
असामान्य दर को ध्यान में रखना होगा।

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