भारत का इतिहास कैसे लिखें?

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How to write history of India said PM Narendra Modi Bharat Ka Itihas, Aaj  ki Taza Khabar, Latest News in Hindi, Newstrack Hindi Samachar | Bharat Ka  Itihas: भारत का इतिहास कैसे

विनीत माहेश्वरी (संवाददाता ) 

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असम के महान सेनापति लाचित बरफुकन की 400 वीं जयंति पर बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
ने कहा है कि भारतीय इतिहास को फिर से लिखा जाना चाहिए। यही बात कुछ दिनों पहले गृहमंत्री
अमित शाह ने भी कही थी। यह ठीक है कि प्रत्येक इतिहासकार इतिहास की घटनाओं को अपने
चश्मे से ही देखता है। इस कारण उसके अपने रुझान, पूर्वाग्रह और विश्लेषण-प्रक्रिया का असर उसके
निष्कर्षों पर अवश्य पड़ता है। इसीलिए हम देखते हैं कि एक इतिहासकार अकबर को महान बादशाह
बताता है तो दूसरा उसकी ज्यादतियों को रेखांकित करता है।
एक लेखक इंदिरा गांधी को भारत के प्रधानमंत्रियों में सर्वश्रेष्ठ बताता है तो दूसरा उन्हें सबसे अधिक
निरंकुश शासक सिद्ध करता है। इस तरह के दोनों पक्षों में कुछ न कुछ सच्चाई और कुछ न कुछ
अतिरंजना जरुर होती है। यह पाठक पर निर्भर करता है कि वह उन विवरणों से क्या निष्कर्ष
निकालता है। भारत में इतिहास-लेखन पर सोवियत संघ, माओवादी चीन और कास्त्रो के क्यूबा की
तरह कभी कोई प्रतिबंध नहीं रहा।
यह ठीक है कि मुगल काल और अंग्रेजों के राज में जो इतिहास-लेखन हुआ है, वह ज्यादातर
एकपक्षीय हुआ है लेकिन अब बिल्कुल निष्पक्ष लेखन की पूरी छूट है। हमारे इतिहासकार यदि यह
बताएं कि विदेशी हमलावर भारत में क्यों सफल हुए और इस सफलता के बावजूद भारत को वे तुर्की,
ईरान व अफगानिस्तान की तरह पूरी तरह क्यों नहीं निगल पाए तो उनका बड़ा योगदान माना
जाएगा।
यदि सरकारी संस्थाएं इतिहास को अपने ढंग से लिखने का अभियान चला रही हैं तो कई गैर
सरकारी संगठन भी इस दिशा में सक्रिय हो गए हैं। इन दोनों अभियानों का ध्यान भारतीय इतिहास
के उन नायकों पर भी जाए, जो लाचित बरफुकन की तरह उपेक्षित रहे हैं तो भारतीय जनता के
मनोबल में अपूर्व वृद्धि होगी। जैसे मानगढ़ के भील योद्धा गोविंद गुरु बेंगलुरु के नादप्रभु केंपेगौडा,
आंध्र के अल्लूरी सीताराम राजू, बहराइच के महाराजा सुहेलदेव, रांची के योद्धा बिरसा मुंडा, मध्य
प्रदेश के टंट्या भील और 1857 के अनेक वीर शहीदों का स्मरण किया जाए तो भारतीय इतिहास के
कई नए आयाम खुलेंगे।

इसी तरह संपूर्ण दक्षिण, मध्य और आग्नेय एशिया में भारत के साधु-संतों, विद्वानों, वैद्यों और
व्यापारियों ने जो अद्भुत छाप छोड़ी है, उस पर भी अभी बहुत काम बाकी है। वह वर्तमान खंडित
भारत का नहीं, संपूर्ण आर्यावर्त का इतिहास होगा। इसी प्रकार अंग्रेजी-शासन के विरुद्ध भारत के
क्रांतिकारियों ने भारत में रहकर और विदेशों में जाकर जो अत्यंत साहसिक कार्य किए हैं, उन पर भी
अभी काम होना बाकी है। प्राचीन भारत का प्रभाव पूरे एशिया और यूरोप में कैसा रहा है और हमारी
विद्याओं का विश्व के विकास में क्या योगदान रहा है, इसे भी अभी तक ठीक से रेखांकित नहीं
किया गया है। इसे सभी रंगों के इतिहासकारों को मिलकर काम करना होगा।
(लेखक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं।)

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