



विनीत माहेश्वरी (संवाददाता)
दिसंबर 1, 2022 को भारत पर जी-20 देशों की अध्यक्षता का दायित्व आ जाएगा और यह 30
नवंबर 2023 तक रहेगा। गौरतलब है कि जी-20 (यानी ग्रुप ऑफ ट्वंटी), दुनिया के बड़े विकसित
और विकासशील देशों का समूह है, जिसमें वर्तमान में 19 देश (अर्जेंटीना, आस्ट्रेलिया, ब्राजील,
कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, कोरिया गणतंत्र, मैक्सिको, रूस,
साऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, तुर्की, इंग्लैंड, संयुक्त राज्य अमरीका) शामिल हैं। इन देशों में दुनिया
की दो तिहाई जनसंख्या तो रहती ही है, दुनिया की 85 प्रतिशत जीडीपी भी इन देशों से आती है।
इन देशों की अंतरराष्ट्रीय व्यापार में 75 प्रतिशत हिस्सेदारी है। दुनिया के इतने महत्वपूर्ण देशों के
समूह की अध्यक्षता के चलते लगभग 200 छोटी-बड़ी बैठकों का आयोजन भारत में होना है। कहा जा
रहा है कि इससे पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। लेकिन मात्र पर्यटन ही नहीं, जी-20 देशों के समूह की
अध्यक्षता भारत के लिए एक सुअवसर है कि दुनिया के समक्ष चुनौतियों के संदर्भ में उनके समुचित
समाधान प्राप्त करने हेतु प्रयास कर सके। पिछले कुछ समय से भारत ही नहीं पूरी दुनिया कुछ
आर्थिक चुनौतियों से गुजर रही है।
एक ओर वैश्विक मंदी, बढ़ती कीमतों और खाद्य पदार्थों की कमी से तो विश्व के कई देश जूझ ही
रहे हैं, साथ ही साथ नई प्रौद्योगिकी के आगाज से जहां एक ओर हमारा जीवन सुविधापूर्ण हो रहा
है, उसके कारण दुनिया भर की सरकारों के समक्ष कई चुनौतियां भी आ रही हैं। नई प्रौद्योगिकी,
खासतौर पर इंटरनेट के कारण दुनिया के देशों के बीच की दूरियां अब समाप्त हो रही हैं। पुराने
उद्योग-धंधे शिथिल हो रहे हैं और उनके स्थान पर नए व्यवसाय जन्म ले रहे हैं। निवेश प्राप्त करने
की होड़ में प्रतिस्पर्धात्मक कराधान की ओर दुनिया बढ़ती जा रही है। यानी हर देश कारपोरेट टैक्स
की दर घटाकर यह दिखाने की कोशिश कर रहा है कि वह निवेश के लिए सुविधाएं दे रहा है। लेकिन
इसके साथ ही साथ सभी मुल्कों में कराधान भी घटता जा रहा है, जिसके कारण सरकारों के लिए
पर्याप्त राजस्व नहीं मिल रहा है। इसके अलावा भी दुनिया भर की सरकारें अपने मुल्कों में कर
राजस्व वसूलने में तो भारी कठिनाई महसूस कर रही हैं। टेक कंपनियां ही नहीं बल्कि दूसरी
अंतरराष्ट्रीय कंपनियां भी अपने वैश्विक व्यवसाय को चलाते हुए टैक्स भुगतान से अपने को बचा रही
हैं। न तो वे अपने मूल देश में कर देना चाहती हैं और न ही उन देशों में जहां वो व्यवसाय कर रही
हैं। इसके साथ ही साथ नई प्रौद्योगिकी की क्रिप्टो कैरेंसियों के चलन से टैक्स बचाते हुए और
स्थापित सरकारी करेंसियों को धत्ता दिखाते हुए निजी आभासी मुद्राएं चलन में आ गई हैं। चूंकि ये
मुद्राएं इंटरनेट के माध्यम से खरीदी-बेची जाती हैं, इनकी वैश्विक आवाजाही में कोई बाधा नहीं है।
इन पर कर वसूलना भी एक चुनौती बनी हुई है। भारत की वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने भी इस
बात को रेखांकित किया है कि बिना वैश्विक सहमति एवं सहकार के इन करेंसियों का नियमन संभव
नहीं है।
वैश्विक न्यूनतम कर : अधिकाधिक निवेश आकर्षित करने की होड़ में अधिकांश देश कारपोरेट टैक्स
की दर घटाने में प्रतिस्पद्र्धा में लगे हैं। जहां आज भारत में व्यैक्तिक कर की सीमांत दर 33
प्रतिशत और कई मामलों में उससे भी अधिक है, कारपोरेट टैक्स की दर को घटाकर पहले 25
प्रतिशत और व्यवसायों के लिए मात्र 15 प्रतिशत ही कर दिया गया। उद्देश्य बताया गया कि इससे
नए निवेश आकृष्ट होंगे। कमोबेश यही हाल कई अन्य देशों का भी है। यानी कर घटाने की
प्रतिस्पद्र्धा हर देश में शुरू हो चुकी है। इसके अतिरिक्त कई टैक्स हैवन अलग प्रकार से करों से
बचने का रास्ता देते हैं। विभिन्न देशों द्वारा दी जा रही कर रियायतों के चलते हॉट मनी और
अलग-अलग देशों के अमीर लोगों का भी आकर्षण वहां होता है। भारत समेत कई देशों के अत्यधिक
अमीर लोग दुनिया के दूसरे मुल्कों में जा रहे हैं। इसके कारण निवेश तो कम आकृष्ट हो रहा है,
लेकिन सरकारों का राजस्व जरूर घट रहा है। अमरीकी राष्ट्रपति जो बाईडन का कहना है कि एक से
अधिक देशों में काम करने वाली कंपनियों पर न्यूनतम 15 प्रतिशत कर लगाने की अनिवार्यता होनी
चाहिए। इस संबंध में 136 देशों में आम सहमति भी बनी है। यदि सभी देशों में न्यूनतम कर के
बारे में सहमति बनती है तो इसका लाभ सभी देशों को हो सकता है, जिससे कर राजस्व बढ़ सकता
है और सरकारों के पास धनाभाव का खतरा भी टल सकता है। इस काम के लिए भारत जी-20 की
अध्यक्षता के अवसर का उपयोग करते हुए इस संबंध में वैश्विक सहमति की ओर आगे बढ़ सकता
है।
क्रिप्टो पर नियमन : आज कई आभासी मुद्राओं का चलन बढ़ता जा रहा है। बिटकॉन और लिथेरियम
समेत कई अन्य क्रिप्टो करेंसियों (यानी आभासी मुद्राएं) चलन में हैं और कुछ सालों में उनकी कीमतें
हज़ारों गुणा बढ़ चुकी हैं। स्वाभाविक तौर पर उनके मूल्य में भारी उतार-चढ़ाव के कारण वे लोगों
(खास तौर पर युवाओं) में भारी आकर्षण का कारण बन रही हैं, क्योंकि उसमें सट्टेबाजी की
संभावनाएं कही ज्यादा हैं। लोगों की गाढ़ी कमाई उसमें खप रही है। किसी एक देश की सरकार द्वारा
आभासी मुद्राओं के विनियमन की संभावनाएं सीमित हैं। कई बार आतंकवादियों, नशे के व्यापारियों
समेत कई प्रकार के अपराधी इन आभासी मुद्राओं में व्यवहार करते हुए सामान्य बैंकिंग चैनलों को
धत्ता दिखा रहे हैं। ये आभासी मुद्राएं सभी सरकारों के लिए चिंता का सबब बन रही हैं। हाल ही में
भारत की वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि क्रिप्टो करेंसियों पर प्रभावी रोक के लिए
अंतरराष्ट्रीय सहयोग की जरूरत है। जबकि भारतीय रिजर्व बैंक यह मानता है कि क्रिप्टो करेंसियों के
कारण देश की राजकोषीय एवं मौद्रिक स्थिरता खतरे में पड़ सकती है। इस बात से सहमति रखते हुए
भी, वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण का यह मानना है कि इसके लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इनके
जोखिमों, लाभों के आकलन के साथ-साथ साझी कराधान प्रणाली और मानक बनाए जाने की जरूरत
होगी। अन्य देशों की तुलना में भारत क्रिप्टो करेंसियों के संदर्भ में अधिक प्रभावित देश है और साथ
ही साथ भारत ने क्रिप्टो करेंसियों के लाभों पर कर लगाकर एक पहल भी की और क्रिप्टो करेंसियों
की चुनौतियों पर समझ भी विकसित की है।
टेक और ई-कामर्स बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर टैक्स : देश और अर्थव्यवस्था के संचालन के लिए
सरकारों को नित नए आय के स्रोत खोजने पड़ते हैं। आम तौर पर सरकारें उभरते हुए क्षेत्रों में ग्रोथ
के माध्यम से कर वसूलने का काम करती हैं। लेकिन वर्तमान समय की विडंबना यह है कि जिन
क्षेत्रों में विकास हो रहा है, उन क्षेत्रों की कंपनियां अपने अंतरराष्ट्रीय बिजनेस की आड़ में टैक्स देने
से बच रही हैं। हालांकि विभिन्न बहुराष्ट्रीय कंपनियां पूर्व में भी यह प्रयास करती थीं। लेकिन वर्तमान
टेक ई-कामर्स और सोशल मीडिया कंपनियां विभिन्न हथकंडे अपनाकर टैक्स देने से बच रही हैं।
भारत में सोशल मीडिया कंपनियों पर न्यूनतम वैकल्पिक कर (ईक्वलाईजेशन लेवी) लगाने की ओर
सरकार बढ़ी है। गूगल, फेसबुक सरीखी कंपनियां अपनी विज्ञापनों की आय पर कर देने से बच रही हैं
और ई-कामर्स कंपनियां अपने व्यवसाय और पूंजीगत मूल्यन को बढ़ाने के लिए नकदी जलाने की
रणनीति के चलते सामान्य व्यावसायिक घाटा दिखाकर टैक्स देने से बच रही हैं। इन कंपनियों पर
अलग ढंग से कर वसूलने की जरूरत है। खास बात यह है कि ये कंपनियां अपने मूल देशों में भी
करों से बचने का प्रयास कर रही हैं। जी-20 देशों के बीच इस संबंध में चर्चा के माध्यम से दुनिया
के देशों की राजकोष की समस्या के समाधान की जरूरत होगी।
(लेखक कालेज के एसोशिएट प्रोफेसर है)