



विनीत माहेश्वरी (संवाददाता)
वैश्विक भूख सूचकांक की जो रपट 14 अक्तूबर को जारी की गई थी, उसके मुताबिक-‘भारत में भूख
का स्तर बेहद गंभीर है।’ दुनिया के जिन 121 देशों का अध्ययन किया गया, उनमें भारत को
107वां स्थान दिया गया है। भारत का स्कोर 29.1 है, जबकि ‘शून्य’ के मायने हैं कि कोई भूखा
नहीं है। भारत अपने पड़ोसी देशों-नेपाल (81वां), बांग्लादेश (84वां), श्रीलंका और पाकिस्तान (99वां)-
से भी पीछे है। यह यथार्थ से बहुत परे की रपट है। आंका गया है कि औसतन 5 साल की उम्र से
कम करीब 20 फीसदी बच्चे दृश्यमान और जीवन के लिए खतरनाक कुपोषण के शिकार हैं। करीब
35 फीसदी बच्चे उतने लंबे नहीं हैं, जितने होने चाहिए। बेशक भूख, अपौष्टिक भोजन, एक वक़्त
का खाना और कुपोषण में बुनियादी अंतर हैं। पाकिस्तान की स्थिति को उसके देशवासी भी भारत से
बहुत बदतर मानते हैं। श्रीलंका के मौजूदा संकट में भारत ने लाखों टन खाद्यान्न उसे मुहैया कराया
था। अलबत्ता वहां के लोग दाने-दाने को मोहताज रहे हैं।
नेपाल में भी खाद्यान्न उतना उपलब्ध नहीं है, जितना भारत में प्रति व्यक्ति नसीब है। नेपाल के
संकट या त्रासद आपदाओं में भारत ही उसकी मदद करता रहा है। जिन लेखकों और संकलनकर्ताओं
ने वैश्विक भूख सूचकांक की यह रपट तैयार की है, उन्होंने भारत में भूख और कुपोषण के डाटा को
मिश्रित कर दिया है। भारत में भूख की स्थिति, उसकी 140 करोड़ से ज्यादा की आबादी की तुलना
में, लगभग नगण्य है। रपटकारों ने भारत के खाद्य सुरक्षा कानून, सार्वजनिक वितरण प्रणाली,
2020 से जारी प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना, पोषण मिशन, एनीमिया मुक्त अभियान
आदि का सम्यक अध्ययन नहीं किया है, लिहाजा उन्होंने ‘भूख का स्तर’ बेहद गंभीर आंका है। बेशक
भारत में कुपोषण आज भी गंभीर समस्या है और बच्चों के लिए उसे ‘हत्यारा’ करार दिया जाता रहा
है। भारत में 33 लाख से अधिक बच्चे कुपोषित हैं। हालांकि भारत सरकार ने 2022 तक ‘कुपोषण
मुक्त भारत’ सुनिश्चित करने के लिए ‘राष्ट्रीय पोषण मिशन’ अभियान शुरू किया था, लेकिन अभी
यह लक्ष्य बहुत दूर लगता है। वर्ष 2021 में विश्व में कुपोषितों की संख्या 76.8 करोड़ आंकी गई
थी। उनमें 22.4 करोड़ (करीब 29 फीसदी) भारतीय थे। आज इस स्थिति में बहुत सुधार है, क्योंकि
खाद्य सुरक्षा औसतन भारतीय का संवैधानिक अधिकार है। इस संदर्भ में यह भी गौरतलब है कि
भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा खाद्यान्न उत्पादक देश है। दूध, दाल, चावल, मछली, सब्जी और
गेहूं के उत्पादन में भारत दुनिया में पहले स्थान पर है। ऐसा देश ‘भूखा’ कैसे रह सकता है? फिर भी
इस देश में पर्याप्त कुपोषण है, यह चिंताजनक स्थिति है। भारत में गरीबी-रेखा के नीचे आबादी
काफी है।
भारत सरकार इस पक्ष के साथ-साथ पोषण मिशन 2.0 और मिड डे मील जैसी परियोजनाओं के
जरिए इन आंकड़ों पर चिंतन कर रही होगी, क्योंकि आज़ादी के बाद भारत बिल्कुल बदल गया है।
भारत आत्मनिर्भर हो रहा है। कृषि की औसतन विकास-दर लगातार सकारात्मक रही है। रपटकारों को
स्पष्ट करना चाहिए कि किस डाटा के आधार पर उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला है कि भारत में भूख
गंभीर स्तर की है? यदि भारत की वैश्विक छवि पर कालिख पोतने की किसी मंशा के मद्देनजर यह
काम किया गया है, तो रपट की जिम्मेदार एजेंसी को देखना चाहिए। अच्छा किया कि भारत सरकार
के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने, पिछले साल की तरह, इस बार भी रपट को खारिज कर
दिया है। पिछले साल भी हमें 102वें स्थान पर रखा गया था। भारत की राशन प्रणाली के प्रभाव को,
खासकर संकट के दौरान, नकारा नहीं जा सकता। विश्व की एजेंसियां इस प्रणाली की सराहना करती
रही हैं। भारत में बीते दो साल से ज्यादा समय से 80 करोड़ लोगों को जो मुफ्त अनाज बांटा जा
रहा है, वह भी विश्व की अद्वितीय योजना है। विद्वानजनों का मानना है कि भारत में कुपोषण
अपर्याप्त और अपौष्टिक भोजन का नतीजा है।