शेख हसीना के बांग्लादेश में हिंदू : आखिर कब तक बनते रहेंगे निशाना, आवाज उठानी होगी

Advertisement

विनीत माहेश्वरी (संवाददाता ) 

Advertisement

बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग का चुनाव चिह्न नाव है। वर्ष 1996 में
जब उनकी पार्टी को संसदीय चुनावों में भारी जीत मिली और हसीना हिंदू बहुल गोपालगंज सीट से
सांसद बनीं, तो वहां के एक अनपढ़ वृद्ध हिंदू से पूछा गया कि उसने अवामी लीग को वोट क्यों
दिया? उसका जवाब था, 'हम नहीं समझते कि अवामी लीग क्या है। हम नाव के लिए वोट करते हैं।
मैं नाव को वोट क्यों न दूं? नाव देवी की सवारी है। असुर (बुराई) का नाश करने के लिए देवी दुर्गा

स्वर्ग से धरती पर नाव से आती हैं। ऐसे में अगर हम नाव को वोट नहीं देंगे, तो यह देवी की सवारी
का अपमान होगा।'
इस प्रसंग का उल्लेख मोतीउर रहमान रेंटू ने अपनी पुस्तक आमार फांसी चाई में किया है। वह
हसीना के बहुत करीबी नेता थे। पर हसीना के बारे में कटु सच बताने के कारण इस पुस्तक पर न
सिर्फ प्रतिबंध लगा, बल्कि रेंटू और उनकी पत्नी की हत्या कर दी गई। इस पुस्तक में रेंटू ने बाबरी
मस्जिद के विवादास्पद ढांचे को गिराने की घटना का जिक्र किया है। उसी दिन सार्क की ढाका में
बैठक होने वाली थी। लेकिन ढांचा गिराए जाने के बाद तब विपक्ष में बैठी हसीना ने पुस्तक के लेखक
को अपने घर में बुलाया और अपनी पार्टी के कैडरों को हिंदुओं के खिलाफ भड़काने को कहा। तब
खालिदा जिया प्रधानमंत्री और सार्क की अध्यक्ष भी थीं। हसीना चाहती थीं कि सार्क का सम्मेलन न
हो पाए और कट्टपंथियों को खुश किया जाए।
हिंदुओं के वोटों पर राज करने वाली हसीना के देश में पिछले साल दुर्गापूजा पर कम से कम 1,650
हिंदुओं के घर जलाए गए और 343 मंदिर तोड़े गए या उनमें आगजनी की गयी, 14 से अधिक
हिंदुओं की हत्या हुई, बलात्कार के 26 मामले आए और हिंदू समुदाय के बहुत लोग अब भी लापता
हैं। यह सिलसिला थमा नहीं है। इस्कॉन के प्रवक्ता राधारमण दास के मुताबिक, बांग्लादेश में इस
साल के पहले छह महीनों में ही 77 हिंदुओं का अपहरण किया गया और 95 हिंदुओं से जबरन
इस्लाम कबूल करवाया गया है।
यही वजह है कि बांग्लादेश में हिंदुओं की आबादी लगातार घट रही है। वर्ष 1941 में पूर्वी बंगाल की
लगभग 28 फीसदी आबादी हिंदू थी, पर 1951 में उनका अनुपात घटकर 22 प्रतिशत रह गया था।
वर्ष 2022 की जनगणना के मुताबिक, बांग्लादेश की आबादी 16,51,58,616 है, जिनमें से हिंदुओं की
आबादी घटकर लगभग 1.31 करोड़ रह गई है। ढाका विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अबुल बरकत ने
अपनी पुस्तक, पॉलिटिकल इकनॉमी ऑफ रिफॉर्मिंग एग्रीकल्चर इन बांग्लादेश में लिखा है कि धार्मिक
भेदभाव के कारण वर्ष 1964 से 2013 तक लगभग 1.13 करोड़ हिंदू बांग्लादेश से पलायन को
मजबूर हुए।
इंटरनेशनल हिंदू वॉयस ऑफ बांग्लादेश के अध्यक्ष हाराधन देब के मुताबिक, हिंदुओं पर अत्याचार के
100 मामलों में केवल पांच प्रतिशत लोगों को ही सजा होती है और वह भी मामूली। बांग्लादेश की
संसद में 303 सांसद हैं, जिनमें से 16 हिंदू हैं। तीन हिंदू सांसद मंत्री भी हैं, पर वे हिंदुओं के पक्ष में
आवाज नहीं उठा पाते। अगर कोई सांसद इस संबंध में एक पंक्ति भी बोल दे, तो वह अगले दिन
संसद में घुस नहीं पाएगा।
वहां साइबर अपराध रोकने का कोई प्रयास नहीं होता। किसी हिंदू के नाम पर फर्जी अकाउंट खोलकर
अनाप-शनाप लिख दिया जाता है और दंगे भड़का दिए जाते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और शेख
हसीना के बीच छह सितंबर की बैठक में हिंदुओं की सुरक्षा का मुद्दा उठा और बांग्लादेश की

प्रधानमंत्री ने इस बार की दुर्गापूजा में हिंदुओं को पूरी सुरक्षा देने का वादा किया है। देखना यह है कि
शेख हसीना अपना वादा पूरा कर पाती हैं या नहीं।

Leave a Comment