



विनीत माहेश्वरी (संवाददाता)
आज अचानक देश की दिशा क्यों बदली जा रही है? उसे धर्मान्धता के दावानल में क्यों झौंका जा
रहा है? आज धार्मिक संत, मौलवी, सरदार इतने वाणीवीर क्यों बनते जा रहे है? आज देश में
हिन्दुओं और मुसलमानों की जनसंख्या का आंकलन क्यों किया जा रहा है? आखिर इन सबका
मकसद क्या है? क्या ये सब देश को गौरांवित करने वाली प्रक्रियाएं है, या इन कदमों से देश की
साख गिरेगी? क्या कभी इन प्रश्नों पर किसी भी देशभक्त ने चिंतन किया? आज एक ओर जहां
वरिष्ठ हिन्दू संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख डॉ. भागवत मुस्लिमों की संख्या बढ़ने से
चिंतित है तो मुसलमान नेता असदुद्दिन ओवैसी उनके कथन का विरोध कर रहे है। पर यहां सबसे
बड़ा सवाल यही है कि आखिर यह चिंता व सफाई किस लिए? हिन्दुओं की जनसंख्या की तुलना
मुस्लिमों की संख्या से क्यों की जा रही है, आखिर इसके पीछे उद्धेश्य क्या है? क्या ये धर्मप्रमुख
भविष्य में दोनों सम्प्रदायों के बीच मुकाबले की आशंका पाले हुए है?
इससे भी बड़ा दुखद तो यह है कि धर्मप्रमुख तो सिर्फ संख्या तक ही सीमित है, किंतु हमारे कथित
धार्मिक संत तो एक-दूसरे सम्प्रदाय के समूल नष्ट कर देने का आव्हान तक कर रहे है और हर हिन्दू
से अपने साथ पिस्तौल रखने की सलाह दे रहे है, देश की राजधानी दिल्ली में तो रविवार को कुछ
इसी तरह के सम्मेलन में विचार सुने गए। जब धार्मिक संत ही अपने अनुयायियों से इस तरह की
सार्वजनिक अपील करते नजर आएगें तो फिर इस देश का भविष्य क्या होगा? इस धर्मान्धता के
महारोग की शुरूआत कोई नई नहीं है, कुछ सालों पहले एक विशेष वर्ग द्वारा हिन्दुस्तान का नाम
बदल देने की घोषणा की थी जिसके लिए पच्चीस साल का वक्त भी मांगा गया था।
फिर यहां यह भी उल्लेख जरूरी है कि अब यह महारोग सिर्फ हमारे हिन्दुस्तान तक ही सीमित नहीं
है, यह विदेशों में भी फैलता जा रहा है, हाल ही में अमेरिका एजेंसी ‘‘कांटेजियन रिसर्च इन्स्टीट्यूट’’
ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि दुनिया में हिन्दुओं के प्रति हिंसा और नफरत एक हजार फीसदी
बढ़ी है, जिसमें सर्वोच्च शिखर पर अमेरिका है। अमेरिका में बारह हजार से भी अधिक नफरत फैलाने
वाले कमेंट्स मिले है इस अमेरिकन एजेंसी ने अपनी इस रिपोर्ट में यह भी कहा है कि हिन्दुओं के
खिलाफ नफरत फैलाने में सबसे अहम् और प्रमुख भूमिका पाकिस्तान की है, उल्लेखनीय है कि
अमेरिका एजेंसी की इस रिपोर्ट में 2017 में दिल्ली में हुई साम्प्रदायिक हिंसा का भी जिक्र किया है।
आज जहां राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख देश के जनसंख्या असंतुलन को देश के लिए विभाजक
बता रहे है, वहीं मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने देश में तत्काल प्रभाव से समान नागरिक संहिता व
जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू करने की मांग की है। एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार आज भारत में
हिन्दुओं का औसत 79.80 फीसदी है, जबकि यह आजादी के वक्त 84.1 था। जबकि मुसलमानों का
जो आजादी के समय जनसंख्या औसत मात्र 9.8 फीसदी था, वह आज बढ़कर 14.23 फीसदी हो
गया है, जबकि शेष धर्मावालम्बियों का कुल औसत नौ फीसदी से कम है, अर्थात् पिछले 75 सालों
में पांच फीसदी हिन्दू घटा है तो पांच फीसदी ही मुस्ल्मि बढ़ा है। शायद इस पांच फीसदी मुस्लिम
वृद्धि के कारण ही संघ प्रमुख ने चिंता व्यक्त की है, जबकि 75 सालों में समुदाय विशेष की संख्या
में यह वृद्धि कोई खास उल्लेखनीय नही कही जा सकती।
फिर भी यह जरूरी है कि सभी वर्गों के लिए समान जनसंख्या नीति बहुत जरूरी है, वरना ऐसा नहीं
किया गया तो समस्याऐं बढ़ती ही जाएगी। अब यदि संघ प्रमुख की इस चिंता पर गंभीर चिंतन किया
जाए तो यह स्पष्ट उभरकर आता है कि उनकी यह चिंता बेवजह नहीं है, इसके पीछे संयुक्त राष्ट्र
संघ में प्रस्तुत वह ताजा रिपोर्ट भी है, जिसमें कहा गया है कि अगले वर्ष अर्थात् 2023 के अंत तक
जनसंख्या के मामले में भारत चीन से भी आगे निकल जाएगा और चूंकि बढ़ती जनसंख्या का बोझ
सबसे अधिक भूमिगत जल क्षमता पर पड़ता है, इसीलिए भारत में दिनोंदिन जल समस्या बढ़ती जा
रही है और अन्य संसाधन भी इसी से प्रभावित हो रहे है।
श्री भागवत का यह भी कहना है कि अगर बढ़ती जनसंख्या पर शीघ्र काबू नहीं पाया गया तो दो
दशकों में ही दुनिया में चार में सक एक बच्चा गंभीर जल संकट के सामने को लेकर पैदा होगा और
भारत की स्थिति और अधिक खराब हो जाएगी। इन्हीं सब डरावनी चिंताओं के साथ आज भारत
सरकार से यथाशीघ्र कड़ा जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू करने की मांग की जा रही है। इस प्रकार
कुल मिलाकर अब अकेले भारत की नहीं बल्कि यह जनसंख्या वृद्धि समस्या अन्तर्राष्ट्रीय समस्या
बन चुकी है और अब पूरे विश्व को इस भावी समस्या से बखूबी निपटने के लिए तैयार होना पड़ेगा,
भारत इसका नेतृत्व करें तो यह बेहतर होगा, क्योंकि भारत ही ‘विश्वगुरू’ पद पर अभी भी
विराजमान है।