



विनीत माहेश्वरी (संवाददाता)
भारत की राजनीति का अब जनसेवा या देश सेवा से दूर का भी वास्ता नहीं रहा, अब तो सत्ता सिर्फ
और सिर्फ ‘दीर्घजीवी’ और ‘स्वार्थ सिद्धी’ का साधन मात्र बन गई है और इन दोनों राजनीतिक
उद्धेश्यों की पूर्ति के लिए पूर्वाग्रह का परिपोषण जरूरी है और उसी रास्ते पर आज की राजनीति
अग्रसित है, आज जो भी सत्ता में होता है, वह वही करता है जिसे काँग्रेस ने साठ साल सत्ता में
रहकर किया अर्थात् एक-दूसरे का चीर हरण और पूर्वाग्रही राजनीति। आज भी वही परम्परा जारी है,
जिसका जीता जागता उदाहरण सत्तारूढ़ भाजपा पार्टी का केन्द्र सरकार द्वारा गुजरात के मैदान में
सामने आई आम आदमी पार्टी के साथ पूर्वाग्रही राजनीतिक चाल। गुजरात चुनाव में जाकर अरविंद
केजरीवाल ने मजबूती से ताल क्या ठोंकी, उनकी पार्टी व उनके नेताओं पर आफतों की बरसात शुरू
हो गई और उन्हें जेल का रास्ता दिखाने की तैयारी शुरू हो गई।
केन्द्रीय सरकारी खूफिया सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार गुजरात चुनावों की संभावनाओं को लेकर
केन्द्र सरकार को हाल ही में एक सर्वेक्षण रिपोर्ट मिली है, जिसमें बताया जा रहा है कि मोदी जी
और उनकी भाजपा के मुकाबलें अरविंद केजरीवाल की अपील और दलीलें वहां ज्यादा भारी पड़ रही है,
यद्यपि मोदी जी ने गुजरात सहित सभी चुनावी राज्यों की चुनावी बागडोर केन्द्रीय गृहमंत्री अमित
शाह को सौंप दी है और उन्होंने हिमाचल से उसकी शुरूआत भी कर दी है, मध्यप्रदेश में भी रविवार
को आयोजित हिन्दी में मेडिकल की पढ़ाई अभियान की शुरूआत का आयोजन भी उसी उद्धेश्य की
भेंट चढ़ गया, लेकिन अब यह तय हो गया है कि अब 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव व उसके
पहले होने वाले राज्य विधानसभा चुनावों का पूरा दारोमदार अमित शाह पर ही केन्द्रीत रहेगा और
उन्हीं के निर्देशन में अब भाजपा का ‘‘चक्रवर्ती सम्राट’’ बनने का अभियान चलेगा, भाजपा तथा मोदी-
अमित शाह का यही एक सपना है कि वे व उनकी पार्टी देश के सभी राज्यों पर ‘एक छत्र’ राज करंे
और ये दोनों नेता ‘चक्रवर्ती सम्राट’ बन देश पर राज करें…. और इस महत्वाकांक्षा की पूर्ति हेतु
राजनीति के ‘साम-दाम-दण्ड-भेद’ जो भी साधन अपनाना पड़े, वे जायज ही कहे जाएगें, पूर्वाग्रही
राजनीति भी इसी का एक अविभाज्य अंग है, जिसे अपनाने को मोदी-शाह मजबूर है, फिर मोदी-शाह
के लिए गुजरात के चुनाव उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता है, यदि वहां गैर भाजपा किसी दल का कब्जा
होता है तो वह दोनों सर्वोच्च नेताओं की आन-बान-शान के खिलाफ होगा, इसलिए येन-केन-प्रकरण
आप व उसके नेताओं को शिकंजे में लेना शुरू कर दिया गया है, जिसकी शुरूआत आप के दूसरे क्रम
के बड़े नेता मनीष सिसोदिया से शुरू हो गई है, संभव है सीबीआई में उनकी आजकी पेशी के बाद
आबकारी नीति के आरोप में उन्हें गिरफ्तार भी कर लिया जाए, जैसी की अरविंद केजरीवाल की
आशंका है। यहां यह स्मरणीय होगा कि केन्द्र की भाजपा सरकार ने दिल्ली सरकार की बहुचर्चित
आबकारी नीति के तहत शराब के बड़े ठेकेदारों को 144 करोड़ 35 लाख का लाभ पहुंचाने का अरोप
लगाया है और केन्द्रीय जांच ब्यूरों (सीबीआई) से उसकी जांच भी शुरू करवा दी गई है और दिल्ली
सरकार के आबकारी मंत्री मनीष सिसोदिया जी की सीबीआई के सामने पहली पेशी भी हो चुकी है।
यहाँ मूल रहस्यमयी बात यह भी है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व अमित शाह को उनकी केन्द्र
सरकार के नाक के नीचे दिल्ली में गैर भाजपाई सरकार पच नहीं रही है, क्योंकि उनकी निर्देशों का
पालन दिल्ली में ही नहीं हो पा रहा है और जहां तक आम आदमी पार्टी का सवाल है, वह दिल्ली के
बाद पंजाब में तो काबिज हो ही गई अब गोवा-गुजरात जेसे राज्यों पर भी कब्जा करने की जुगत में
है, इसीलिए अब भाजपा के लिए कांग्रेस नहीं बल्कि आम आदमी पार्टी ‘‘दुश्मन नम्बर वन’’ हो गई
है, इसलिए अब भाजपा की नजर कांग्रेस पर नहीं ‘आप’ पर है, किंतु आप से निपटने के लिए
हथकण्डे तो कांग्रेसी ही अपनाए जा रहे है, इसके लिए किया क्या जाए, अब तो प्यार व युद्ध की
तरह राजनीति में भी सब जायज जो है? इस प्रकार अब देश में कुल मिलाकर सत्ता की राजनीति
केन्द्र में सत्तारूढ़ भाजपा और नए सिरे से उभरती जा रही आम आदमी पार्टी पर ही केन्द्रित होकर
रह गई है और देश की वयोवृद्ध कांग्रेस पार्टी अपने बुढ़ापे के दर्द सहन करने को मजबूर है।