



विनीत माहेश्वरी (संवाददाता )
सर्वोच्च अदालत में पांच न्यायाधीशों की एक संविधान पीठ ने नोटबंदी के भारत सरकार के फैसले में
हस्तक्षेप करने और तत्संबंधी अधिसूचना को ‘अवैध’ करार देने से इंकार कर दिया, लेकिन नोटबंदी से
जुड़े अधिकारियों की एक स्वतंत्र एजेंसी से जांच की याचिका के साथ अन्य विसंगतियों को लेकर
बंबई उच्च न्यायालय जाने को कहा है। नोटबंदी में 500 और 1000 रुपए के पुराने नोट ‘अवैध’
घोषित किए गए थे। बाद में 500 रुपए का नया नोट बाज़ार में आया, लेकिन 1000 रुपए का नोट
बिल्कुल समाप्त कर दिया गया। उसके स्थान पर सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक ने 2000 रुपए
का जो नोट जारी किया था, आज वह भी ‘अघोषित’ तौर पर चलन में नहीं है। संविधान पीठ के
सामने 2000 रुपए और 200 रुपए के नोटों से जुड़ी गंभीर और सवालिया विसंगतियां आई हैं।
हालांकि उनमें प्रत्यक्ष हस्तक्षेप से इंकार किया गया है, लेकिन पीठ का फैसला लिखित रूप में अभी
सामने आना है। इस संदर्भ में भारत सरकार के अटॉर्नी जनरल वेंकटरमणि ने पक्ष रखा है कि
अदालत नोटबंदी के संदर्भ में कोई आदेश नहीं दे सकती। नोटबंदी के बाद 500 और 1000 रुपए के
नोट बदलने के मद्देनजर विंडो को काफी आगे बढ़ाया गया था। जो लोग इसका फायदा नहीं उठा
सके, तो अब सरकार क्या कर सकती है?
अलबत्ता कुछ विशेष मामलों में विचार जरूर किया जा सकता है। संविधान पीठ ने भी एक व्यवस्था
बनाने पर विचार करने की बात कही है, लेकिन फिलहाल सब कुछ अपरिभाषित है। संविधान पीठ के
सामने सूचना के अधिकार कार्यकर्ता मनोरंजन रॉय की याचिका के जरिए जो दूसरा पक्ष बेनकाब हुआ
है, उससे रिजर्व बैंक और भारत सरकार के नोट छापने वाली प्रिंटिंग प्रेस के विरोधाभास खुले हैं। इस
मुद्दे पर हिमाचल के नौजवान अधिवक्ता अजय मारवाह ने संविधान पीठ के सामने जिरह की है।
उनका बुनियादी सवाल था कि अप्रैल 1, 2000 से 2018 के बीच रिजर्व बैंक की सालाना रपटों और
सूचना के अधिकार कानून के तहत प्राप्त जानकारी के मुताबिक, 500 और 1000 रुपए के नोट 14
ट्रिलियन से अधिक मूल्य के चलन में थे। प्रधानमंत्री मोदी ने 8 नवंबर, 2016 को नोटबंदी की
घोषणा की और 500 तथा 1000 रुपए के मुद्रा नोटों को ‘अवैध’ करार दे दिया गया। अटॉर्नी जनरल
के मुताबिक, देश में नकली नोटों की समस्या और आतंकवाद का वित्त-पोषण रोकने के लिए नोटबंदी
का कदम उठाया गया। प्रधानमंत्री ने भी ऐसे ही दावे किए थे, लेकिन बहुत जल्दी साफ हो गया कि
नकली मुद्रा को ही नोटबंदी के कारण बैंकों को ‘सफेद’ करना पड़ा। नोटबंदी की घोषणा के मात्र तीन
दिनों के अंतराल में ही रिजर्व बैंक ने 15 ट्रिलियन रुपए के नोट जमा किए। जो नोट चलन में बताए
जा रहे थे, उनका मूल्य 14 ट्रिलियन से कुछ ज्यादा था और नोटबंदी के बाद 1 ट्रिलियन रुपए बैंकों
में इक_ा किए गए। यह एक ट्रिलियन रुपए के नोट कहां से आए? क्या अर्थव्यवस्था में नकली
मुद्रा चलन में रही है? क्या ऐसी मुद्रा इससे भी ज्यादा मूल्य की हो सकती है?
ये सवाल संविधान पीठ के सामने भी उठे। जो दस्तावेज पीठ के सामने पेश किए गए हैं और रिजर्व
बैंक की रपटों में भी दर्ज हैं, उनके मुताबिक नोटबंदी से कुछ माह पहले मई, 2016 में रिजर्व बैंक
के सेंट्रल बोर्ड की बैठक हुई। उसके एजेंडा-16 के तहत बोर्ड ने 500 रुपए के नए नोट के डिज़ाइन,
प्रारूप आदि को मंज़ूरी दी। बाद में भारत सरकार को अपनी अनुशंसा भेज दी। सूचना के अधिकार
कानून के तहत जो जानकारी प्राप्त की गई है, उसके मुताबिक सरकारी प्रिंटिंग प्रेस का कहना है कि
500 रुपए के नए नोट उसने 2015 में ही छापने शुरू कर दिए थे। छपाई के बाद 345 मिलियन
नोट रिजर्व बैंक को भेज भी दिए गए थे। यदि इन नोटों को 500 से गुणा करते हैं, तो राशि सामने
आ जाएगी। पीठ के सामने सवाल था कि जब डिज़ाइन और प्रारूप आदि को स्वीकृति ही नहीं दी गई
थी, तो 2015 में ही, नोटबंदी से करीब एक साल पहले, यह मुद्रा कैसे छाप दी गई? ऐसा ही
मामला 200 और 2000 रुपए के नए नोटों का है। घपला हुआ है या संविधान से इतर भी कुछ
ताकतें काम कर रही हैं, इसका खुलासा अब बंबई हाईकोर्ट में हो सकता है। यह मामला बहुत लंबा
और बेहद संवेदनशील है। देशहित भी इससे जुड़ा है। हमने बड़े संक्षेप में विश्लेषण किया है। एक
अंतिम न्यायिक निर्णय की प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। नोटबंदी को लेकर तभी लोग अपना रुख बना
सकेंगे।