भाजपा के लिए गुजरात और रणनीति

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Gujarat election 2022 BJP focuses on caste factors for win in Congress  Somnath bastion - Gujarat Elections: भाजपा के लिए सोमनाथ क्यों रहा है अजेय,   इस बार कांग्रेस के गढ़ में क्या

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विनीत माहेश्वरी (संवाददाता ) 

दरअसल, इस बार सत्तारूढ़ बीजेपी के लिए राज्य में करीब तीन दशकों की और केन्द्र सरकार के आठ
सालों की एंटी-इनकम्बेसी है। जाहिर है बीजेपी के उलझन की एक वजह आम आदमी पार्टी का तेजी
से भारतीय राजनीति में उदय होना भी था। केजरीवाल की पार्टी ने पंजाब में शानदार प्रदर्शन किया
था और कांग्रेस, बीजेपी व अकाली जैसी पुरानी पार्टियों को घुटने पर ला दिया था। आप ने गुजरात
में भी दिल्ली व पंजाब की तर्ज पर सस्ती बिजली-पानी का वादा जनता से कर दिया था। करीब
सालभर पहले से ही केजरीवाल-सिसोदिया और उनकी टीम ने गुजरातियों से सीधा संवाद स्थापित कर
मुख्य विपक्षी कांग्रेस की जगह हथियाने की कोशिश शुरू कर दी थी।
ये सब बातें बीजेपी की टॉप लीडरशिप देख रही थी, समझ रही थी कि जमीन पर युवा वोटरों में आप
पैर जमाने लगी है और तभी एक बहुत ही क्रांतिकारी फैसला मोदी-शाह की जोड़ी ने अपने गुजरात में
किया और अब से करीब चौदह महीने पहले सीएम समेत पूरी कैबिनेट बदल कर बिल्कुल ‘युवा’ रूप
दे दिया।
पहली बार के विधायक भूपेन्द्र पटेल को सीएम की कुर्सी सौंपी और दो बार के विधायक और एक बार
के सांसद विजय रुपानी को सियासी रिटायरमेंट दे दिया गया। ये सब इसलिए ताकि सत्ता विरोधी
लहर को दबाया जा सके और फर्स्ट टाइम वोटर को अपने पाले में लाया जा सके।
ये सब बीजेपी तब कर रही थी जब वो 2019 के लोकसभा चुनावों में सभी 26 सीटें (63.11 फीसदी
वोट शेयर) जीत चुकी थी और कांग्रेस के पास महज 32.6 फीसदी वोट ही थे और आप की हालत तो
कहीं की नहीं थी। लेकिन मोदी-शाह की जोड़ी ने आप के उदय और कांग्रेस के विघटन को पढ लिया
और बीजेपी नहीं चाह रही थी कि मामला इस बार आप के साथ बायपोलर कॉन्टेस्ट का हो जाए
यानी केजरीवाल बनाम मोदी की सीधी टक्कर।

याद रहे कि हर रैली या भाषणों या इंटरव्यू में बीजेपी के दोनों बड़े नेता कांग्रेस से ही मुकाबले की
बात कर रहे थे। आप को तो कहीं गिन ही नहीं रहे थे। ये विरोधी वोटरों में कन्फ्यूजन पैदा करने की
रणनीति थी ताकि विरोधी वोटों में विभाजन किया जा सके। लेकिन इसके बावजूद भी मोदीनॉमिक्स
और विकास के एजेंडे पर चुनाव लडने वाली बीजेपी के लिए चुनाव के ठीक पहले एक नहीं दो दो
मुसीबतें आईं।
मोरबी पुल हादसे की वजह से विकास मॉडल पर सवाल खड़े हुए, और गोधरा दंगों की पीड़िता
बिल्किस बानो के तमाम अपराधियों को राज्य सरकार ने ‘बाइज़्ज़त’ बरी कर दिया..यानी हिंदुत्व की
प्रयोगशाला कहे जाने वाले गुजरात चुनाव में सांप्रदायिकता का तड़के अंदेशा बढ़ गया। इन दो बड़े
मुद्दों के हाथ में लगने के बाद विपक्ष यानी आप और कांग्रेस को बीजेपी की स्थानीय सरकार को
घेरने का मौका मिला।

महंगाई, बेरोजगारी, और छात्रों के पर्चा लीक के मामले पहले ही बहुत गरम थे, लेकिन अब जब
प्रचार खत्म होने को है तो तमाम ओपिनियन पोल की बिनाह पर कह सकते हैं कि इन मुद्दों का
बीजेपी ने जोरदार तरीके से मुकाबला किया है और आप हो या कांग्रेस या फिर बीजेपी के अपने ही
बागी हों, ये सब इस चुनावी बिसात में मुहाने पर ही दिख रहे हैं!
बीजेपी की कारपेट बॉमबिंग वाले प्रचार के शोर में ये सभी मुद्दे सुनाई नहीं दे रहे हैं। पीएम मोदी के
जबरदस्त प्रचार ने पूरी हवा का रुख पलटने की कोशिश की है। अब विमर्श में भावनात्मक मुद्दे
पीएम मोदी ने उछाल दिए हैं कि कांग्रेसी उन्हें औकात दिखाने बात कर रहे हैं। कांग्रेस के मधुसूदन
मिस्त्री ने पीएम मोदी को औकात दिखाने वाली बात एक इंटरव्यू में की थी, साथ ही मोदी अब
रैलियों में कहते हैं कि उन्हें हर रोज दो-ढाई किलो गाली खानी पड़ती है।

बीजेपी के स्टार प्रचारक मोदी ये भी कहते हैं-
कांग्रेस गुजरात विरोधी मेधा पाटकर के साथ हाथ पकड़कर चलती हैं। वो मेधा पाटकर जो गुजरात के
विकास की विरोधी रही हैं। मेधा पाटकर ने राहुल गांधी के साथ भारत जोड़ो यात्रा में शिरकत की थी।
पीएम मोदी और एचएम अमित शाह की रैलियों में बाटला हाउस, सर्जिकल स्ट्राइक और पाकिस्तानी
आतंकवाद का ज़िक्र भी आख़िरी चरण के प्रचार में जमकर दिखा, और तो और बीजेपी ने रेवड़ी
बांटकर चुनाव जीतने के आप के फॉर्मूले का भी तोड़ निकाल दिया है। गुजराती अस्मिता से जोड़कर..
ये कहते हुए कि गुजरातियों को मेहनत की कमाई पसंद है, मुफ्तखोरी की नहीं।
कैसे मिलेगा भाजपा को फायदा?
चुनावी पंडित बताते हैं कि बीजेपी को एक और फायदा मिलेगा और वो है अल्पसंख्यक और साधारण
तबके का वोट कांग्रेस और आप में बंटने के कारण। मुसलमानों में आप की बढ़ती ताकत पर ब्रेक
लगाने का काम बहुत हद तक 11-12 सीटों पर लड़ने वाले औवेसी भी कर रहे हैं। उनकी पार्टी
AIMIM भी पहली बार गुजरात के चुनावी मैदान में है, और उनपर ये इल्ज़ाम भी लग रहा है कि
मुसलमानों के वोट बैंक में सेंध लगाकर वो बीजेपी की ही मदद कर देते हैं।
2017 के बीते चुनाव में कांग्रेस के सियासी सुपरस्टार रहे हार्दिक पटेल और अल्पेश ठाकोर अब
बीजेपी से चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसे में बीजेपी के पास इस बार पाने के लिए बहुत कुछ है और ऐसे में
इस बार अब तक के इतिहास में सबसे ज्यादा सीटें अगर बीजेपी ले आए और नया रिकॉर्ड बना ले
तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
सब जानते हैं कि चुनाव के बाद राज्य में या तो भूपेन्द्र पटेल या इसूदान गधवी या कोई स्थानीय
कांग्रेसी ही सीएम बनेंगे ना कि मोदी या केजरीवाल या राहुल गांधी, तो भी चुनाव स्थानीय मुद्दों के
बजाए राष्ट्रीय मुद्दों और चेहरे पर ही लड़ा जा रहा है। ऐसे में मोदी का गुजराती नागरिक होने के
साथ 12-13 साल तक मुख्यमंत्री होने का उनका सफल अनुभव दोनों विरोधियों पर भारी पड़ जाता
है।

सीएम मोदी के पहले नेतृत्व में ही बीजेपी ने गोधरा दंगों के बाद 2002 में सबसे शानदार प्रदर्शन
किया था जब 49.8 फीसदी के साथ अब तक की सबसे ज्यादा 127 सीटें बीजेपी जीती थी, जबकि
कांग्रेस 51 सीटों पर ही सिमट गई थी!
2007 में बीजेपी के वोट शेयर लगभग समान ही रहा लेकिन सीटें घटकर 117 (49.12 फीसदी) पर
आ गई।
2012 में भी बीजेपी के आंकडों में कमी आई और वो 115 सीटें (47.85 फीसदी) पर रह गयी,
जबकि कॉंग्रेस आगे बढ़ी और उसे 61 सीटें (38.93 फीसदी) के साथ मिलीं।
2017 में मोदी पीएम बनकर दिल्ली आ चुके थे और उनकी गैरहाजिरी में राज्य में पाटीदारों और
आदिवासियों के आंदोलन हुए।
उसी के साए में चुनाव भी हुए। बीजेपी गिरकर डबल डिजीट यानी 99 सीटों पर आ गई लेकिन
उसका वोट शेयर करीब दो फीसदी बढ़ा और (49.05 फीसदी ) तक पहुंच गया।
इस बार गुजरात कांग्रेस में बड़े और प्रभावी नेताओं की कमी भी महसूस की जा रही है। अहमद पटेल
का कोरोना की वजह से स्वर्गवास हो चुका है। सोनिया-प्रियंका ने गुजरात में प्रचार किया ही नहीं और
राहुल ने मात्र एक दिन का वक्त दिया प्रचार के लिए। ऐसे में चुनाव प्रचार पूरी तरह से बीजेपी
बनाम आप रहा।
वैसे, आम आदमी पार्टी को जो अभी तक दो बड़ी सफलताएं मिली हैं वो उन राज्यों में मिली हैं जहां
पर कांग्रेस शासन में रही है और बीजेपी बेहद कमजोर रही है। दिल्ली और पंजाब में केजरीवाल ने
राहुल गांधी की सत्तारुढ पार्टी को शिकस्त देकर वहां की सत्ता संभाली है। बीजेपी की सरकारों पर झाड़ू
लगाने का दायित्व अभी केजरीवाल के लिए अधूरा ही है।
ऐसे में आप गुजरात में मोदी का किला छीन पाएगी वो संदेह के ही घेरे में है। यही बात तमाम सर्वे
में निकल कर आ रही है। ऐसे में त्रिकोणीय संघर्ष बीजेपी के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकता
है और ताजा ओपिनियन पोल की मानें तो 130 का आंकड़ा कोई दूर की कौड़ी नहीं दिखती।
(यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए
वेब वार्ता उत्तरदायी नहीं है।)

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