



विनीत माहेश्वरी (संवाददाता )
यदि दिल्ली सरकार की आबकारी नीति के तहत कोई घोटाला हुआ है, तो सीबीआई जांच कर रही है। सीबीआई ने
उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के आवास समेत सात राज्यों में कई ठिकानों पर एक साथ छापे मारे थे। दिल्ली में
कार्रवाई करीब 15 घंटे चली। सीबीआई के हाथ जो भी दस्तावेज, उपकरण, साक्ष्य लगे हैं, उन्हें जब्त कर लिया
गया है। संभव है कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) भी इस मामले में प्रवेश करे, क्योंकि प्राथमिकी साझा की गई है।
अब सीबीआई सम्यक जांच करेगी, आरोपित लोगों से पूछताछ करेगी और अंतत: आरोप-पत्र अदालत में दाखिल
करेगी। अदालत में जो भी दोषी पाया जाएगा, वह दंडित होगा। इसमें भाजपा की क्या भूमिका है? भाजपा निर्वाचित
जनसेवकों का उत्पीडऩ क्यों कर रही है? पहले ख़बर आई कि सिसोदिया के खिलाफ लुकआउट सर्कुलर जारी कराया
गया है। सिसोदिया चुने हुए जन-प्रतिनिधि हैं। वह नीरव मोदी, ललित मोदी, मेहुल चौकसी और विजय माल्या की
तरह न तो भगोड़े हैं और न ही उन्होंने बैंकों का पैसा हड़पा है। वह भारत सरकार की अनुमति के बिना देश के
बाहर कहीं भी जा नहीं सकते। फिर लुकआउट सर्कुलर…? जब यह विमर्श गंभीर हो गया, तो सीबीआई ने लुकआउट
सर्कुलर का खंडन किया। क्या मज़ाक किया गया? आखिर बदनाम करने और फजीहत करने की यह पटकथा किसने
लिखी थी? भाजपा के विभिन्न सांसद और प्रवक्ता घोटाले की राशि अलग-अलग आंकते रहे, जो लगातार गलत
साबित होती रही। सीबीआई की प्राथमिकी में घोटाले की राशि कुछ और लिखी है, लेकिन भाजपाई फुलफुलाकर
8000 करोड़ से 1100 करोड़ रुपए तक के खुलासे करते रहे। यह कैसी राजनीति है?
जनता को क्यों भ्रमित किया जा रहा है? बेशक भाजपा देश में सत्तारूढ़ पार्टी है, लेकिन वह जांच एजेंसी नहीं है।
हमारी जांच एजेंसियां स्वायत्त हैं और उनकी भूमिकाएं अलग-अलग हैं। बेशक सर्वोच्च अदालत भी सीबीआई को
‘तोता’ मानती रहे, लेकिन भ्रष्टाचार के मामलों में उसकी जांच की मौलिकता असंदिग्ध है। सीबीआई भी प्रधानमंत्री
के अधीन काम करती है, लिहाजा उनके इशारों को कैसे टाल सकती है? क्या जांच भी प्रधानमंत्री की इच्छा के
मुताबिक की जाती है? बिल्कुल नहीं…यदि ऐसा ही होता, तो भारत में विपक्षी नेता जेलों में ही होते! बहरहाल कुछ
दिनों से भाजपा सवालों की बौछार करती रही है कि दिल्ली में शराब घोटाला क्यों हुआ? नई नीति को छोड़ कर
पुरानी आबकारी नीति को सरकार ने लागू क्यों किया? सुबह होती है और भाजपा का शोर शुरू हो जाता है, जबकि
सीबीआई को जांच का जिम्मा दिया गया है। पलटवार में आम आदमी पार्टी (आप) अपने नेता अरविंद केजरीवाल
को राष्ट्रीय विकल्प के तौर पर पेश कर रही है। ‘आप’ लगातार हुंकार भर रही है कि 2024 के आम चुनाव
प्रधानमंत्री मोदी बनाम मुख्यमंत्री केजरीवाल होंगे। हालांकि केजरीवाल को समूचे विपक्ष ने सर्वसम्मत नेता के तौर
पर स्वीकृति नहीं दी है। पटना से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और कोलकाता से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की अपनी-
अपनी पेशबंदियां हैं। दरअसल बुनियादी द्वन्द्व यही है कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भाजपा केजरीवाल और
‘आप’ की चुनावी संभावनाओं को कुचल देना चाहती है। इस साल और 2023 में करीब एक दर्जन राज्यों में
विधानसभा चुनाव होने हैं। आम चुनाव से पहले भाजपा अपनी ज़मीन पुख्ता करना चाहती है, ताकि चुनौतियों को
बेअसर किया जा सके, लेकिन विपक्ष अपनी ज़मीन तैयार करने की फिराक में है।
कमोबेश 2024 के मद्देनजर हम ‘आप’ को भाजपा के लिए बौनी-सी चुनौती भी नहीं मानते। दोनों में तुलना ही
गलत है-हाथी बनाम पिद्दी। कहां 15 करोड़ से ज्यादा का काडर और करीब 400 सांसदों वाली पार्टी और कहां
दिल्ली अद्र्धराज्य और पंजाब के कुल डेढ़ राज्यों तक सीमित ‘आप’, जिसका लोकसभा में एक भी सांसद नहीं है।
मुख्यमंत्री वाली संसदीय सीट संगरूर भी ‘आप’ हार चुकी है। उत्तराखंड और गोवा में पार्टी के उम्मीदवारों की
जमानतें जब्त हुई हैं। विपक्षी पाले में आज भी सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस है, जिसके साथ ‘आप’ के समीकरण सहज
नहीं हैं। यदि 2024 में मोदी और भाजपा को निर्णायक-सी टक्कर देनी है, तो विपक्ष को अपना एक चेहरा अभी से
तय करना होगा और उसके नेतृत्व के पीछे शिद्दत से लामबंद होना पड़ेगा। यह ऐसी रणनीति नहीं है, जो सीबीआई
और ईडी की बिसात पर खेली जा सके। बहरहाल शराब घोटाले को उसकी परिणति तक जाने दीजिए और भाजपा
अपने दूसरे काम करे, क्योंकि उसे राष्ट्रीय जनादेश हासिल करना है। शराब घोटाले को लेकर भाजपा जो कह रही है,
या आम आदमी पार्टी का जो पक्ष है, उसमें विरोधाभास है, तथा कौन झूठ और कौन सच बोल रहा है, आम आदमी
के लिए यह तय करना मुश्किल है। फिर भी आशा है कि जल्द ही सच आम आदमी के सामने आ जाएगा, जांच तो
होने दीजिए।