



विनीत माहेश्वरी (संवाददाता)
पाकिस्तान से एक भारत-विरोधी ख़बर आई है। वहां की फौज के जिस शख्स को हम ‘खलनायक’ ही
नहीं, बल्कि ‘कातिल’ मानते रहे हैं, उसे ही हुकूमत ने फौज का ‘जनरल’ बनाने का फैसला लिया है।
यदि राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने सरकार के फैसले पर मुहर लगाने में देरी नहीं की, तो आसिम मुनीर
पाकिस्तान के नए सेना-प्रमुख होंगे और निवर्तमान जनरल बाजवा उन्हें ‘रावलपिंडी’ की कमान सौंप
कर सेवानिवृत्त हो जाएंगे। राष्ट्रपति अधिकतम 30 दिनों तक फैसले के प्रस्ताव को लटका सकते हैं
और पुनर्विचार की टिप्पणी करते हुए हुकूमत को वापस भेज सकते हैं। यदि हुकूमत ने दोबारा वही
प्रस्ताव राष्ट्रपति को भेजा, तो संवैधानिक बाध्यता के तहत उन्हें मुहर लगानी ही पड़ेगी। राष्ट्रपति
अल्वी बुनियादी तौर पर इमरान खान की पार्टी ‘तहरीक-ए-इंसाफ पाकिस्तान’ के नेता रहे हैं, लिहाजा
कोशिशें जारी हैं कि फौज का मुखिया सर्वसम्मति से चुना दिखाया जाए। यह सहमति भी सवालिया
है, क्योंकि प्रधानमंत्री रहते हुए इमरान खान ने मुनीर को खुफिया एजेंसी आईएसआई के महानिदेशक
पद से बर्खास्त किया था। तब सेना-प्रमुख जनरल बाजवा ने भी आपत्ति नहीं की थी, क्योंकि इमरान
को उनका ही ‘पसंदीदा प्रधानमंत्री’ माना जाता था। जनरल आसिम मुनीर मिलिट्री इंटेलीजेंस के भी
डीजी रहे, लेकिन वह आईएसआई प्रमुख के पद पर न्यूनतम 8 महीने ही काम कर सके। बताया
जाता है कि आईएसआई मुखिया के तौर पर मुनीर ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान को सूचना दी थी
कि प्रथम महिला और उनके परिजन भ्रष्टाचार की गतिविधियों में लिप्त हैं।
इस पर इमरान बिफर उठे और उन्हें बर्खास्त कर दिया। इमरान मुनीर को ‘संदेहास्पद जनरल’ भी
मानते हैं, क्योंकि उन्हें निर्वासित प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ की पसंद करार दिया जाता रहा था।
बहरहाल जनरल मुनीर को इसलिए भारत-विरोधी माना जाता रहा है, क्योंकि जब फरवरी, 2019 में
पुलवामा आतंकी हमला किया गया था, जिसमें सीआरपीएफ के 40 जांबाज जवान ‘शहीद’ हो गए थे,
तब मुनीर आईएसआई के मुखिया थे। उन्हें पुलवामा साजि़श की जानकारी न रही हो, ऐसा माना नहीं
जा सकता। वह भारत से घोर नफरत करने वाले कुख्यात फौजी भी माने जाते रहे हैं, क्योंकि उनकी
सरपरस्ती में सीमापार आतंकवाद जोरों पर रहा। दहशतगर्दों को प्रशिक्षण दिलाने और उन्हें हथियार,
गोला-बारूद मुहैया कराने में उनकी कारगर भूमिका रही है। हालांकि फाट्फ (फाइनेंशियल एक्शन
टास्क फोर्स) ने पाकिस्तान को ‘ग्रे’ लिस्ट में डाल दिया था, लिहाजा आतंकी साजि़शें और हरकतें कम
करनी पड़ीं, लेकिन जम्मू-कश्मीर और पंजाब में नियंत्रण-रेखा और अंतरराष्ट्रीय बॉर्डर पर पाकपरस्त
आतंकी आज भी ड्रोन से हथियार और मादक पदार्थ फेंकते हैं। बहरहाल ज्यादा परेशानी खुद
पाकिस्तान को होने वाली है। वहां ‘फौज बनाम अवाम’ के असंतुलित हालात हैं। फौज बदनाम हो
चुकी है। सियासी उथल-पुथल के लिए अवाम उसे भी जिम्मेदार मानती है। फौज में भी इमरान-
समर्थक और इमरान-विरोधी गुट हैं।
संभव है कि नए सेना प्रमुख और पूर्व प्रधानमंत्री में आपसी समझौता हो जाए और फौज गैर-सियासी
होने की कोशिशें करे। पाकिस्तान में यह भी आसान नहीं है, क्योंकि फौज अपना वर्चस्व बनाए रखना
चाहती है और हुकूमत में भी हस्तक्षेप की आदी रही है, लिहाजा यह देखना दिलचस्प होगा कि
पाकिस्तान के नए जनरल, फौज के भीतर ही, एकजुटता और संतुलन कैसे पैदा कर पाते हैं? यह भी
गौरतलब होगा कि भारत और पाकिस्तान के संबंध कितने सामान्य हो पाते हैं? जनरल बाजवा ने
यह कहना शुरू किया था कि भारत के साथ कारोबार के रिश्ते कायम किए जाने चाहिए। इसके
अलावा, 2003 के घोषित युद्धविराम को शिद्दत से लागू किया जाना चाहिए। क्या भारत-विरोधी
जनरल इस लाइन और सोच पर आगे बढक़र या हिंदुस्तान से अपील कर, शांति और स्थिरता का
हाथ बढ़ा पाएंगे? जनरल बाजवा को 29 नवंबर को रिटायर होना है। दिलचस्प यह भी है कि मुनीर
को दो दिन पहले 27 नवंबर को सेवानिवृत्त होना था, लेकिन वह ‘काला घोड़ा’ साबित हुए और
हुकूमत ने उन्हें सेना-प्रमुख बना दिया। अब जनरल मुनीर का दौर शुरू होना है, तो भारत के पास
अपनी सुरक्षा-व्यवस्था को चाक-चौबंद करने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है। लगता है
पाकिस्तान का भारत के खिलाफ शत्रुता वाला रुख कायम रहेगा।