वर्क-प्लेस पर बैलेंस

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वर्क-प्लेस पर बैलेंस - balance on workplace

विनीत माहेश्वरी (संवाददाता)

किसी भी ऑफिस में काम के साथ-साथ सहकर्मियों के साथ कार्य और व्यवहार में संतुलन बेहद
जरूरी होता है, अन्यथा प्रोडक्टिवटी और ऑफिस का माहौल दोनों प्रभावित होने का खतरा होता है।
वर्क-प्लेस पर कितना जरूरी है बैलेंस, बता रहे हैं हम..
एक बड़ी कंपनी के एक विभाग में चार लोगों की टीम स्वायत्तता के साथ एक खास प्रोजेक्ट पर काम
कर रही है। सभी युवा और ऊर्जावान हैं और प्रोजेक्ट का काम भी अच्छे से चल रहा है, लेकिन दो
मेंबर्स के बीच अक्सर अहं के टकराव की नौबत आ जाती है। इस तरह का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष टकराव
दोनों की इमेज को नुकसान पहुंचा रहा है। इससे खुद उनका काम तो प्रभावित हो ही रहा है, ऑफिस
का माहौल भी खराब हो रहा है। इस बात को महसूस करते हुए उन सीनियर्स ने उनको समझाने की
कोशिश की। उन दोनों एम्लॉयीज ने इससे सहमति जताते हुए आगे ऐसी नौबत न आने और मिल-
जुलकर काम करने पर सहमति भी जताई, पर काफी समय बाद भी गांठ पूरी तरह खुलती नहीं दिख
रही।
कुछ माह पहले उसी डिपार्टमेंट में एक और गंभीर संकट सामने आया था। कई सालों से काम कर रहे
मिड लेवल के एक स्टाफ और उनके सीनियर के बीच कई माह तक टकराव की स्थिति बनी रही।
स्टाफ को हमेशा यह फील होता था कि सीनियर काम की क्वालिटी और आइडिया को लेकर उसे
अक्सर टॉर्चर करते रहते हैं। दोनों के बीच लंबे समय तक ईमेल के जरिए आरोप-प्रत्यारोप का
सिलसिला भी चला। विडंबना यह कि दोनों के मेल की सीसी में एचओडी भी शामिल थे। जब हद पार
होने लगी, तो एचओडी ने वार्निग देते हुए आपसी इश्यूज को जल्द सुलझाने का निर्देश दिया। इसके
बाद कुछ दिन तक तो मामला दबा रहा, लेकिन समाप्त नहीं हुआ। अंततः कुछ महीनों बाद मिड
लेवल के स्टाफ ने एचओडी को अपना त्यागपत्र भेज दिया और एक दूसरे शहर में शिफ्ट होकर दूसरी
नौकरी ज्वाइन कर ली।
न करें अनदेखा
किसी भी कंपनी के अलग-अलग विभागों में अलग-अलग स्वभाव वाले लोग काम करते हैं। यह जरूरी
नहीं कि किसी विषय या बिंदु पर सभी एक ही तरह से सोचें। यह भी हो सकता है कि किसी एक का
सुझाव या काम करने का तरीका दूसरे को पसंद न आए। ऐसे में सहकर्मियों के बीच आपस में
वैचारिक टकराव की नौबत आ सकती है। हो सकता है कि कभी यह टकराव सतह पर आकर उग्र रूप
धारण कर ले। अगर ऐसा किसी भी ऑफिस में होता है, तो उस कंपनी के लिए अच्छा संकेत कतई
नहीं है। ऐसी किसी भी अराजक स्थिाति से बचने-बचाने और वर्क-प्लेस का माहौल खुशगवार बनाए

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रखने की जिम्मेदारी सीनियर्स, खासतौर पर विभाग के हेड की होती है। अगर सहकर्मियों के बीच
अहम के टकराव या नोंक-झोंक की किसी भी स्थिति की वे अनदेखी करते हैं या उसे जान-बूझ कर
खुद हवा देते हैं, तो यह संस्थान की प्रोडक्टिविटी के लिए खतरनाक हो सकता है। इसकी बजाय उन्हें
अपने विभाग के सदस्यों के बीच काम और सद्भाव का बेहतर माहौल बनाए रखने की हरसंभव
कोशिश करनी चाहिए। दो सहकर्मियों के बीच टकराव की स्थिति उत्पन्न होने पर उन्हें दोनों को
अलग-अलग समझाना चाहिए। यदि किसी कारण वे अपनी जिद पर अड़े रहते हैं और समझने-सुधरने
को तैयार नहीं होते, तो उनके खिलाफ कड़ा कदम उठाने से भी परहेज नहीं करना चाहिए। इससे
विभाग के बाकी मेंबर्स को स्पष्ट संदेश जाएगा।
रखें बैलेंस
कभी-कभी कोई बॉस या एचओडी ऐसे लोगों को महत्वपूर्ण पद या भूमिका सौंप देते हैं, जिनके लिए
उनमें आवश्यक स्किल नहीं होती। जाहिर है इसके पीछे उन स्टाफ का बॉस का खास होना ही होता
है। लेकिन ऐसी स्थिति में बॉस को ध्यान रखना चाहिए कि उनके इस कदम से विभाग के काबिल
कर्मचारियों के बीच असंतोष और रोष की स्थिति पैदा होती है। इसका सीधा असर विभाग और कंपनी
की प्रोडक्टिविटी पर पड़ता है, क्योंकि काबिल कर्मी अपनी उपेक्षा-अवहेलना होने पर काम के प्रति
उदासीनता का रुख अपनाने लगते हैं। इससे बचने का सबसे बेहतर तरीका यही है कि सीनियर
मैनेजर्स को रिक्रूटमेंट करते समय ही यह ध्यान रखना होगा कि निजी संबंधों के आधार पर
नियुक्तियां करने की बजाय टैलेंट और पॉजिटिव एटीट्यूड को ध्यान में रखते हुए कर्मचारियों की भर्ती
करनी चाहिए। इसके अलावा, समय-समय पर उन्हें साफ तौर पर यह मैसेज भी देते रहना चाहिए कि
पर्सनल इश्यूज के कारण कंपनी का काम कतई प्रभावित न हो।
काम को मिले क्रेडिट
कई बार कुछ सीनियर कर्मचारी आत्म-प्रशंसा के रोग से पीड़ित होकर अपने जूनियर्स को कमतर
करके आंकने लगते हैं। ऐसे लोग अक्सर दूसरों के काम का क्रेडिट लेने से भी पीछे नहीं हटते। ऐसे
में जूनियर्स के बीच निराशा फैलने लगती है। इस स्थिति को भी सही तरीके से हैंडल करने की
जिम्मेदारी एचओडी की होती है। उन्हें चाहिए कि हर स्टाफ को उसके काम का पूरा श्रेय दे। अगर
कोई बढिया काम कर रहा है, तो उसे प्रोत्साहित करें और अगर कोई काम करने की बजाय सिर्फ
बड़ी-बड़ी बातें ही करता रहता है, तो उसे उचित सबक सिखाएं। इस बात का हमेशा ध्यान रखें कि
टीम के हर मेंबर को उसकी काबिलियत के मुताबिक पर्याप्त काम मिले।
-इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि पर्सनल इश्यूज या ईगो के कारण ऑफिस का काम प्रभावित न
हो।
-अच्छे काम के लिए संबंधित कर्मचारी को उचित क्रेडिट दें और जो नियमित रूप से लापरवाही करें,
उसे यथानुसार दंडित भी करें।

-वर्क-प्लेस का माहौल खुशनुमा बनाए रखने के लिए अपने सबॉर्डिनेट्स को नियमित रूप से मोटिवेट
करते रहें।

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