पश्चिमी यूपी पर नजर

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विनीत माहेश्वरी (संवाददाता )

यूपी भाजपा अध्यक्ष की रेस में चल रहे उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक, एमएलसी
विद्यासागर सोनकर, केंद्रीय राज्य मंत्री भानु प्रताप वर्मा और बीएल वर्मा आदि को पछाड़कर भूपेंद्र सिंह चौधरी की
ताजपोशी हो गई है। दो दिन पहले जब उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य का ट्वीट 'संगठन सरकार से बड़ा आया तो
मान लिया गया कि उनका अध्यक्ष बनना तय हो गया है। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। पिछड़ा, दलित या ब्राह्मण की
जगह जाट नेता भूपेंद्र सिंह चौधरी पर मुहर लगाना भाजपा का मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है। पंचायती राज मंत्री
भूपेंद्र चौधरी की पहचान पार्टी के अंदर निचले स्तर तक संगठन को सक्रिय रखते हुए सफलता की तरफ बढ़ने वाले
नेता की है, जिसने उन्हें प्रदेश अध्यक्ष की रेस में आगे खड़ा कर दिया। पश्चिम क्षेत्र का अध्यक्ष रहते हुए उनके
रणनीतिक कौशल से 2014 के आम चुनाव में भाजपा को पहली बार पश्चिमी यूपी की सभी सीटों पर जीत हासिल
हुई थी। माना जा रहा है कि 2024 के लिए भाजपा की रणनीतिक जरूरतों के लिहाज से भूपेंद्र चौधरी सबसे
उपयुक्त साबित हो सकते हैं। भूपेंद्र चौधरी के राजनीतिक जीवन का लंबा समय पार्टी की जिले से लेकर क्षेत्रीय
अध्यक्ष के पद तक की जिम्मेदारियों में बीता है। वह संघ के करीबी माने जाते हैं। भाजपा में भूपेंद्र चौधरी पश्चिमी
यूपी में जाट राजनीति का सबसे बड़ा चेहरा हैं। जाट मतदाताओं को साधने और उनके साथ ही अन्य मतदाताओं को
साथ जोड़कर चलने के कारण भी प्रदेश अध्यक्ष के रूप में उन्हें बड़ा दावेदार माना जा रहा है। भाजपा के सामने
यूपी में विपक्ष का बड़ा केंद्र इस समय जाटलैंड यानी पश्चिमी यूपी ही है। इस क्षेत्र में प्रमुख विपक्षी दल सपा और
रालोद का मजबूत गठजोड़ है। यहां पर विपक्ष की ताकत को कमतर करने में चौधरी अहम भूमिका निभा सकते हैं।
चौधरी 2012 विधानसभा चुनाव, 2014 आम चुनाव तथा 2017 विधानसभा चुनाव में भाजपा पश्चिमी क्षेत्र के
अध्यक्ष रहे थे। इसके बाद से प्रदेश में भाजपा के सत्ता में आने के बाद से लगातार दूसरी बार मंत्री हैं। 2019
लोकसभा और 2022 विधानसभा चुनाव में भाजपा को पश्चिमी यूपी में अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाई थी।
लोकसभा चुनाव में इस क्षेत्र से भाजपा सात सीटें हार गई थी। 2024 आम चुनाव में भाजपा 2019 की कमियों को
सुधारने की कोशिश में है। विधानसभा चुनाव में उन्हें सहारनपुर मंडल में लगाया गया था इस क्षेत्र में किसानों का
विरोध पार्टी को झेलना पड़ रहा था। जिसे बहुत हद तक कम करने में भूपेंद्र चौधरी को सफलता मिली थी। भूपेंद्र
चौधरी को पार्टी ने अहम जिम्मेदारी देकर पश्चिमी यूपी में जाट मतदाताओं खासकर रालोद के वोट बैंक में सेंध
लगाने के साथ भाजपा की पैठ बनाने की बड़ी रणनीति मानी जा रही है। इसे सपा और रालोद के गठजोड़ को
कमजोर करने की कवायद के रूप में देखा जा रहा है। विपक्ष द्वारा बार-बार पश्चिम से खड़े किए जा रहे किसान
आंदोलन को भी कमजोर करने में मदद मिलेगी। भाजपा पश्चिमी यूपी में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए सारे
तरीके अपना रही है। बीते विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा को पश्चिमी यूपी नाराजगी के चलते नुकसान झेलना
पड़ा था। भूपेंद्र चौधरी को प्रदेश की कमान सौंप कर जाटों के बीच अपनी स्थिति को मजबूत करना चाहती है।
स्वतंत्र देव ने जुलाई में अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। उसके बाद से प्रदेश अध्यक्ष की तलाश की जा रही थी।
भाजपा किसी ऐसे मजबूत चेहरे की तलाश में थी जो संगठन और सरकार दोनों के लिए फायदेमंद साबित हो।
आखिरकार वो तलाश भूपेंद्र सिंह चौधरी पर जाकर खत्म हुई।

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