जब बिबेक देबरॉय ने इंडिया टीवी से की थी खास बातचीत, ‘इनटॉलरेंस’ पर दिया था बड़ा बयान

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प्रियंका कुमारी(संवाददाता) 

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC-PM) के अध्यक्ष बिबेक देबरॉय का शुक्रवार की सुबह निधन हो गया। उनकी उम्र 69 वर्ष थी। EAC-PM के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इस बारे में जानकारी देते हुए बताया कि वह AIIMS में भर्ती थे। देबरॉय ने नरेंद्रपुर के रामकृष्ण मिशन स्कूल, कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज, दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स और कैम्ब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज से शिक्षा ग्रहण की थी। उन्होंने कुछ साल पहले इंडिया टीवी से खास बातचीत में ‘इनटॉलरेंस’ को लेकर बड़ा बयान दिया था। बता दें कि 2015 के आसपास देश में ‘इनटॉलरेंस’ या असहिष्णुता का मुद्दा बहुत जोर-शोर से छाया हुआ था।

असहिष्णुता पर क्या कहा था देबरॉय ने?

इंडिया टीवी को दिए इंटरव्यू में तब नीति आयोग के सदस्य रहे देबरॉय ने कहा था कि भारत में शैक्षणिक हलकों में असहिष्णुता हमेशा से मौजूद रही है और इसे सरकार द्वारा संरक्षण प्राप्त वामपंथी गुटों द्वारा बढ़ावा दिया जाता रहा है। उन्होंने तब कहा था, ‘जहां तक अकादमिक जगत में असहिष्णुता का सवाल है, यह हमेशा से मौजूद रही है, सिवाय इसके कि यह एक खास वामपंथी वर्ग द्वारा अपनाई जाती रही है, जो परंपरागत रूप से सरकारी संरक्षण में फलती-फूलती रही है। अब वह वर्ग नाखुश है, क्योंकि उस संरक्षण पर उसके एकाधिकार को चुनौती दी जा रही है।’

‘हार्ट ऑफ़ इंडिया’ का दिया था उदाहरण

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए देबरॉय ने कहा था, ‘मई 2014 में इस सरकार (मोदी सरकार) के सत्ता में आने के बाद से किसी भी किताब पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया है। ज़्यादातर किताबों पर प्रतिबंध दरअसल कांग्रेस सरकारों के दौरान ही लगाए गए थे। ऐसी ही एक खास किताब 1958 में प्रकाशित अलेक्जेंडर कैंपबेल की ‘हार्ट ऑफ़ इंडिया’ है। इसमें कोई भद्दापन या अश्लीलता नहीं थी। इसे प्रतिबंधित करने का एकमात्र कारण यह था कि इसमें जवाहरलाल नेहरू और उनके समाजवाद की आलोचना की गई थी।’

UNDP प्रोजेक्ट के निदेशक भी रहे थे देबरॉय

देबरॉय ने तब इंटरव्यू में कहा था कि इस बात का कोई तथ्यात्मक प्रमाण नहीं है, और कोई सबूत नहीं हैं, जो यह साबित करे कि असहिष्णुता, चाहे इसे किसी भी रूप में परिभाषित किया जाए, मई 2014 के बाद से बढ़ी है। बता दें कि देबरॉय ने कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज, पुणे के गोखले इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिटिक्स एंड इकोनॉमिक्स, दिल्ली के भारतीय विदेश व्यापार संस्थान में सेवाएं दी थीं और वह कानूनी सुधारों पर वित्त मंत्रालय/UNDP परियोजना के निदेशक भी रहे। नीति आयोग के सदस्य रह चुके देबरॉय ने कई पुस्तकों, शोधपत्रों और लोकप्रिय लेखों का लेखन/संपादन किया था और कई समाचार पत्रों के सलाहकार/योगदान संपादक भी रहे।

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