‘दूसरे माओ’ बनेंगे जिनपिंग?

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शी जिनपिंग क्यों बनना चाहते हैं चीन के दूसरे माओ? क्या है पीछे की वजह? -  Will Xi Jinping become second Mao of China? - World AajTak

विनीत माहेश्वरी (संवाददाता)

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को तीसरा कार्यकाल मिलना लगभग तय है, लेकिन उनकी
महत्त्वाकांक्षा ‘दूसरा माओत्से तुंग’ बनने की है। वह ताउम्र राष्ट्रपति और चीन कम्युनिस्ट पार्टी
(सीसीपी) के चेयरमैन बने रहना चाहते हैं। अभी तक सिर्फ माओ को ही यह दर्जा और सम्मान
हासिल रहा है। शी भी चीन में नया इतिहास रचना चाहते हैं। यह सब कुछ सीसीपी कांग्रेस के
अधिवेशन में ही तय होगा, जो अभी एक सप्ताह तक और चलेगा। चीन में अभी तक प्रधानमंत्री
समेत जो चेहरे सत्ता में थे, उन्होंने इस्तीफे दे दिए हैं। शी के तीसरी बार राष्ट्रपति बनने के बाद वह
अपनी कैबिनेट के चेहरे चुनने को स्वतंत्र होंगे, हालांकि उन पर सीसीपी की अंतिम मुहर अनिवार्य

होगी। दरअसल सीसीपी के संस्थापक नेता माओ ही थे। वह ही देश थे, वह ही जनता और सरकार
थे। उनके फैसले सही या गलत साबित हुए, लेकिन कोई सवाल नहीं कर सका। वह आजीवन
राष्ट्रपति और सीसीपी के चेयरमैन रहे। शी भी वैसी ही हैसियत और माओ के समान अधिकार चाहते
हैं।
वह ‘तानाशाह’ बने रहना चाहते हैं। हालांकि उनके आजीवन राष्ट्रपति बने रहने की व्यवस्था का
प्रतिरोध पार्टी में भी है और खासकर चीन की युवा आबादी भी विरोध कर रही है। नतीजतन लाखों
विद्रोहियों को जेल की सलाखों के पीछे डाल दिया गया है। कितनों की हत्या करा दी गई है, उसका
कोई ब्योरा सार्वजनिक नहीं किया गया है। चीन के भीतर का यथार्थ शेष दुनिया से छिपा ही रहता
है। सीसीपी कांग्रेस का अधिवेशन रविवार 16 अक्तूबर से शुरू हुआ, तो पहली ख़बर शी के लगातार
तीसरी बार राष्ट्रपति बनने के पुख्ता आसार की बाहर आई। यकीनन अमरीका, ऑस्टे्रलिया, जापान
से ताइवान और हांगकांग तक कई राजनेता और सरकारें चिंतित हुई होंगी। भारत का चीन के साथ
टकराव और सैन्य आमना-सामना लंबे अरसे से जारी है। भारत की परेशानी भी बढ़ी होगी। कुछ देशों
ने घबराहट और थर्राहट तक महसूस की होगी। शी के कार्यकालों के दौरान चीन ने कई स्तरों पर
अपनी ‘दादागीरी’ बढ़ाई है। चीन के साथ 14 देशों की सीमाएं लगती हैं। उनमें से 6 देशों पर चीन
का कब्जा है। यह कब्जा 41 लाख वर्ग किलोमीटर से भी ज्यादा क्षेत्र पर है। सवाल है कि चीन ने
अपने भू-क्षेत्र में 43 फीसदी से अधिक विस्तार कैसे किया? इस कब्जेबाज प्रवृत्ति के कारण ही चीन
को ‘विस्तारवादी’ करार दिया जाता है। शी जिनपिंग का तानाशाही चीन उस तिब्बत का तेजी से
‘चीनीकरण’ कर रहा है, जहां भारतीय संस्कृति और खासकर बौद्ध दर्शन का खूब प्रभाव रहा है।
करीब 12 लाख वर्ग किलोमीटर का तिब्बत 1950 के दशक से चीन के कब्जे में है।
वहां के धर्मगुरु दलाईलामा और निर्वासित सरकार भारत के हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला क्षेत्र में
सक्रिय हैं। सीसीपी कांग्रेस को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति जिनपिंग ने स्पष्ट कह दिया है कि
ताइवान और हांगकांग चीन के पुराने हिस्से हैं। उन्हें चीन में मिलाने के लिए सेना भी भेजनी पड़ी
और हमला करना पड़ा, तो चीन वह भी करेगा। विदेशी ताकतों का हस्तक्षेप बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं
किया जाएगा। ताइवान ने फिर आज़ादी, लोकतंत्र और संप्रभुता की पलटबात कही है। हांगकांग में
करीब 75 लाख की आबादी है। ब्रिटेन ने चीन से वह हिस्सा एक युद्ध के दौरान जीता था। ब्रिटेन ने
अब उसे लौटाने का निर्णय किया, तो दोनों देशों में करार हुआ। बुनियादी शर्त यह है कि 2046 तक
हांगकांग राजनीतिक तौर पर आज़ाद रहेगा। वह राष्ट्रीय सुरक्षा का कानून भी बना सकेगा। चीन ने
उस करार को अब ‘कागजी’ बना दिया है। बहरहाल चीन में शी की ही सरकार रहती है, तो विश्व के
लिए चिंताजनक होगा। वैसे अमरीका, ऑस्टे्रलिया, जापान, भारत ने मिलकर ‘क्वाड’ संगठन बनाया
था, ताकि चीन की विस्तारवादी और निरंकुश हरकतों पर निगरानी रखी जा सके।

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