



विनीत माहेश्वरी (संवाददाता)
हमारा संविधान धार्मिक आस्था और पूजा-पद्धति का अधिकार देता है। उसमें कोई हस्तक्षेप नहीं
किया जा सकता, लेकिन कोई एक निश्चित धर्म और उसके देवी-देवताओं को खारिज करने और
उनकी पूजा नहीं करने की सार्वजनिक शपथ दिलाए, तो वह घोर आपत्तिजनक और असंवैधानिक है।
दिल्ली अद्र्धराज्य के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की कैबिनेट के समाज कल्याण मंत्री राजेंद्र पाल
गौतम ने ऐसा ही किया है। केजरीवाल तो चुनाव-दर-चुनाव हिंदू-भक्त बनते दिखते हैं। दिल्ली में
विधानसभा चुनाव था, तो वह कट्टर ‘हनुमान-भक्त’ बन गए थे। बाकायदा हनुमान मंदिर जाकर
‘चालीसा’ का पाठ किया और साथ में चैनल वालों को ले जाना नहीं भूले। गुजरात में ‘सोमनाथ मंदिर’
जाकर पूजा की और कहा कि यहां तो बहुत शांति मिलती है। उप्र चुनाव के दौरान वह अयोध्या के
राम मंदिर जाकर प्रभु के दर्शन करना नहीं भूले। गुजरात में उन्हें ‘मां दुर्गा’ भी याद आईं, क्योंकि
नवरात्र के दिन थे। जब गुजरात में केजरीवाल के, मुस्लिम टोपी पहने, पोस्टर लगा दिए गए, तो
उन्होंने जनसभाओं में न केवल ‘जय सिया राम’ के नारे लगवाने शुरू कर दिए, बल्कि अयोध्या प्रभु
राम के दर्शन करने वाले भक्तों की यात्रा, खाना-पीना, आवास आदि को प्रायोजित करने की भी
घोषणा की। बशर्ते गुजरात में उनकी आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार बनवा दी जाए। यह चुनावी
चुग्गे से ज्यादा कुछ और नहीं है। मतदाताओं को लालच दिया जा रहा है।
तात्पर्य यह है कि केजरीवाल पूरी तरह ‘चुनावी हिंदू’ बनना नहीं छोड़ते, लेकिन उनके उलट उनके
समाज कल्याण मंत्री राजेंद्र पाल गौतम ने एक बौद्ध महासभा आयोजन के दौरान हजारों लोगों को
शपथ दिलाई-‘मैं ब्रह्मा, विष्णु, महेश, राम, कृष्ण और गौरी, गणेश आदि को भगवान, देवी-देवता
नहीं मानूंगा। उनकी पूजा भी नहीं करूंगा। मैं बौद्ध धर्म का पालन करूंगा।’ इस शपथ समारोह का
वीडियो भी वायरल हुआ। दलील दी गई कि बाबा अंबेडकर ने भी 22 बिंदुओं के आधार पर बौद्ध
धर्म स्वीकार करने का आह्वान किया था। यह व्यक्ति की निजता है कि वह किस धर्म का पालन
करे, लेकिन एक ही आवाज़ में समग्र सनातन धर्म को खारिज करने की कोशिश करे, यह तो रावण
ने भी नहीं किया था। दरअसल दिल्ली सरकार के मंत्री न तो अंबेडकर की तरह कद्दावर और राष्ट्रीय
नेता हैं और न ही ’50 के दशक का कालखंड है। अंबेडकर बौद्ध बने थे और उनके साथ एक विशाल
जमात ने भी बौद्ध बनना स्वीकार किया था, लेकिन करोड़ों हिंदुओं, सनातनियों की आस्था के प्रतीक
भगवान और देवी-देवताओं को खारिज करते हुए अपमानित नहीं किया था। संवैधानिक और नैतिक
रूप से ऐसा नहीं किया जा सकता। गौतम इस्लाम के पैगंबर, रसूल या नबी का ऐसा करने का
दुस्साहस करें, तो उन्हें ‘सर तन से जुदा’ की धमकी मिलना तय है।
हिंदू और सनातनी देवी-देवताओं को इतना लोकतांत्रिक बना रखा है कि आप उनके खिलाफ कुछ भी
बोल सकते हैं, चित्रित कर सकते हैं, दुष्प्रचार भी कर सकते हैं, लेकिन हिंदू इतने सहिष्णु हैं कि आप
को कुछ भी नहीं कहेंगे। बताया जा रहा है कि केजरीवाल अपने मंत्री की असंवैधानिक, असामाजिक
और अधार्मिक हरकत से नाराज़ हैं, लेकिन यह आलेख लिखे जाने तक उन्होंने मंत्री के खिलाफ कोई
कार्रवाई नहीं की थी। यह शपथ अनैतिक, अवैध धर्मांतरण का भी रूप है। यह मंत्री को जनादेश नहीं
मिला है। यदि गौतम पलटवार में भाजपा को कोसते हैं और उसे इंसानियत और धर्म का दुश्मन
करार देते हैं, तो वह पाप करके छिपने की कवायद भर है। इसका चुनावी लाभ गुजरात या किसी भी
राज्य में ‘आप’ को नहीं मिलने वाला है। बल्कि दिल्ली में केजरीवाल की छवि को खराब कर सकता
है। केजरीवाल को ‘धार्मिक दोगला’ व्यक्ति करार दिया जा सकता है कि चुनावों के मद्देनजर उनकी
आस्थाएं भी बदलती रहती हैं। गौतम ने ऐसा कर हमारे प्राचीन पुराणों, उपनिषदों, रामायण, गीता
आदि की आध्यात्मिक उपस्थिति को भी नकार कर हमारी सनातन संस्कृति को ही फर्जी करार देने
की कोशिश की है। ‘आप’ की राजनीतिक लड़ाई भाजपा से है, तो उसकी नीति, उसके कार्यक्रमों पर
प्रहार करें और अपने संकल्प-पत्र को जनता के सामने पेश करें।