आदिवासी चित्रकला में प्रकृति और पर्यावरण को बचाने की अपील

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विनीत माहेश्वरी (संवाददाता )

नई दिल्ली, 22 अगस्त आदिवासियों के बीच रहकर उनके जनजीवन को चित्रित करने वाले प्रसिद्ध
पेंटर आशीष कछवाहा का कहना है कि प्रकृति के साथ मनुष्य का संबंध टूट जाने और पर्यावरण पर ध्यान न देने
के कारण समाज में आज संवेदनशीलता का अभाव हो गया है और हम गलत तरीके से विकास के रास्ते पर जा रहे
हैं। उनका कहना है कि उनके इलाके में जंगल में रहनेवाले किसी आदिवासी को कोरोना नहीं हुआ क्योंकि वे प्रकृति
के बीच रहते हैं। यह प्रकृति की ताकत है जो हमें रोगों से बचाती है।
मध्यप्रदेश के मांडला के चित्रकार श्री कछवाहा ने रविवार शाम राजधानी के त्रिवेणी कला संगम में अपनी एकल
चित्रप्रदर्शनी के उद्घाटन पर यह बात कही। हिंदी के प्रसिद्ध संस्कृतिकर्मी अशोक वाजपेयी, जाने माने कला
समीक्षक प्रयाग शुक्ल, समकालीन कला के पूर्व संपादक ज्योतिष जोशी और प्रसिद्ध चित्रकार अखिलेश ने इस
प्रदर्शनी का उद्घाटन किया। मात्र सातवीं कक्षा तक पढ़ें पेंटर श्री कछवाहा कान्हा नेशनल पार्क के ठीक सामने अपने
स्टूडियों में ‘बैगा’ जनजाति के जीवन पर चित्र बनाते हैं और अब तक एक हज़ार चित्र बना चुके हैं। देश के पूर्व
मुख्य न्यायधीश शरद बोबडे और छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनसुइया उईके उनके स्टूडियो में आकर उनके चित्रों का
अवलोकन कर चुकी हैं।
बचपन में अपने पिता को खोने के कारण पढ़ाई पूरी न कर पाने वाले आशीष ने अपनी आजीविका के लिए
चित्रकला का रास्ता बनाया और आज उनकी पेंटिंग 50 हज़ार से एक एक लाख रूपये में बिक जाती है और कान्हा
नेशनल पार्क घूमने वाले पर्यटक उनकी पैंटिंग खरीदते हैं तब उनका जीवन चलता है। वह कहते हैं, ‘‘मुझे
पद्मविभूषण से सम्मानित विश्वप्रसिद्ध चित्रकार रज़ा से काफी प्रेरणा मिली जो मांडला के थे।मैं उनसे मिल नहीं
पाया इसका अफसोस मेरे मन मे हमेशा रहेगा उनके अंतिम दर्शन मैंने जरूर किये हैं। मैंने तीसरी कक्षा में नेहरू
जी पर चित्र बनाया था उसे स्कूल में पुरस्कार मिला तब चित्र बनाने का सिलसिला शुरू हुआ।”
वह कहते हैं कि उन्हें जंगल में रहकर आदिवासियों के बीच पेंटिंग करना अच्छा लगता है। वह पहले बाघ की पेंटिंग
बनाकर बाघ बचाओ का संदेश देने का काम कर रहे थे पर अब उनका ध्यान पर्यावरण और प्रकृति पर है। उन्होंने
अपनी पेंटिंग में चटख रंगों का इस्तेमाल किया है। उन्होंने बताया कि कोलकत्ता पुणे और नागपुर में उनकी एकल
प्रदर्शनी हो चुकी है और देश के कई शहरों में ग्रुप प्रदर्शनी लग चुकी है।
उन्होंने कहा कि देश में आदिवासी कला के प्रचार प्रसार की बेहद आवश्यकता है। सरकार के प्रोत्साहन से गोंड कला
का विकास हुआ है और दो कलाकारों को पद्मश्री भी मिल चुका है। उनके इलाके में करींब 400 गोंड कलाकार हैं
जिनमे डेढ़ सौ महिला कलाकार हैं। उन्होंने कहा आदिवासी कलाकारों ने अपनी कला में लोक संस्कृति, प्रकृति और
पर्यावरण पर जोर दिया है। प्रकृति के बचने से ही लोक संस्कृति बचेगी।
प्रदर्शनी के आयोजक रज़ा फॉउंडेशन के प्रबन्ध न्यासी अशोक वाजपेयी ने बताया कि युवा चित्रकारों और गोंड
चित्रकारों के उत्साह वर्धन के लिए रज़ा फाउंडेशन ने कई चित्र प्रदर्शनियां लगाईं। पिछले दिनों 25 गोंड कलाकारों की
और 100 युवा चित्रकारों की प्रदर्शनी लगाई गई थी। मांडला में रज़ा साहब की पुण्यतिथि पर एक प्रदर्शनी लगाई
गई।

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