



विनीत माहेश्वरी (संवाददाता )
बांग्लादेश रोहिंग्या शरणार्थियों के चलते इन दिनों काफी मुश्किल में है। साल 2017 में म्यांमार में सैन्य तख्तापलट
के बाद बड़ी संख्या में रोहिंग्या मुसलमान भागकर बांग्लादेश पहुंच गए। वैसे, 1970 के दशक से ही वे वहां आते रहे
हैं, लेकिन 2010 का दशक मानो इनकी लहर लेकर आया था। तब शेख हसीना सरकार ने खुले दिल से उनका
स्वागत भी किया था। मगर अब जहां बांग्लादेश में इनकी आबादी काफी तेजी से बढ़ रही है, वहीं इनसे जुड़े
अपराधों में भी भारी बढ़ोतरी हुई है। नतीजतन, प्रधानमंत्री हसीना को कहना पड़ा है कि रोहिंग्या उनके यहां
आपराधिक व सामाजिक समस्याएं बढ़ा रहे हैं। उधर, रोहिंग्या शरणार्थी भी सड़कों पर उतर आए हैं। वे म्यांमार
वापस भेजे जाने की अपनी पुरानी मांग को लेकर फिर मुखर हैं। हालांकि, उनकी घर वापसी फिलहाल काफी कठिन
दिख रही है। म्यांमार अब भी लोकतंत्र से दूर है, और वहां सैन्य शासक उसी मजबूती से काबिज हैं, जिस सख्ती से
उन्होंने रोहिंग्या मुसलमानों का दरबदर किया था। फिर, बौद्धों के साथ रोहिंग्या का सामाजिक तनाव भी कम नहीं
हो सका है। जाहिर है, यह मसला बहुत पेचीदा है। शेख हसीना इसके खिलाफ संयुक्त राष्ट्र में अर्जी लगा चुकी हैं
और इस्लामी सहयोग संगठन (ओआईसी) का दरवाजा भी खटखटा चुकी हैं। वह शरणार्थियों को अंतरराष्ट्रीय
सहायता देने के साथ-साथ म्यांमार वापस भेजे जाने की पुरजोर वकालत करती रही हैं, जिसके कारण म्यांमार के
साथ उनके रिश्ते भी खराब रहे। मगर नतीजा अब तक सिफर रहा है। बांग्लादेश में रोहिंग्या शरणार्थियों की सख्या
बढ़कर 10 लाख हो चुकी है। ये मूलत: चटगांव व इसके आसपास के इलाकों में बसे हुए हैं। बांग्लादेश की हुकूमत
ने इनके रहने के लिए अलग से भासन चार द्वीप पर भी व्यवस्था की है, जिसके लिए वहां ढांचागत निर्माण-कार्य
करवाए गए हैं। शुरू-शुरू में तो रोहिंग्या शरणार्थियों ने इस पर आपत्ति की, पर अब वे वहां बसने लगे हैं। रोहिंग्या
मुसलमानों के लिए बांग्लादेश आना (या भागना) इसलिए आसान रहा, क्योंकि म्यांमार से लगी इसकी सीमा कुछ
हद तक खुली हुई है। दोनों देश करीब 270 किलोमीटर की सीमा-रेखा साझा करते हैं, जो काफी हद तक घने जंगलों
व नफ नदी में बंटी हुई है। लगभग 210 किलोमीटर पर ही बाड़ लगाना संभव हो सका है। बांग्लादेश का मानना है
कि रोहिंग्या मुसलमान जरूर हैं, पर वे बांग्लादेशी नहीं हैं, जबकि म्यांमार का तर्क है कि बांग्लादेश से आकर ही
रखाइन प्रांत में उन्होंने अपना ठिकाना बनाया था। इनको अपने यहां से खदेडऩे के लिए म्यांमार की सैन्य हुकूमत
ने इन पर खूब अत्याचार किए थे। रोहिंग्या मुसलमानों के अराजक होने की एक बड़ी वजह पाकिस्तान है। समस्या
भारत के लिए भी है। बांग्लादेश छोटा-सा मुल्क है। वहां आबादी काफी सघन है। चूंकि उसके साथ लगी हमारी सीमा
तुलनात्मक रूप से शांत है, इसलिए माना जाता है कि तमाम कोशिशों को बाद भी कुछ रोहिंग्या घुसपैठ में सफल
हो जाते हैं। दिक्कत यह है कि इनकी आमद के साथ आपराधिक व कट्टरवादी तत्व भी हमारे समाज में दाखिल हो
जाते हैं। चूंकि रहन-सहन, भाषा, खान-पान, पहचान जैसे मामलों में रोहिंग्या और बांग्लादेशियों में फर्क करना
मुश्किल होता है, इसलिए हमारे सीमावर्ती राज्यों को केंद्र के दिशा-निर्देशों के अनुरूप अतिरिक्त प्रयास करते रहना
होगा। हमारी यह भी कोशिश है कि रोहिंग्या लोगों को पहचानकर उनको वापस भेज दिया जाए।