दिल्ली में 'आप' की शराब और यह कैसा 'स्वराज'

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विनीत माहेश्वरी (संवाददाता )

देश की राजधानी दिल्ली में लगभग दस वर्ष पहले अन्ना हजारे के नेतृत्व में भ्रष्टाचार के विरुद्ध बड़ा आंदोलन
किया गया। आंदोलन के बाद एक पार्टी बनी-'आम आदमी पार्टी'। आरंभिक दौर में इसकी सदस्यता लेने के लिए
अरविंद केजरीवाल की लिखी पुस्तक 'स्वराज' पढ़ना आवश्यक माना जाता था। इसके आमुख पर लिखा है- 'यह
किताब-व्यवस्था परिवर्तन और भ्रष्टाचार के खिलाफ हमारे आंदोलन का घोषणा-पत्र है।' अब विमर्श इस बात पर हो
रहा है कि इस पार्टी ने व्यवस्था में कितना परिवर्तन किया? और भ्रष्टाचार कितना मिटा? यद्यपि दिल्ली में
पहलीबार आप की सरकार बनते ही- हम बंगला नहीं लेंगे,हम गाड़ी नहीं लेंगें,हम सुरक्षा गार्ड नहीं लेंगें जैसी इनकी
बातों से ऐसा लगने लगा था कि ये लोग सत्ता सुख भोगने के लिए नहीं आए। ये व्यवस्था परिवर्तन के लिए आए
हुए लोग हैं। किन्तु यह भ्रम इतनी शीघ्रता से और इतनी आसानी से टूट जाएगा इसकी कल्पना नहीं थी।
कितने आश्चर्य की बात है कि जो पार्टी भ्रष्टाचार मिटाने आई थी आज वह भ्रष्टाचार के अनगिनत आरोपों में
फंसती जा रही है। उसके स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन भ्रष्टाचार (मनी लॉन्ड्रिंग) के आरोप में जेल में बंद हैं और उप
मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया नई शराब नीति में करोड़ों रुपये की हेराफेरी के संदेह में सीबीआई जांच और छापेमारी
का सामना कर रहे हैं। सीबीआई ने कथित शराब घोटाले में दर्ज एफआईआर में सिसोदिया को आरोपी नंबर वन
बनाया है। आश्चर्य की बात है कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध महाआंदोलन से जन्मी इस सरकार के एक भी मंत्री ने जेल
जाने से पहले या एफआईआर दर्ज होते ही त्यागपत्र नहीं दिया। सवाल उठना लाजिमी है- क्यों? 19 अगस्त को
मनीष सिसोदिया के घर सीबीआई की टीम पूछताछ कर रही थी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल दोपहर
12:00 बजे प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे।
दिल्ली के लोगों को आशा थी कि केजरीवाल अपनी आबकारी नीति के पक्ष में ऐसे ठोस तर्क रखेंगे जिससे यह
सिद्ध हो जाएगा कि उनका 'शराब मॉडल' दुनिया का सर्वश्रेष्ठ शराब मॉडल है। यदि इसमें एक पैसे का भी

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भ्रष्टाचार या राजस्व की हानि सिद्ध हुई तो वे इसकी नैतिक जिम्मेदारी स्वयं लेंगें और त्यागपत्र दे देंगे, या फिर
वे कहेंगे कि उनका शराब मॉडल दोषपूर्ण था। इसके लिए वे सम्बंधित लोगों पर कार्रवाई करेंगे और दिल्ली की
जनता से हाथ जोड़कर माफी मांग लेंगे। किंतु उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं किया अपितु उन्होंने अपनी न्यूयॉर्क
टाइम्स में दिल्ली सरकार की शिक्षा नीति की प्रशंसा में छपे या छपवाए हुए लेख की आड़ में पूरे देश को ऐसे
संबोधित किया जैसे वे देश के प्रधानमंत्री हों। उन्होंने देश की 130 करोड़ जनता का देश को आगे ले जाने के लिए
नाटकीय अंदाज से आह्वान किया। ऐसा लगा ही नहीं, बल्कि यह सच है कि वे इस बदनामी में भी प्रधानमंत्री
बनने का मार्ग ढूंढ रहे थे? यह दिल्ली की जनता के साथ क्रूर मजाक नहीं तो और क्या है कि उसका मुख्यमंत्री
अपनी सरकार पर लगे कथित भ्रष्टाचार के आरोप पर एक शब्द भी न बोले और ऐसी प्रतिक्रिया दे जैसे भ्रष्टाचार
कोई मुद्दा ही न हो।
क्या दिल्ली में शराब मॉडल लागू करने से पहले केजरीवाल ने अपनी पुस्तक स्वराज में शराब नीति के लिए स्वयं
के द्वारा दिए गए सुझावों का भी स्मरण किया? ऐसा लगता है कि नहीं। इस पुस्तक के पृष्ठ क्रमांक 146 पर
केजरीवाल लिखते हैं- 'वर्तमान समय में शराब की दुकानों के लिए राजनेताओं की सिफारिश पर अधिकारियों द्वारा
लाइसेंस दे दिया जाता है। वह प्रायः रिश्वत लेकर लाइसेंस देते हैं। शराब की दुकानों के कारण भारी समस्याएं पैदा
होती हैं। लोगों का पारिवारिक जीवन तबाह हो जाता है। विडंबना यह है कि जो लोग इससे सीधे तौर पर प्रभावित
होते हैं उन्हें इस बात के लिए कोई नहीं पूछता कि क्या शराब कि दुकान खोलनी चाहिए या नहीं।' आज से 11 वर्ष
पूर्व में शराब लाइसेंस देने में जिस भयानक भ्रष्टाचार को केजरीवाल मिटाना चाहते थे आज उनकी सरकार पर ठीक
वैसा-का-वैसा भ्रष्टाचार करने का आरोप लगा है। केजरीवाल ने इस समस्या के लिए जो समाधान दिया था वह
अगले पृष्ठ पर इस प्रकार है- 'शराब की दुकान खोलने का कोई लाइसेंस तभी दिया जाना चाहिए जब ग्रामसभा
इसकी मंजूरी दे। वहां उपस्थित 90 फीसदी महिलाएं इसके पक्ष में मतदान करें।' प्रश्न यह है कि क्या मनीष
सिसोदिया ने स्वराज पुस्तक नहीं पढ़ी थी या केजरीवाल ने यह पुस्तक केवल जनता को दिखाने के लिए लिखी थी।
दिल्ली सरकार ने एक-एक वार्ड में दो-दो दुकानें खोलने की तैयारी कर ली थी किन्तु लाइसेंस देते समय वहां की
महिलाओं से नहीं पूछा। आखिर क्यों? उसमें भी लाइसेंस देने में घोटाला हुआ है। इसकी जांच चल रही है।
क्या केजरीवाल ने शराब मॉडल बनाने से पहले अभिभावकों से परामर्श किया कि शराब पीने वाले आपके बच्चों की
आयु सीमा घटाई जाए या नहीं। दिल्ली की जनता का लगभग 144 करोड़ रुपया शराब माफिया पर लुटाने से पहले
और लगभग 30 करोड़ लौटाने से पहले भी क्या किसी मोहल्ला समिति से पूछा गया? क्या दिल्ली की जनता नहीं
जानती कि यदि शराब के प्रति दिल्ली के युवाओं को आकर्षित किया जाने लगा तो शिक्षा और स्वास्थ्य दोनों धरे-
के-धरे रह जाएंगे। स्वराज पुस्तक में जिस शराब को घर बरबाद करने वाली बताया गया उसे हर, गली,मोहल्ले और
बाजार में उपलब्ध कराने पर ये लोग इतने उतावले क्यों थे?
केजरीवाल की दिल्ली सरकार ने अपने कथित शराब मॉडल में शराब पीने की वैधानिक आयु 25 वर्ष से घटाकर 21
वर्ष कर दी थी। हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका के उत्तर में दिल्ली सरकार ने यह कहा कि जब वोट देने की उम्र
18 वर्ष है तो शराब पीने की उम्र 25 समझ से परे है। क्या दिल्ली सरकार दिल्ली के युवाओं को 18 वर्ष की आयु
से ही शराब पिलाने की प्लानिंग कर रही थी? केवल पैसा कमाने के लिए युवाओं को शराब पीने के लिए आकर्षित
करना, बार,क्लब और रेस्टोरेंट में रात तीन बजे तक शराब परोसने की छूट देना आदि …। क्या इन्ही कार्यों के
लिए आम आदमी पार्टी का उदय हुआ? आप तो स्वराज लाने आए थे, क्या दिल्ली में शराब से ही स्वराज आएगा?

क्या अब 'आप' के कथित भ्रष्टाचार और शराब नीति के विरुद्ध भी किसी अन्ना हजारे,किरण बेदी और कुमार
विश्वास को पुनः रामलीला मैदान पर आंदोलन करना पड़ेगा? मिस्टर चीफ मिनिस्टर सवाल तो और भी हैं।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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