



विनीत माहेश्वरी (संवाददाता )
आज फिर खुली रह गई
नींद की खिड़की
आज फिर घुस गया
बेशुमार अंधेरा भीतर तक
आज फिर जहन में
तैरते रहे
शब्द और सपने
अंधकार की सतह पर
आज फिर
सुबह हुई
इस अंधेरे को
उलीचते-उलीचते।
युवा मन
© 2022 Copyrights Reserved By jansamvaad24x7mediaassociation | Designed & Managed by Website designing company - Traffic Tail