‘मजहबी सरकलम’ के नारे!

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विनीत माहेश्वरी (संवाददाता )

हैदराबाद के भाजपा विधायक टी.राजा सिंह ने पैगम्बर मुहम्मद के खिलाफ अभद्र, विवादित टिप्पणी कर दी, तो
‘सर तन से जुदा’ के नारों वाली भीड़ सडक़ों पर बिछ गई। आक्रोशित माहौल बन गया। कुछ भी अनहोनी संभव
थी। उसी दौरान कांग्रेस के कथित नेता राशिद खान ने सरेआम धमकी दी कि यदि राजा सिंह की गिरफ्तारी नहीं
की गई, तो वह विधायक के घर में घुसकर आग लगा देंगे। कानून-व्यवस्था को छिन्न-भिन्न कर देंगे। राजा सिंह
को तब तक अदालत ने 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेजने का फैसला सुना दिया था, लेकिन हैदराबादी
पुलिस ने मुस्लिम नारेबाजों के खिलाफ आपराधिक केस दर्ज नहीं किया था। तब तक कथित जांच जारी थी। बेशक
भाजपा नेतृत्व ने त्वरित कार्रवाई की और विधायक को निलंबित कर 10 दिन में जवाब मांगा कि क्यों न उन्हें
पार्टी से बाहर कर दिया जाए! भाजपा अपने विधायक को बर्खास्त कर सांप्रदायिक लपटों को शांत करने की कोशिश
करेगी, ऐसी हमारी ख़बर है, लेकिन गली-गली, मुहल्ले-मुहल्ले में ‘गुस्ताख ए नबी की यही सजा, सर तन से जुदा’
की हुंकार भरने वालों की भीड़ लगातार सक्रिय रहती है, उसका संज्ञान कौन और कब लेगा? जो सिलसिला उदयपुर
में एक हिंदू दर्जी के ‘सरकलम’ से शुरू हुआ था, वह महाराष्ट्र के अमरावती, अहमदनगर और कर्नाटक के बेंगलुरू
से गुजऱता हुआ तेलंगाना के हैदराबाद तक पहुंच चुका है।
सर्वोच्च अदालत के एक वकील को भी धमकी दी गई है। हिंदुस्तान में संविधान और लोकतंत्र का राज है अथवा
शरिया के कायदे-कानून की हुकूमत है! यह संस्कारों और चेतना से हिंसावादी देश नहीं है। नूपुर शर्मा से विधायक
राजा सिंह तक ने टिप्पणियां कर ‘ईश-निंदा’ का अपराध किया होगा! हम उनके बयानों की भत्र्सना करते हैं और
दूसरों की आस्था पर प्रहार करना हिंसक और अधर्म मानते हैं, लेकिन इसका पालन सभी संदर्भों में किया जाना
चाहिए। भारत इतनी विविधताओं वाला राष्ट्र है कि हमें एक-दूसरे की आस्थाओं का सम्मान करते हुए सहजीवी
बनना होगा। ऐसा नहीं हो सकता कि ‘सरकलम’ की हुंकारें भरने वाली भीड़ के रसूल, नबी के प्रति गुस्ताखी बर्दाश्त
न की जाए और हिंदुओं की आस्था को खोखला और बेमानी मान लिया जाए। हमने अपने भगवान शंकर, राम-
कृष्ण, गणपति और आराध्य देवियों के सरेआम अपमान देखे और सुने हैं। उनके अभद्र और उपहासमयी चरित्र-
चित्रण को रचनात्मक अभिव्यक्ति करार देते हुए देखा है। आखिर हिंदुओं की आस्था को संरक्षण कौन देगा?
दरअसल हिंदू मानसिक तौर पर ‘सरकलम’ वाला नहीं है। सोचिए, यदि वक्त के किसी पल में हिंदू भी मारने-काटने

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के नारे चीखने लगा, तो हमारे समाज और देश का क्या होगा? क्या ऐसे माहौल में संवैधानिक और कानूनी
व्यवस्था संभव होगी? बेशक ‘सरकलम’ की धमकियां देने वालों और संदिग्ध हत्यारों की धरपकड़ हुई है, आपराधिक
केस जारी हैं, लेकिन अब इस प्रवृत्ति के सिलसिलों पर गंभीर चिंता और मंथन करने की ज़रूरत है। ‘सरकलम’ वालों
के तार पाकपरस्त आतंकी संगठनों से भी जुड़े हैं। उन्होंने पाकिस्तान जाकर बाकायदा टे्रनिंग ली है।
उनके घरों से विस्फोटक और हथियार भी बरामद किए गए हैं। ये खतरनाक साजि़शों के नए आयाम हैं। जब नूपुर
शर्मा प्रकरण सामने आया था, तो खाड़ी देशों की तल्ख प्रतिक्रिया भी झेलनी पड़ी थी। उन देशों में भारतीय वस्तुओं
के बहिष्कार का कुछ शोर उठा भी था। करोड़ों भारतीय उन देशों में काम कर रहे हैं। तब कूटनीतिक प्रयासों से उस
आग को शांत किया गया था। अब विधायक राजा सिंह का बयान आया है, तो साथ-साथ ‘सरकलम’ और आगजनी
की धमकियां भी सार्वजनिक हुई हैं। अब देश की धर्मनिरपेक्ष, कथित प्रगतिशील और ‘अवार्ड वापसी’ वाली जमात
‘सरकलम’ के नारों और हत्याओं पर खामोश क्यों है? हैदराबाद के कांग्रेस नेता के घोर आपत्तिजनक बयान पर
सोनिया-राहुल गांधी ने कोई प्रतिक्रिया क्यों नहीं दी? कांग्रेस तो ‘भारत जोड़ो अभियान’ शुरू करने जा रही है। क्या
राजनीतिक विरोधाभास और अवसरवाद है यह? हैदराबाद के सांसद ओवैसी ने भाजपा विधायक की टिप्पणी पर ही
कहना शुरू कर दिया कि भाजपा तेलंगाना में भी ‘सांप्रदायिक दंगे’ कराना चाहती है, लेकिन ‘सरकलम’ नारों और
हुंकारों की सिर्फ निंदा कर खामोश हो गए। इस प्रवृत्ति की सियासत भी थमनी चाहिए। ‘सरकलम’ पर कानूनी सजा
के नए प्रावधान सरकार तय करे, क्योंकि यह जमात बिल्कुल निरंकुश और घोर कट्टरपंथी है। संविधान के अनुसार
भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है। यहां सभी धर्मों का सम्मान किया जाता है। धर्म विशेष में आस्था रखने तथा
उसका प्रचार-प्रसार करने की स्वतंत्रता भी दी गई है। राज्य का अपना कोई धर्म नहीं है। सरकार की दृष्टि में सभी
धर्म समान हैं। ऐसे समाज में लोगों में एक-दूसरे धर्म के प्रति सम्मान की भावना होनी चाहिए। अगर कोई व्यक्ति
किसी धर्म का अपमान करता है, तो उसे दंड अवश्य ही मिलना चाहिए। यहां सवाल है कि जब इस विधायक के
खिलाफ कार्रवाई हो चुकी थी, तो ऐसे नारे क्यों?

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