आजादी का अमृत महोत्सव, पर छुआछूत से मुक्ति नहीं

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विनीत माहेश्वरी (संवाददाता )

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आज़ादी का अमृत महोत्सव और दूसरी तरफ जातिवादी उत्पीड़न की ख़बर। ऐसे में कैसा महोत्सव मना रहे हम?
यह समझ से परे है। जालौर के एक निजी स्कूल में शिक्षक ने तीसरी कक्षा में पढ़ने वाले एक दलित छात्र की सिर्फ
इसलिए पिटाई कर दी क्योंकि छात्र ने शिक्षक की मटकी से पानी पी लिया। यह घटना राजस्थान के जालौर जिले
के सायला तहसील के एक गांव की है। जहां 20 जुलाई को स्कूल संचालक और शिक्षक ने 9 साल के मासूम बच्चे
की बेरहमी से पिटाई कर दी। इस घटना में बच्चे को गम्भीर चोट आई, और 13 अगस्त को ईलाज के दौरान बच्चे
की मौत हो गई। अब जरा सोचिए कि इक्कीसवीं सदी में हम किस हालात में जी रहें हैं। एक मासूम बच्चा जो
ठीक से जात पात का मतलब भी नहीं समझ पाता हो। उसे एक शिक्षक द्वारा छुआछूत के चलते बेरहमी से पीटना
क्रूरता की पराकाष्ठा है, लेकिन हम तो आज़ादी के अमृतकाल में जी रहें हैं! देश के कोने-कोने में तिरंगा झंडा
फहराए जा रहें हैं, लेकिन मानवता आज कहाँ खड़ी है। शायद इसकी परवाह किसी को नहीं।
क़िताबों में हम पढ़ते हैं कि जाति प्रथा एक सामाजिक बुराई है। पर अफ़सोस की आज भी हमारा देश इसके चुंगल
में जकड़ा हुआ है। छुआछूत, ऊंच-नीच, दलित-स्वर्ण का भेद अभी भी समाज से खत्म नहीं हुआ है। हम सभी
जानते हैं कि जातिवाद राष्ट्र के विकास में बाधक है, लेकिन फिर भी इसके नाम पर अत्याचार जारी है। संविधान
की प्रस्तावना हम भारत के लोग से शुरू होती है, लेकिन उसी संवैधानिक देश में भारतीयों को जातियों में बांटकर
देश के विकास को अवरुद्ध किया जा रहा है। संविधान के अनुच्छेद 15 में राज्य के द्वारा धर्म, जाति, लिंग यहां
तक कि जन्म स्थान के आधार पर नागरिकों के साथ किसी भी प्रकार से भेदभाव नहीं किए जाने की बात कही गई
है। वहीं अनुच्छेद- 17 जातिवाद को पूरी तरह से निषेध करता है, बावजूद इसके तमाम राजनीतिक दल जातिगत

राजनीति करते है और आज उसकी परिणीति राजस्थान में हम सभी के सामने है। राजस्थान में कांग्रेस की सरकार
है और वह सिर्फ अपनी सत्ता बचाए रखने में लगी रहती है। जिसकी वजह से प्रदेश का सामाजिक परिवेश लगातार
बिगड़ रहा है।
देश-प्रदेश में निचली जातियों के संरक्षण और सुरक्षा के लिए तमाम कानून भी बन चुके हैं, लेकिन हालत आज भी
बद्दतर ही नजर आते हैं। वैसे यह कोई पहला मामला नहीं जब जातिवाद के नाम पर बवाल मचा है। सवाल तो
यह भी है कि जब शिक्षा के मंदिर से जातिवाद को बढ़ावा दिया जाएगा। फिर भारत का भविष्य क्या होगा? वैसे
देखा जाए तो हमारी राजनीतिक व्यवस्था भी जातिवाद को पोषण देने का ही काम कर रही है। यहां तक कि हमारे
जनप्रतिनिधि भी जाति देखकर अपना पराया करते है। यही वजह है कि जातीय मानसिकता समाज में अपनी
मजबूत पैठ बना चुकी है।
आंकड़ो की बात करें तो देश में साल 2018 से 2020 के बीच दलितों पर अत्याचार के 1 लाख 29 हजार मामले
दर्ज हुए। इसमें उत्तरप्रदेश पहले नंबर पर है। उसके बाद बिहार और मध्यप्रदेश का नम्बर आता है। राष्ट्रीय अपराध
रिकार्ड ब्यूरो की माने तो साल 2019 में अनुसूचित जातियों पर अपराध के मामलों में 7.3 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज
की गई है। जबकि अधिकतर मामलों में ऐसे अपराधों को दर्ज ही नहीं किया जाता, क्योंकि रौबदार डरा धमकाकर
मामला शांत करने का दबाव बनाते है। जब भी समाज में इस तरह की घटना घटित होती है तो तमाम राजनीतिक
दल उस पर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने लगते है, पर कभी कोई दल यह सुनिश्चित नहीं कर पाया है कि ऐसे
अपराधों पर कठोर दंड का प्रावधान किया जाए। राजस्थान की ही बात करें तो यहां पर अपराध का ग्राफ तेजी से
बढ़ रहा है।
एक मामला शांत नहीं होता कि दूसरी घटना घटित हो जाती है, आख़िर क्या वजह है जो राजस्थान में अपराधी
बेखौफ हो गए है? अभी 10 अगस्त की ही घटना को देख लीजिए। एक शिक्षिका को महज इसलिए आग लगा दी
क्योंकि वह अपनी उधार दी हुई रकम वापस मांग रही थी। शिक्षिका ने इसकी शिकायत पुलिस थाने में की बावजूद
इसके कोई कार्रवाई नहीं हुई। आरोपियों ने शिक्षिका को जिंदा जला दिया। उस महिला ने अपनी जान बचाने के
लिए पुलिस को फोन भी किया। थाने से मात्र 2 किलोमीटर की दूरी पर ही इस घटना को अंजाम दिया गया पर
राजस्थान पुलिस समय पर नहीं आ सकी और एक शिक्षिका की जान चली गई। ऐसे में राजस्थान सरकार का
अपराधियों पर शिकंजा कमजोर पड़ता जा रहा और उसके ढुलमुल रवैये की वज़ह से समाज में वैमनस्यता का
वातावरण बढ़ रहा। जिससे निपटने के लिए सरकार को कदम उठाने होंगे। वरना आज़ादी का जश्न मनाते रहिए
और जाति-धर्म के नाम पर लोगों की जान जाती रहेगी।

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