झूठा सच (कहानी)

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झूठा सच उपन्यास का उद्देश्य मूल संवेदना | हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary  Web Patrika

विनीत माहेश्वरी (संवाददाता)

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जीवनलाल ने अपने दोस्त गिरीश और उस की पत्नी दीपा को उन की बेटी कंचन के लिए उपयुक्त
वर तलाशने में मदद करने हेतु अपने सहायक पंकज से मिलवाया. दोनों को सुदर्शन और विनम्र
पंकज अच्छा लगा. वह रेलवे वर्कशौप में सहायक इंजीनियर था. परिवार में सिवा मां के और कोई न
था जो एक जानेमाने ट्यूटोरियल कालेज में पढ़ाती थीं. राजनीतिशास्त्र की प्रवक्ता कंचन की शादी के
लिए पहली शर्त यही थी कि उसे नौकरी छोड़ने के लिए नहीं कहा जाएगा. स्वयं नौकरी करती सास
को बहू की नौकरी से एतराज नहीं हो सकता था. यह सब सोच कर गिरीश ने जीवनलाल से पंकज
और उस की मां को रिश्ते के लिए अपने घर लाने को कहा. अगले रविवार को जीवनलाल अपनी
पत्नी तृप्ता, दोनों बच्चों-कपिल, मोना और पंकज व उस की मां गीता के साथ गिरीश के घर पहुंच
गए.
मामा, चाचा, मौसा और फूफा वगैरा सब हैं लेकिन उत्तर प्रदेश में. हैदराबाद आने के बाद उन से
संपर्क नहीं रहा या सच कहूं तो पापा के रहते जिन रिश्तेदारों से हमारी सरकारी कोठी भरी रहती थी,
पापा के जाते ही वही रिश्तेदार हम बेसहारा मांबेटों से कन्नी काटने लगे थे, पंकज ने अन्य रिश्तेदारों
के बारे में पूछने पर बताया, इसलिए मैं मां को ले कर हैदराबाद चला आया और यहां के परिवेश में
हम एकदूसरे के साथ पूर्णतया संतुष्ट हैं.
पंकज की शादी हो जाए तो मेरा परिवार भरापूरा हो जाएगा, गीता ने जोड़ा.
आप कंचन को पसंद कर लें तो वह भी जल्दी हो जाएगा, जीवनलाल ने कहा.
हम तो आप के बताए विवरण से ही कंचन को पसंद कर के यहां आए हैं लेकिन हम भी तो कंचन
को पसंद आने चाहिए, गीता हंसी.
कंचन की पसंद पूछ कर ही आप को यहां आने की तकलीफ दी है, दीपा ने भी उसी अंदाज में कहा,
हमारी बेटी की एक ही शर्त है कि आप उसे नौकरी छोड़ने को न कहें.
नहीं कहूंगी लेकिन एक शर्त पर कि यह भी कभी मुझे नौकरी छोड़ने को नहीं कहेगी.
तो फिर तो बात पक्की, मुंह मीठा करवाओ दीपा बहन. तृप्ता के कहने पर दीपा मिठाई ले आई.
चायनाश्ते के बाद जीवनलाल ने कहा कि अब सगाईशादी की तारीखें भी तय कर लो.

वह तो आप कब छुट्टी देंगे, उस पर निर्भर करता है, सर, पंकज बोला, इस पर भी कि वे स्वयं कब
छुट्टी लेते हैं, क्योंकि सबकुछ उन्हें ही तो करना है. गीता गिरीश और दीपा की ओर मुड़ी, जिस तरह
से उन्होंने यह शादी की बात चलाई है उसी तरह से तृप्ता भाभी और जीवन भैया, पंकज के
अभिभावक बन कर बहू के गृहप्रवेश तक की सभी रस्में निबाहेंगे. आप अब क्या करना है या कैसे
करना है, उन से ही पूछिएगा. रहा लेनदेन का सवाल तो मुझे बस आप की बेटी चाहिए और अब इस
विषय में मुझ से कोई कुछ नहीं पूछेगा. गीता आराम से सोफे से पीठ लगा कर बैठ गई.
पूछेंगे कैसे नहीं गीताजी, शादी में आने वाले रिश्तेदारों के बारे में तो बताना ही होगा, दीपा ने
प्रतिवाद किया, शादी में रौनक तो उन लोगों के आने से ही आएगी.
रौनक की फिक्र मत करिए, पंकज बोला, मेरे बहुत दोस्त और सहकर्मी हैं, ज्यादा हंगामा चाहिए तो
मम्मी के छात्रछात्राएं हैं.
मेरे छात्रछात्राओं की क्या जरूरत है? गीता हंसी, कंचन के ननददेवर हैं न मोना और कपिल, अपने
दोस्त सहेलियों के साथ धूम मचाने को. शादी बहुत धूमधाम और हंसीखुशी से हो गई. कंचन पंकज
के साथ बेहद खुश थी. गीता से भी उसे कोई शिकायत नहीं थी. कोचिंग कक्षाएं तो सुबहशाम ही
लगती हैं. सो, गीता सुबह से ही जाती थी और कंचन के कालेज जाने के बाद लौटती थी. दिनभर घर
में रहती थी. सो, नौकरानी से सब काम भी करवा लेती थी. कंचन को घर लौटने पर गरम
चायनाश्ता मिल जाता था. कुछ देर गपशप के बाद गीता फिर कालेज चली जाती थी और कंचन पूरी
शाम पंकज के साथ जैसे चाहे बिता सकती थी. संक्षेप में, सास के संरक्षण का सुख बगैर किसी
हस्तक्षेप या जिम्मेदारी के.
एक साल पलक झपकते गुजर गया. मां-बेटे में रात को ही बात होती थी लेकिन कुछ रोज से कंचन
को लग रहा था कि गीता कुछ असहज है. वह पंकज से अकेले में बात करने की कोशिश में रहती
थी. कंचन के आते ही, बड़ी सफाई से बात बदल देती थी. कंचन ने यह बात अपनी मां दीपा को
बताई. पंकज के उस बेचारी का अपना सगा कोई और तो है नहीं जिस से कोई निजी दुखसुख या
पुरानी यादें बांटे. तू खुद ही उन्हें अकेले छोड़ा कर, और पंकज से भी कभी मत पूछना कि मां उस से
क्या कह रही थीं, दीपा ने समझाया.
एक रात सब ने खाना खत्म ही किया था कि बिजली चली गई. पंकज और गीता बाहर बरामदे में
बैठ गए और कंचन मोमबत्ती की रोशनी में मेज साफ कर के रसोई समेटने लगी. काम खत्म कर के
उस ने बेखयाली में मोमबत्ती बुझा दी. स्ट्रीट लाइट की रोशनी में बरामदे का रास्ता नजर आ रहा था.
वह धीरे से उसी के सहारे आगे बढ़ गई. तभी उसे बरामदे से मांबेटे की वार्तालाप सुनाई दी. पंकज
कह रहा था, कितनी भी सिफारिश लगवा लूं रेलवे से तो भी 3 बैडरूम वाला घर नहीं मिल सकता,

मां. कई हजार रुपया किराया दे कर बाहर ही घर लेना पड़ेगा. सोच रहा हूं इतना किराया देने से
बेहतर है अपना फ्लैट ही खरीद लें. गाड़ी के बजाय मकान के लिए ऋण ले लेता हूं. उस सब में
समय लगेगा पंकज, हमें तो 3 कमरों का घर जल्दी से जल्दी चाहिए, गीता के स्वर में चिंता थी,
किराए की फिक्र मत कर, जितना भी होगा मैं देने को तैयार हूं. तू बस इतना देख कि गैस्टरूम
तुम्हारे व मेरे कमरे से अलग हो. कंचन चैंक पड़ी. रेलवे की ओर से उन्हें 2 बैडरूम का कौटेजनुमा
घर मिला हुआ था. सामने छोटा सा लौन था, पीछे किचन गार्डन और ऊपर खुली छत भी थी.
नौकरानी भी पास के बंगले के आउट हाउस में रहती थी. सो, देरसवेर जब बुलाओ, वह आ जाती थी.
ये सब छोड़ कर किराए के आधुनिक दड़बेनुमा फ्लैट में जाने की क्या जरूरत आ पड़ी थी? अपने 3
सदस्यों के परिवार के लिए तो यह घर काफी है. तो फिर क्या कोई मेहमान आ रहा है? मगर कौन?
हड़बड़ाओ मत, मां. बराबर वाले घर में विधुर चैधरीजी बेटे के साथ रहते हैं और बेटा अगले महीने
विदेश जा रहा है. वे खुशी से हमें एक कमरा दे देंगे. आप अब इस बारे में न तो फिक्र करो और न
ही बात, पंकज ने कहा और पुकारा, तुम अंधेरे और गरमी में अंदर क्या कर रही हो, कंचन?
हां, बेटी, यहां आ कर बैठ. बड़ी अच्छी हवा चल रही है, गीता भी बोली. इस का मतलब था कि मां
ने भी बात खत्म कर दी है. अब पूछने पर भी कोई कुछ नहीं बताएगा और वैसे भी पंकज ने
फिलहाल तो मकान बदलना टाल ही दिया था. जयपुर में होने वाली अंतर्राज्यीय बैडमिंटन प्रतियोगिता
में कंचन के कालेज की टीम चुनी गई थी. अपने समय में कंचन भी राज्य स्तर की खिलाड़ी रह
चुकी थी और अभी भी छात्राओं के साथ अकसर बैडमिंटन खेलती थी. पिं्रसिपल और छात्राएं चाहती
थीं कि कंचन भी टीम के साथ जयपुर जाए. कंचन ने पंकज और गीता से पूछा. दोनों ने सहर्ष
अनुमति दे दी. लौटने वाले रोज उन सब की ट्रेन रात की थी. लड़कियां जयपुर घूमना और खरीदारी
करना चाहती थीं. आयोजकों ने उन के लिए एक प्राइवेट टैक्सी की व्यवस्था करवा दी. ड्राइवर
रामसेवक अधेड़ उम्र का संभ्रांत व्यक्ति था, उस ने बड़ी अच्छी तरह से लड़कियों को दर्शनीय स्थल
दिखाए. दिनभर घूमने के बाद कंचन थक गई थी. सो, मिर्जा इस्माइल रोड पहुंचने पर उस ने कहा
कि वह शौपिंग के बजाय गाड़ी में आराम करना चाहेगी.
इतनी गरमी में? हम आप को अकेले नहीं छोड़ेंगे, मैडम, लड़कियों ने कहा.
मैं हूं न मैडम के पास, गाड़ी में एसी भी चलता रहेगा, रामसेवक ने कहा. आप लोग इतमीनान से
जा कर खरीदारी कर लो.
धन्यवाद, भैयाजी. नाम और बोलचाल से तो आप उत्तर भारत के लगते हैं, यहां कैसे आ गए? कंचन
ने पूछा. रामसेवक ने आह भरी, अब क्या बताएं मैडम. हालात ही कुछ ऐसे हो गए कि रोटीरोजी के
लिए घर से दूर आना पड़ गया.

क्यों, ऐसा क्या हो गया?
अपने घर में सभी पढ़ेलिखे और सरकारी नौकरी में हैं. हमें न पढ़ना पसंद था न नौकरी करना, गाड़ी
चलाने का बहुत शौक था. सो, बाबूजी ने हमें टैक्सी दिलवा दी. हम भी सब के मुकाबले में कमा खा
रहे थे कि हमारे बड़के भैया ने गड़बड़ कर दी. वे थे तो सरकारी अफसर मगर शबाब और शराब के
शौकीन. एक रोज नशे की हालत में एक मातहत की बीवी पर हाथ डाल दिया और पकड़े गए.
जीजाजी के रसूख से किसी तरह छूट गए. भाभी के चिरौरी करने और बेटे के भविष्य का हवाला देने
से कुछ साल तो संभल कर रहे लेकिन बेटे को रेलवे में नौकरी मिलते ही फिर पुराने रंगढंग चालू कर
दिए और एक नेता की चहेती के साथ मुंह काला करते हुए पकड़े गए. नेता की चहेती थी, सो मामला
तूल पकड़ गया और 7 साल की जेल हो गई.
परिवार की इतनी बदनामी हुई कि लोग मेरी टैक्सी में बैठने से भी डरने लगे. टैक्सी का धंधा तो
शहर के होटल और अन्य संस्थानों से जुड़ने पर ही चलता है. सो उन के नकारे जाने पर यहां आ
गया. मुझे ही नहीं, भाभी और उन के बेटे को भी अपना शहर छोड़ कर दूर जाना पड़ा.
कंचन की दिलचस्पी थोड़ी बढ़ी, दूर कहां?
हैदराबाद. वहां रेलवे में इंजीनियर है हमारा भतीजा लेकिन हमारे ताल्लुकात नहीं हैं अब उन से, उस
ने मायूसी से कहा.
ऐसा क्यों?
परिवार वाले उन से कन्नी काटने लगे थे. मांबेटे खुद्दार थे. सो, सब से दूर चले गए. अब तो भैया
की सजा की अवधि भी खत्म होने वाली है, तब शायद वे लोग झांसी आएं. तभी लड़कियां शौपिंग
कर के आ गईं और ड्राइवर चुप हो गया. कंचन ने जितना भी सुना था उस से साफ जाहिर था कि
वह किस की बात कर रहा था और क्यों गीता बड़ा मकान लेने के लिए व्याकुल थी. व्यभिचारी पति
को न नकारना चाहती थी और न ही उस के साथ रहना. पंकज सदा की तरह मां की भावनाओं का
ध्यान रख रहा था लेकिन कंचन की भावनाओं का क्या? परिवार का यह कलुषित सत्य तो उन्हें
शादी से पहले ही बताना चाहिए था. शादी के बाद भी यह कहने वाला पंकज कि पतिपत्नी तो
एकदूसरे के लिए खुली किताब होते हैं, कितना बड़ा झूठा था. झूठ की नींव पर टिकी शादी कितने
रोज टिक सकेगी? मांबेटे के व्यवहार से तो लग रहा था कि वे उस बदचलन, सजायाफ्ता व्यक्ति को
स्वीकार करने वाले थे. भले ही दूर रखें, देरसवेर तो उस से भी वास्ता पड़ेगा ही. फिर उस की अस्मत
का क्या होगा? कंचन सोच कर ही सिहर उठी. सिरदर्द के बहाने वह पूरे रास्ते चुप रही और फिर
अपने कमरे में जा कर फूटफूट कर रो पड़ी. उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? खैर,
किसी तरह लंबा सफर तय कर के घर पहुंची.

शुक्र है तुम आ गईं, जिया ही नहीं जा रहा था तुम्हारे बगैर, पंकज ने विह्वल स्वर में कहा.
अब तो मेरे बगैर ही जीना पड़ेगा क्योंकि मैं तुम्हें हमेशा के लिए छोड़ कर जा रही हूं, कंचन ने
अलमारी में से अपने कपड़े निकालते हुए कहा.
मगर क्यों? जयपुर में पुराना प्रेमी मिल गया क्या? पंकज ने चुहल की.
प्रेमी तो नहीं, हां चचिया ससुर रामसेवक जरूर मिले थे. मैं ने तो तुम्हें अपने जीवन के मूक प्रेम के
बारे में भी बता दिया था जिस का ताना तुम ने मुझे अभी दिया है लेकिन तुम ने और मां ने अपने
परिवार के उस घिनौने सच को छिपाया हुआ है जिस के लिए अपनों से मुंह छिपा कर तुम यहां रह
रहे हो. झूठ की बुनियाद पर टिकी शादी का कोई भविष्य नहीं होता पंकज और इस से पहले कि वह
भरभरा कर गिरे, मैं स्वयं ही यह रिश्ता खत्म कर देती हूं. तुरंत तलाक लेने के लिए सचाई छिपाने
का आरोप काफी है. वैसे तो तुम्हें सजा भी दिलवा सकती हूं लेकिन अगर चुपचाप तलाक दे दोगे तो
ऐसा कुछ नहीं करूंगी, कंचन ने सूटकेस में सामान भरते हुए कहा.
पंकज हतप्रभ हो गया था, फिर भी संयत स्वर में बोला, तुम ने जो सुना वह सच है लेकिन जो झूठ
की बुनियाद वाली बात कही है वह सही नहीं है. इस शहर में किसी ने कभी भी हम से पापा के बारे
में नहीं पूछा तो हम स्वयं आगे बढ़ कर क्यों बताते? तुम ने देखा होगा शादी के मंडप में दिवंगत
मातापिता की तसवीर रखी जाती है. मगर हम ने तो नहीं रखी, न किसी ने रखने को कहा. तुम ने
भी तो कभी नहीं पूछा कि घर में पापा की कोई तसवीर क्यों नहीं है या कभी उन के बारे में कोई
और बात पूछी हो? मैं ने और मां ने यह फैसला किया था कि हम स्वयं पापा के बारे में किसी को
कुछ नहीं बताएंगे मगर पूछने पर कुछ छिपाएंगे भी नहीं. अब किसी ने कुछ नहीं पूछा तो इस में
हमारा क्या कसूर है? एक बात और, मां विधवा की तरह नहीं रहतीं. सादे मगर रंगीन कपड़े पहनती
हैं और थोड़ेबहुत जेवर भी.
लेकिन सिंदूर या बिंदी तो नहीं लगातीं? कंचन को पूछने के लिए यही मिला.
तुम लगाती हो, तुम्हारी मम्मी या तृप्ता आंटी? पंकज ने पूछा, कितनी सुहागिनें मांग भरती हैं या
पांव में बिछिया पहनती हैं आजकल? हम ने सच को छिपाने का कोई प्रयास नहीं किया है कंचन?
अच्छा? और यह जो मुझे बगैर बताए लोन ले कर बड़ा मकान बनाने की योजना बना रहे हो, उसे
क्या कहोगे? कंचन ने व्यंग्य से पूछा. योजना ही है, लिया तो नहीं? पापा के यहां आने का पक्का
होने पर तुम्हें सब बताने की सोची थी क्योंकि पापा यहां आएंगे, यह अभी पक्का नहीं है. वे बहुत

बदल चुके हैं और उन्हें संसार से विरक्ति हो गई है. केरल से कोई सज्जन जेल में सद्वचन देने आते
हैं और पापा अपना शेष जीवन उन के त्रिचूर आश्रम में बिताना चाहते हैं…
तुम्हें कैसे मालूम? कंचन ने उस की बात काटी.
क्योंकि मैं बगैर मां को बताए सरकारी काम का बहाना बना कर पापा से मिलने झांसी जेल में जाता
रहता हूं. अदालत की पेशी के दौरान मैं ने पापा की आंखों में पश्चात्ताप देखा था, सो मैं ने उन्हें माफ
कर दिया लेकिन मां पर मैं ने अपनी मंशा नहीं थोपी और न ही अभी से उन्हें यह बताना चाहता हूं
कि पापा यहां नहीं रहेंगे. रिहाई के रोज मां मेरे साथ उन्हें जेल से लेने जाएंगी, तब कह नहीं सकता
दोनों की क्या प्रतिक्रिया होगी. पापा को घर लाना चाहेंगी या स्वयं उन के साथ त्रिचूर जाना या पापा
को अपने रास्ते जाने देना और स्वयं जिस रास्ते पर चल रही हैं उसी पर चलते रहना. मेरा यह
मानना है कंचन, कि जिस को जो उचित लगता है वही करना उस का जन्मसिद्ध अधिकार है और
उस में टांग अड़ाने का मुझे कोई हक नहीं है.
यानी तुम्हें छोड़ने का फैसला मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है? कंचन ने शरारत से पूछा.
बशर्ते कि तुम यह सिद्ध कर सको कि तुम से झूठ बोल कर तुम्हें धोखा दिया गया या नुकसान
पहुंचाया गया.
वह तो सिद्ध नहीं कर सकती, कंचन ने कपड़े अलमारी में वापस रखते हुए कहा, क्योंकि झूठ तो
तुम ने कभी बोला नहीं. बगैर कभी कुछ पूछे मैं ही अपने सोचे झूठ को सच समझती रही.

कविता
प्रिय जैसा चाहा
-आलोक यादव-
प्रिय जैसा चाहा था मैं ने
दिल के पन्नों पर उकेर गया
दृष्टि वही, नयन वही
देह वही, छुअन वही

भवें वही, कमान वही
होंठ व मुसकान वही
मेरी हर कल्पना चितेरा
वो सच तुझ में कर गया
हृदय वही, विचार वही
मन का विस्तार वही
रुचियां, संस्कार वही
कविता संसार वही
कैसी यह कारीगरी
मैं अचरज से भर गया
हम न कभी जान सके
क्यों अपने कदम रुके
फिर क्यों तुम दूर चले
हम पर कब भेद खुले
कौन नयन अपलक
मेरी सूनी राहों पर धर गया।।

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