आग की लपटें (कविता)

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Ramdaras Mishra Best Hindi Poem Aag - आग कुछ नहीं बोलती, प्रतीक्षा करती है  किसी गृहिणी के हाथों की - Amar Ujala Kavya

विनीत माहेश्वरी (संवाददाता ) 

मैं आज सुबह
उठा और देखा
रात की बूंदाबांदी से
जम गई थी धूल,
वायुमंडल में
व्याप्त रहने वाले
धूलकण भी
थे नदारद,
मन हुआ खुश
देखकर यह सब,
कुछ देर बाद
उठाकर देखा अख़बार
तो जल रहा था वतन
साम्प्रदायिकता व
जातिवाद की आग में,
यह बरसात
नहीं कर पाई कम
इस आग को।।
(रचनाकार से साभार प्रकाशित)

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