



विनीत माहेश्वरी (संवाददाता )
ये बात सच है कि भारत में नारी को देवी का स्वरूप माना जाता है, लेकिन दूसरी ओर इसी देवी के
साथ काफी दुर्व्यवहार भी किया जाता है, जिसकी जीती जागती मिसाल कन्या भ्रूण हत्या, बाल
विवाह, लड़का-लड़की में भेदभाव, घरेलू हिंसा है. इसी में एक और प्रथा का नाम आता है, वह है
दहेज प्रथा. किसी समय में दहेज का अर्थ इतना वीभत्स और क्रूर नहीं था, जितना आज के समय में
हो गया है. दहेज पिता की ओर से बेटी को दी जाने वाली ऐसी संपत्ति है जिस पर बेटी का अधिकार
होता है. पिता अपनी बेटी को ऐसी संपत्ति अपनी स्वयं की इच्छा से देता था और अपनी हैसियत के
मुताबिक देता है.
परन्तु आज इसका स्वरुप बदल गया है. लोग दहेज की खातिर हिंसा पर उतारु हो गए हैं. दहेज न
मिलने पर लोग अपने बेटे की शादी तक रोक देते है ऐसे ही एक मामला पिछले दिनों हरियाणा के
करनाल में देखने को मिला था, जब दूल्हे ने दहेज में महंगी गाड़ी नहीं मिलने पर शादी से इंकार कर
दिया था. आए दिन हमें ऐसे केस देखने और सुनने को मिल जाते हैं. ऐसा कृत्य करने से पहले वह
ज़रा भी नहीं सोचते हैं कि उस माता पिता पर क्या गुजरती होगी जिसने अपनी बेटी की शादी के
लिए सपने सजाए होंगे.
ऐसा नहीं है कि हमारे देश में दहेज़ के खिलाफ सख्त कानून नहीं है. इसके खिलाफ कानून भी हैं
और कई धाराएं भी हैं. इनमें धारा 304बी है, इस धारा के अंतर्गत यदि किसी महिला की मौत दहेज
प्रताड़ना के कारण होती है या फिर उसको जलाने की कोशिश की जाती है तो उसके पति और घर
वालों को उम्र कैद की सजा होती है. इस धारा के अन्दर कोई जुर्माना नहीं आता है इसमें सीधे सजा
होती है. वहीं धारा 406 में, यदि कोई भी पुरुष अपनी पत्नी को दहेज के लिए प्रताड़ित करता है तो
उसको और उसके परिवार वालों को इस धारा के अंतर्गत 3 साल की सजा हो सकती है या फिर
जुर्माना देना पड़ सकता है या फिर दोनों ही सजा हो सकती है.
इसके अतिरिक्त धारा 498ए के अंतर्गत उस तरह का केस आता है जिसमें अगर कोई महिला दहेज
की प्रताड़ना से तंग आकर जान देने की कोशिश करती है और अगर इसकी शिकायत वो पुलिस से
कर देती है तो उसके पति और ससुरालवालों को उम्र भर की सजा हो सकती है. इसके अलावा भारत
में दहेज निरोधक कानून भी है जिसके अनुसार दहेज देना और लेना दोनों ही गैरकानूनी घोषित किया
गया है. लेकिन व्यावहारिक रूप से आज तक इसका कोई लाभ नहीं मिल पाया है. आज भी बिना
किसी हिचक के वर-पक्ष दहेज की मांग करता है और न मिल पाने पर नववधू को उनके प्रकोप का
शिकार होना पड़ता है.
दहेज प्रथा जैसी बुराई को रोकने के लिए सबसे पहले हमें लड़कियों की शिक्षित और जागरूक बनाने
की ज़रूरत है. उन्हें अपने पैरों पर खड़ा होने और सशक्त बनाने में मदद करनी चाहिए. शिक्षा समाज
में फैली हर बुराई का जवाब है. एक शिक्षित व्यक्ति हर परिस्थितियों को अपने तरह से सोचने,
समझने और उसका मुकाबला करने की ताकत रखता है. शिक्षित होने का सबसे महत्वपूर्ण फायदा यह
है कि इंसान दहेज प्रथा जैसी अन्य कुप्रथा का मूल रूप और उसके दुष्परिणाम को समझ सकता है.
आज के वक्त की महिलाएं खुद पर निर्भर होना जानती हैं और उन्हें खुद पर निर्भर होना आना भी
चाहिए. प्रत्येक परिवार को सबसे पहले लड़की की शिक्षा पर और उसके बाद उसकी नौकरी दिलाने का
प्रयास करनी चाहिए ताकि लडकिया खुद पर निर्भर हो सके. शादी-विवाह में दिए-लिए जाने वाले दहेज
को लेकर एक लंबे समय से बहस होती आ रही है. इसे हमेशा कुप्रथा बताया जाता है. इसके खिलाफ
कड़े कानून भी बनाए गए हैं. लेकिन इन सबके बावजूद शादियों में दहेज के लेनदेन पर रोक नहीं
लग पाई है. ऐसे में ज़रूरत है एक ऐसी नीति बनाने की जिससे समाज में इसके खिलाफ जागरूकता
बढ़ सके.