



विनीत माहेश्वरी (संवाददाता)
नई दिल्ली, 09 अक्टूबर वरिष्ठ कांग्रेस नेता मोहसिना किदवई ने 27 साल के बाद यह
खुलासा किया है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष पी वी नरसिंह राव के खिलाफ विद्रोह
कर पार्टी से अलग होने वाले गुट "कांग्रेस (तिवारी) का हिस्सा बनना उनकी भूल थी।" पूर्व केंद्रीय
मंत्री किदवई ने अपनी आत्मकथा ‘माई लाइफ इन इंडियन पॉलिटिक्स’ में यह राज खोला है।
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की बेहद करीबी रहीं किदवई ने अपनी आत्मकथा के ‘कांग्रेस से अलग
होने के अनुभव’ अध्याय में यह अफसोस भी जताया है कि उन्होंने वरिष्ठ नेता और गांधी परिवार के
करीबी समझे जाने वाले माखन लाल फोतेदार की बातों पर यकीन किया और बगैर जांचे-परखे यह
कदम उठाया। किदवई ने यह खुलासा ऐसे समय किया है जब कांग्रेस अपने सबसे बुरे दौर से उबरने
की कोशिशों में जुटी हुई है और अगले कुछ दिनों में उसका नया अध्यक्ष चुना जाना है।
किदवई ने लिखा है कि जब अर्जुन सिंह, नटवर सिंह और अन्य नेताओं ने 1995 में नरसिंह राव के
ख़िलाफ़ विद्रोह कर दिया था तब कांग्रेस के तालकटोरा अधिवेशन से पहले फोतेदार उनसे मिलने आए
थे और उन्होंने दावा किया था कि सोनिया गांधी ‘‘राव साहब’’ से खुश नहीं हैं तथा चाहती हैं कि वह
(किदवई) अर्जुन सिंह और नटवर सिंह गुट का साथ दें। उन्होंने बताया कि यह वो दौर था जब वह
अपने भाई के स्वास्थ्य को लेकर घरेलू समस्याओं में उलझी हुई थीं।
किदवई ने पुस्तक में लिखा है, ‘‘मैंने फोतेदार जी की बातों पर भरोसा कर लिया और अफसोस है कि
मैंने व्यक्तिगत रूप से सोनिया जी से इस बारे में नहीं पूछा।’’ उन्होंने लिखा है, ‘‘आज जब मैं पीछे
मुड़कर देखती हूं तो मुझे लगता है कि मुझे उस अलग हुए समूह, जिसे कांग्रेस (तिवारी) कहा गया,
का हिस्सा नहीं बनना चाहिए था। जो अहम मुद्दे थे, उनके बारे में कई वरिष्ठ नेताओं के साथ अगर
हम पार्टी में ही रहकर लड़ते तो शायद भविष्य की राजनीति कांग्रेस के लिए बेहतर और उज्ज्वल
होती।’’
किदवई अपनी आत्मकथा में लिखती हैं कि 1995 में वास्तव में जो हुआ, उसके बारे में सोनिया
गांधी ने कभी भी कोई सार्वजनिक टिप्पणी नहीं की और 1998 में कांग्रेस का अध्यक्ष बनने के बाद
उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि जो भी धड़े कांग्रेस से अलग हो गए थे, वे वापस उसका हिस्सा बनें।
उन्होंने लिखा है, "सोनिया जी ने अध्यक्ष बनने से पहले ही तिवारी कांग्रेस सहित माधवराव सिंधिया
और कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एस बंगरप्पा के नेतृत्व वाले धड़ों की सम्मान के साथ कांग्रेस में
वापसी सुनिश्चत की।"
सोनिया गांधी मार्च 1998 में अध्यक्ष बनी थीं और उनसे पहले सीताराम केसरी पार्टी के अध्यक्ष थे।
किदवई ने कहा, ‘‘कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में सोनिया गांधी ने नरसिंह राव के कार्यकाल के दौरान
पार्टी छोड़ने वाले सभी लोगों को महत्व और सम्मान दिया। इसके अलावा जो लोग सक्रियता के साथ
राव के समर्थक थे, उन्हें भी उन्होंने नजरअंदाज नहीं किया और न ही उन्हें किनारे लगाया। बतौर
कांग्रेस अध्यक्ष उन्होंने सभी के साथ समान व्यवहार किया, जो कि एक आसान काम नहीं था।’’
उल्लेखनीय है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के बाद राव देश के प्रधानमंत्री तथा
कांग्रेस अध्यक्ष बने। उस वक्त कांग्रेस में प्रधानमंत्री पद के लिए अर्जुन सिंह, शरद पवार, डॉ.
शंकरदयाल शर्मा, माधवराव सिंधिया सहित आधा दर्जन दावेदार थे, मगर बाजी राव के हाथ लगी।
सोनिया गांधी उन दिनों औपचारिक तौर पर राजनीति में सक्रिय नहीं थीं।