जिनपिंग के खिलाफ जनता

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China में Jinping के खिलाफ जनता का प्रदर्शन, लोगों ने जिनपिंग मुर्दाबाद के  लगाए नारे | COVID - YouTube

विनीत माहेश्वरी (संवाददाता ) 

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चीन दो घटनाओं की सचाई से डरता है। एक, उसकी आर्थिक तरक्की कम नहीं होनी चाहिए, लिहाजा
उसके लिए वह कुछ भी कर सकता है। दूसरे, चीन की अपनी 142 करोड़ से ज्यादा की आबादी, सत्ता
के खिलाफ, बग़ावत और विद्रोह न करे। उसे दबाने के लिए चीन की हुकूमत दमन और अत्याचार की
किसी भी हद तक जा सकती है। 1989 में बीजिंग के थ्येनमेन चौक पर दुनिया छात्र-आंदोलन का
जबरदस्त विद्रोह देख चुकी है। 1999 में फलुंग गोंग अनुयायियों के व्यापक जन-विद्रोह को भी
इतिहास ने देखा है। इन दोनों विद्रोहों को कैसे कुचल दिया गया, उसका विश्लेषण एक व्यापक विषय
है, लेकिन चीन आज भी अशांत और बेचैन है। एक चिंगारी आग का रूप धारण कर चुकी है और वह
आग फैलती ही जा रही है। चीन की अर्थव्यवस्था भी गोते खा रही है। कई बैंक दिवालिया घोषित
किए जा चुके हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने प्लांट बंद कर भारत आना चाहती हैं अथवा अपने मूल
देशों को लौट रही हैं। बहरहाल चीन में मौजूदा जन-विद्रोह कोरोना वायरस की बेहद कड़ी और
अमानवीय नीति के खिलाफ है। इस बार भी युवा, खासकर छात्र और नौकरीपेशा, सडक़ों पर उतरे हैं।
राजधानी बीजिंग और औद्योगिक शहर शंघाई के साथ-साथ प्रमुख शहरों में भी विद्रोह गली-मुहल्ले
तक पसर चुका है।
आंदोलनकारियों को पीटा जा रहा है, उन पर गोलीबारी भी की जा रही है और उन्हें जेल में भी ठूंसा
जा रहा है, लेकिन विद्रोही जनता चीख रही है-‘हमें कोरोना टेस्ट नहीं, रोटी चाहिए। ज़ीरो कोरोना
नीति को वापस लो और लॉकडाउन खोलो। हमें मानवाधिकार और आज़ादी चाहिए।’ चीन की
कम्युनिस्ट सत्ता डर रही है और खौफ में भी है कि कहीं चीन की नियति भी सोवियत संघ जैसी न
हो! लोग लोकतंत्र की आवाज़ बुलंद करना न शुरू कर दें! विद्रोही जनता राष्ट्रपति शी जिनपिंग को
‘अवैध’ करार देते हुए ‘तानाशाह’ मानने लगी है। जनता जिनपिंग का इस्तीफा मांग रही है और
‘गद्दी छोड़ो’ की हुंकारें भरी जा रही हैं। जिस शख्स को कभी चीन का ‘नायक’ माना जाता था, आज
वह ‘खलनायक’ बन गया है। यकीनन शी जिनपिंग के लिए, चीन के भीतर ही, यह अप्रत्याशित और

अभूतपूर्व स्थिति है। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने बीते दिनों शी को लगातार तीसरी बार पार्टी
महासचिव चुना था। उससे उनका लगातार तीसरी बार चीन का राष्ट्रपति बनने का भी रास्ता खुल
गया था। ऐसा संविधान अनुमति नहीं देता, लेकिन जिनपिंग ने दबाव डालकर पार्टी कांग्रेस में ऐसा
फैसला करवा लिया। जाहिर है कि संविधान में भी संशोधन किया गया होगा, लेकिन ‘ज़ीरो कोरोना
नीति’ को लेकर जन-विद्रोह जैसा आकार और प्रभाव ग्रहण कर रहा है, उससे कुछ भी हो सकता है।
दरअसल कोरोना वायरस ने जब वैश्विक महामारी का घोषित रूप लिया था, तब दुनिया के एक बड़े
पक्ष ने माना था कि वायरस का प्रसार चीन से हुआ है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जांच का नाटक भी किया, लेकिन कोई ठोस निष्कर्ष सामने नहीं आया।
कोरोना विस्तार के शुरुआती दौर में और 2020 के बाद भी कई देशों ने स्वीकार किया था कि चीन
की ‘ज़ीरो कोरोना नीति’ प्रभावी है। उस दौर में भारत और प्रधानमंत्री मोदी की कई स्तरों पर
आलोचना की गई थी कि भारत भी चीन जैसा ही घनी और विशाल आबादी का देश है, लेकिन वह
महामारी को ठीक ढंग से नियंत्रित नहीं कर पा रहा है। ऐसे देश गलत साबित हुए। भारत में न
केवल महामारी पर काबू पाया गया, बल्कि कुछ कारगर टीकों का भी आविष्कार हुआ। भारत ने
जरूरतमंद देशों को वे टीके सप्लाई किए। लोग स्वस्थ हुए। आज स्थिति यह है कि भारत में कोरोना
के रोज़ाना संक्रमित मरीज औसतन 300 से कम हैं और चीन में यह संख्या 40,000 से अधिक है।
चीन में लॉकडाउन ने अर्थव्यवस्था को बंद-सा कर दिया है, जबकि भारत के बाज़ार और आर्थिक,
औद्योगिक गतिविधियां सुचारू तौर पर चल रही हैं। चीन में असंतोष और विद्रोह है, जिनकी नियति
कुछ भी संभव है।

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