



विनीत माहेश्वरी (संवाददाता )
पार्टी ने आम चुनाव के लिए आक्रामक तैयारी शुरू कर दी है। इसने हाल ही में दिल्ली में 144
लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों, जहां भाजपा कमजोर है, में अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए एक
खाका तैयार करने के लिए एक बैठक की। पार्टी ने उन 70 लोकसभा सीटों पर भी ध्यान केंद्रित करने
का प्रस्ताव रखा है जो उसने कभी नहीं जीतीं।
भारत में राजनीतिक दलों ने अभी से ही 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए अग्रिम योजना बनाना
शुरू कर दिया है। सत्तारूढ़ एनडीए और विपक्षी दल अपनी-अपनी तैयारियों में एक-दूसरे से होड़ कर
रहे हैं। वे वर्तमान राजनीतिक माहौल के मुताबिक अपनी-अपनी रणनीतियां बना रहे हैं। 2024 में
भारत के अगले आम चुनाव के लिए मंच तैयार है।
समानांतर आधार पर क्षेत्रीय दल भाजपा के लिए खतरा उपस्थित कर सकते हैं। सत्तारूढ़ भाजपा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए हैट्रिक बनाने (तीसरी बार जिताने) की योजना बना रही है जबकि
विपक्ष उन्हें सत्ता से बेदखल करने की कोशिश कर रहा है। भाजपा 2024 में 350 से अधिक सीटें
जीतने के लक्ष्य की बात कर रही है, जबकि नीतीश कुमार और ममता सभी विपक्षी दलों को एकजुट
करके लोकसभा चुनाव में भाजपा को हराने के प्रति आश्वस्त हैं।
विपक्ष एकता का सपना देखता है लेकिन उसे एक निर्णायक नुकसान होता है क्योंकि वह अभी भी
मोदी को चुनौती देने वाले प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नेता की तलाश में है। प्रधानमंत्री पद के
उम्मीदवार की यह कमी विपक्ष को आहत कर सकती है, जबकि भाजपा मोदी बनाम कौन के सवाल
पर राजनीतिक खेल खेल सकती है।
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी, बिहार में नीतीश कुमार, दक्षिण में के चंद्रशेखर राव, एमके स्टालिन
और उत्तर में अरविंद केजरीवाल के साथ, भाजपा को विभिन्न क्षेत्रों से दुर्जेय मुकाबले हैं। विपक्ष के
गढ़ में 200 से ज्यादा सीटें हैं। हिमाचल प्रदेश और गुजरात में इस साल के अंत में मतदान होगा
और अगले साल छह प्रमुख राज्यों- कर्नाटक, त्रिपुरा, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़
में मतदान होगा।
भाजपा को अभी दक्षिणी राज्यों, जहां लोक सभा की कुल 129 सीटें हैं, पर जीत हासिल करनी है।
जहां आम आदमी पार्टी के प्रमुख केजरीवाल भ्रष्टाचार के मुद्दे पर पीएम को निशाने पर लेते हैं. वहीं
अन्य लोग महंगाई और बेरोजगारी पर भाजपा को घेरने की योजना बना रहे हैं।
दूसरे, सही या गलत भाजपा अपनी विचारधारा के बारे में स्पष्ट है, एक सम्मोहक कथा और चुनाव
की तैयारी के साथ तथा उसके पास सक्रिय कार्यकर्ता भी हैं और चुनाव लड़ने के लिए काफी धनराशि
भी। मोदी के पास सरकारी मशीनरी है और दिखाने के लिए कल्याणकारी योजनाएं भी। परन्तु वहीं
क्षेत्रीय क्षत्रप अपने राज्यों में काफी मजबूत हैं।
मोदी ने न केवल अपने झुंड को एक साथ रखा है. बल्कि आलोचनाओं के बावजूद, अन्य अनेक दलों
को भी तोड़ दिया है और उनके नेताओं को भाजपा में शामिल कर लिया है। इससे भी महत्वपूर्ण बात
यह कि उन्होंने राम मंदिर, कश्मीर में अनुच्छेद 370 को हटाने और तीन तलाक जैसे संघ परिवार के
मुख्य एजेंडे को पूरा किया है। वह जल्द ही समान नागरिक संहिता का मुद्दा उठा सकते हैं। ये सब
उनके प्रतिबद्ध मतदाताओं को जोड़े रखेंगे।
हालांकि हाल ही में भाजपा संसदीय बोर्ड में फेरबदल और पिछले महीने बिहार में जद (यू) के राजग
गठबंधन से बाहर निकलने से भाजपा के भीतर कुछ अशांति पैदा हो गई है। फिर भी, नेता संकट में
आवश्यक सुधार करने की भाजपा की क्षमता पर भरोसा करते हैं। भाजपा को कुछ और सहयोगी दलों
की भी जरूरत है।
पार्टी ने आम चुनाव के लिए आक्रामक तैयारी शुरू कर दी है। इसने हाल ही में दिल्ली में 144
लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों, जहां भाजपा कमजोर है, में अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए एक
खाका तैयार करने के लिए एक बैठक की। पार्टी ने उन 70 लोकसभा सीटों पर भी ध्यान केंद्रित करने
का प्रस्ताव रखा है जो उसने कभी नहीं जीतीं।
दूसरी ओर, विपक्ष में तालमेल नहीं है और विभिन्न विचारधाराओं का मिश्रण है। उन सभी को एक
दूसरे को लाभ देने और एक दूसरे से लाभ लेने की मुद्रा अपनानी चाहिए। जहां क्षेत्रीय नेताओं ने
अपने-अपने राज्यों में अच्छा प्रदर्शन किया है, उन्हें अवश्य ही सभी भागीदारों के लिए स्वीकार्य
न्यूनतम साझा कार्यक्रम तैयार करना चाहिए।
देवेगौड़ा, लालू यादव, नीतीश कुमार, अखिलेश यादव और ओम प्रकाश चौटाला पूर्व जनता घटक को
एकजुट करने के लिए सहयोग कर सकते हैं। कांग्रेस के साथ वे हरियाणा, कर्नाटक, बिहार, झारखंड
और उत्तर प्रदेश जैसे बहुदलीय राज्यों में मजबूत हो सकते हैं। यानी करीब 200 लोकसभा सीटें पर।
राहुल गांधी की वर्तमान भारत जोड़ो यात्रा अगर क्लिक करती है तो इससे कांग्रेस को मदद मिल
सकती है।
उत्तर प्रदेश में एक ठोस क्षेत्रीय पार्टी, समाजवादी पार्टी, अपने संगठनात्मक ढांचे को मजबूत करने पर
ध्यान केंद्रित कर रही है। पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव पहले ही घोषणा कर चुके हैं कि वह कांग्रेस या
बसपा के साथ गठबंधन करने की योजना नहीं बना रहे हैं, बल्कि राष्ट्रीय लोक दल जैसे छोटे दलों के
साथ बने रहेंगे। वहीं यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बीजेपी के लिए 80 में से 75सीटें जीतने
का लक्ष्य रखा है।
बसपा ने पहले चरण के रूप में प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र से 75000 सदस्य बनाने के लक्ष्य के साथ
एक विशाल सदस्यता अभियान शुरू किया है। बसपा प्रमुख मायावती पिछले एक दशक में हार के
बाद हार का सामना कर रही हैं, लेकिन उनके पास अभी भी एक मजबूत दलित वोट बैंक है।
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी ने अपने विधायकों को चेतावनी दी है कि या तो
काम करें या राजनीतिक जीवन चौपट कर लें। उन्होंने अपने विधायकों के घर-घर दौरा भी प्रारम्भ
किया है। तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने भी एक राष्ट्रीय पार्टी शुरू करने की योजना
बनाई है, और राष्ट्रीय भूमिका निभाने की कोशिश कर रहे हैं।
मोदी के पीछे दस साल की सत्ता विरोधी लहर होगी, लेकिन भाजपा मोदी के जादू पर निर्भर है।
लेकिन कई सवाल है- जैसे क्या मोदी हैट्रिक करेंगे? क्या एकजुट होगा विपक्ष? क्या राहुल एक सफ
ल चुनौती देने वाले नेता बनकर उभरेंगे? पहली बार के मतदाता बने युवा किसे पसंद करेंगे?
राजनीति में एक सप्ताह भी लंबा बताया जाता है। 2024 के चुनावों से पहले हमारे पास 18 महीने
हैं। चुनाव नजदीक आते ही तस्वीर साफ हो जायेगी। तब तक राजनीतिक पंडित अंधेरे में सीटी बजा
रहे हैं।