



विनीत माहेश्वरी (संवाददाता)
नई दिल्ली, 17 अक्टूबर राष्ट्रीय शिक्षा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी)
के डॉक्टोरल फैलोशिप कार्यक्रम में ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020’ से जुड़े प्राथमिकताओं वाले नए समूह
जोड़े गए हैं जिसमें प्रारंभिक देखरेख एवं मूलभूत शिक्षा, स्कूल छोड़ने वालों की संख्या पर अंकुश
लगाना, व्यवसायिक कौशल, वित्तीय साक्षरता और बौद्धिक संपदा अधिकार जैसे विषय शामिल हैं।
एनसीईआरटी के एक अधिकारी ने बताया कि परिषद डॉक्टोरल फैलोशिप प्रदान करती है और इस
बार इसकी प्राथमिकताओं में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 से जुड़े नए समूह जोड़े गए हैं। इन क्षेत्रों से
संबंधित शोध प्रस्तावों को डॉक्टोरल फैलोशिप के लिए प्राथमिकता मिलेगी। उन्होंने कहा कि इसका
उद्देश्य विभिन्न विषयों से शिक्षा के क्षेत्र में युवा शोधार्थियों को अनुसंधान के लिए बेहतर अवसर
प्रदान करना तथा समकालीन संदर्भ में ज्ञान के आधार का निर्माण करना है।
फैलोशिप के दस्तावेज के अनुसार, इसके तहत प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में प्रारंभिक देखरेख एवं मूलभूत
शिक्षा, स्कूल छोड़ने वालों की संख्या पर अंकुश लगाना, सभी स्तरों पर शिक्षा की सार्वभौमिक पहुंच
सुनिश्चित करना, स्कूलों में पाठ्यचर्चा और शिक्षाशास्त्र की पहचान की गयी है।
इसमें समान एवं समावेशी शिक्षा, सभी के लिए शिक्षा अधिगम एवं स्कूल परिसर, व्यवसायिक शिक्षा
व्यवस्था, व्यवसायिक शिक्षा को मुख्यधारा की शिक्षा से जोड़ने तथा शिक्षा में सूचना और संचार
प्रौद्योगिकी का एकीकरण, वयस्क शिक्षा एवं व्यवसायिक कौशल के अलावा वित्तीय साक्षरता और
बौद्धिक संपदा अधिकार को भी शामिल किया गया है।
एनसीईआरटी डॉक्टोरल शोधार्थियों को प्रतिमाह 23 हजार रूपये (गैर नेट) और 25 हजार रूपया (नेट
अर्हता प्राप्त अभ्यर्थी) की छात्रवृत्ति प्रदान की जायेगी, जो स्थायी पीएचडी पंजीकरण और
एनसीईआरटी में चयन की तिथि से अधिकतम तीन वर्षो के लिये होगी। चुने गए शोधार्थियों को इस
अवधि के दौरान प्रतिवर्ष 10 हजार रूपये का आकस्मिक अनुदान भी प्रदान किया जाएगा।
एनसीईआरटी मासिक छात्रवृत्ति को शोधार्थियों के बचत बैंक खातों में जमा किया जायेगा। शोधार्थियों
को तिमाही आधार पर एनसीईआरटी को ‘उपस्थिति और संतोषजनक कार्य निष्पादन प्रमाणपत्र’
प्रस्तुत करना अपेक्षित होगा। आवेदक के स्नातक और स्नातकोत्तर डिग्री स्तर पर कम से कम 60
प्रतिशत अंक और उत्तम अकादमिक रिकार्ड होना चाहिए तथा उनकी उम्र 35 वर्ष से अधिक नहीं होनी
चाहिए।
इसमें नई पाठ्यचर्या और शिक्षाशास्त्र संरचना, शिक्षार्थियों का समग्र विकास, अनुभव आधारित शिक्षा
के कार्यान्वयन और सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित बच्चों की शिक्षा के विषय को लिया गया है।
इसमें महिलाएं, ट्रांसजेंडर व्यक्ति, अनुसूचित जाति/जनजाति, अल्पसंख्यक, प्रवासी, ग्रामीण, शहरी
गरीब और दिव्यांग बच्चों की शिक्षा से जुड़े आयाम भी शामिल होंगे।